Japani Samosa: धूम तो जापानी समोसे की है. वैसे यह देखने में समोसा नहीं लगता है. यह बहुत ही फुरफुरा और कुरकुरा है. समोसे में मैदे के आटे की 60 लेयर हैं और यह फूल (Flower) की तरह दिखता है.
डॉ. रामेश्वर दयाल)
हिंदुस्तान में समोसा तो समोसा ही होता है, जिसमें आलू व अन्य मसाले डालकर तला जाता है. कुछ इलाकों में समोसे को सिंघाड़ा भी कहा जाता है लेकिन इन सबका स्वाद कमोबेश एक जैसा ही होता है. लेकिन आज हम आपको ऐसे समोसे से रूबरू करवा रहे हैं जो ‘जापानी’ है और उसका स्वाद व बनावट भी अलग है. इस समोसे का नाम जापानी क्यों पड़ा, इसकी जानकारी मालिकों को भी नहीं है. लाल किला के सामने जो सड़क चांदनी चौक की ओर जाती है, वह कुछ दूर आगे चलकर दाईं ओर मोती सिनेमा से पहले पुरानी लाजपत राय मार्केट की ओर भी मुड़ती है. इसी मार्केट में मनोहर ढाबा है. ढाबा सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक चलता है. वैसे तो इस दुकान में चटपटे छोलों के साथ फूले हुए गरमा-गरम भठूरे के अलावा भरवां तंदूरी पराठा, मसालेदार मटर पनीर, दाल मक्खनी, रायता और तंदूरी रोटी का मैन्यू है लेकिन धूम तो जापानी समोसे की है. वैसे यह देखने में समोसा नहीं लगता है. यह बहुत ही फुरफुरा और कुरकुरा है. समोसे में मैदे के आटे की 60 लेयर हैं और यह फूल की तरह दिखता है.
एक समोसे की कीमत 20 रुपये है और 40 रुपये की प्लेट में दो समोसों के साथ छोले, घीया का अचार व हरी मिर्च के साथ परोसा जाता है. सुबह 4 बजे से सुबह 9 बजे तक जापानी समोसे बनते हैं. स्पेशल मसाला बनाकर उनमें आलू व मटर का स्टफ भरा जाता है. उमेश का कहना है कि कुछ लोग तो ऐसे हैं, जो सालों से उनकी दुकान पर जापानी समोसा ही खाने आते हैं. उसका कारण यह है कि अलग बनावट व स्वाद का ऐसा समोसा और कहीं नहीं मिलता
इस ढाबे को वर्ष 1949 में मनोहर व उनके भाई गुरबचन सिंह ने मिलकर शुरू किया था. गुरबचन के बेटे उमेश हैं, जो अपने दो बेटों ऋषभ व जतिन के साथ ढाबा चलाते हैं. वह बताते हैं कि देश विभाजन से पहले लाहौर स्थित निस्बत रोड के दयाल सिंह कॉलेज के पास उनकी जापानी समोसे की दुकान थी. बंटवारे के बाद परिवार दिल्ली चला आया. उमेश को इस बात की जानकारी नहीं है कि इस व्यंजन का नाम जापानी समोसा कैसे पड़ा. उन्होंने अपने बढ़े-बूढ़ों से इस बाबत जानने का खूब प्रयास किया. उनका कहना था कि यार तू जापानी समोसा बेच, नाम के चक्कर में न पड़