शिमला. हिमाचल कई तरह के खतरों का सामना कर रही है. कोरोना के साथ साथ अब पीने के पानी (Water) की कमी ने रेड अलर्ट जारी किया है. बीते एक साल में औसत से कम बारिश हुई है और बर्फ (Snowfall) के दीदार भी कम हुए हैं. एक ओर जहां पीने के पानी कमी की समस्या खड़ी हो रही है तो दूसरी तरफ सूखा हिमाचल के कई इलाकों को अपने आगोश में ले रहा है. अब सरकारी तंत्र ने भी मान लिया है कि आने वाले समय में पानी (Water) हाहाकार मचा सकता है.
क्यों हैं सूखे जैसे हालात
कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज का कहना है कि जल शक्ति विभाग की प्रजेन्टेशन ये बताने के लिए काफी है कि समस्या कितनी बड़ी है. नल सूख सकते हैं, टैंकरों के जरिए प्रदेश की बड़ी आबादी की प्यास बुझानी पड़ सकती है. बीते साल कम बारिश और कम बर्फबारी के चलते जल स्त्रोतों में पानी कम हो गया है, प्राकृतिक स्त्रोत भी पूरी तरह रिचार्ज नहीं हो पाए हैं जिसके चलते अभी से सूखे की आहट सुनाई देने लगी है. गर्मियां आने में करीब 2 महीने का समय है. एक जानकारी के अनुसार प्रदेश में सैकड़ों पेयजल योजनाएं सूखने के कगार पर हैं. जल शक्ति विभाग ने पेयजल से जुड़े 4 दर्जन से ज्यादा मंडलों से वर्तमान स्थिती की रिपोर्ट मांगी है.
बहुत कम पानी बरसा
मौसम विभाग कहना है कि इस बार के विंटर सीजन में बारिश सामान्य से 70 फीसदी कम हुई है और बीते साल बर्फबारी 30 फीसदी कम हुई है. बीते पूरे साल में बारिश और बर्फबारी 40 प्रतिशत कम हुई है. ऐसे में इसका सबसे ज्यादा असर किसानों और बागवानों को हुआ है. आने वाले कुछ दिनों में इंद्र देवता के मेहरबान होने के आसार कम हैं. ऐसे में मौसम विज्ञानी भी आम जनता से कह रहे हैं कि पानी का सदुपयोग करें, पानी ज्यादा बचाएं.
किसके हिस्से में कितनी बूंदे आएंगी?
अब सवाल ये है कि किसके हिस्से में कितनी बूंदे आएंगी. पशुओं का क्या होगा, खेती-किसानी का क्या होगा. साल 2020-21 का आर्थिक सर्वेक्षण तो बता रहा है कि प्रदेश की 21 हजार 527 बस्तियों में रहने वाले हर व्यक्ति को आंशिक रूप से हर रोज 55 लीटर से कम स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है. जरूरत के हिसाब से देखें तो शहरी क्षेत्र में सरकारी कागज के अनुसार एक व्यक्ति को हर रोज 35 लीटर पानी की जरूत होती है लेकिन ग्रामीण इलाकों में ये 2 गुना से ज्यादा है. इंटरनेशनल मानकों के अनुसार एक व्यक्ति को प्रतिदिन 110 लीटर पानी की जरूत होती है, जबकि आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि राज्य की कुल 55 हजार 279 बस्तियों में से 33 हजार 752 बस्तियों में प्रति व्यक्ति 55 लीटर या इससे अधिक हर रोज स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया गया है.
सिंचाई के लिए तरसना होगा
सिंचाई की व्यवस्था हिमाचल में न के बराबर है. प्रदेश के कुल 55.67 लाख हैक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र में से मात्र 5.83 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में ही खेती होती है. सिंचाई की क्षमता करीब 3.35 लाख हैक्टेयर है, लेकिन इनमें से 0.50 लाख हैक्यटर ही मुख्य और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के तहत लाया जा सकता है..इसकी बेहतर स्थिती क्या है ये प्रदेश किसान-बागवान अच्छे से जानते हैं. ये स्थितियां बताती हैं कि अब तक हमारी सरकारों ने क्या किया है.
तापमान में इजाफा
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदुषण की वजह से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिसके चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, इस कारण नदियों और भूमिगत जल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. अवैज्ञानिक तरीके से विकास, प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन और वनों का लगातार घटना पानी की समस्या को और ज्यादा गंभीर बना रहा है. सरकारों की लचर कार्यप्रणाली भी काफी हद तक वर्तमान स्थिती के लिए जिम्मेदार है. कुछ साल पहले पानी के नाम पर राजधानी शिमला में मचे कोहराम को कौन भूल सकता है. इसके अलावा कुल्लू,चंबा,कांगड़ा,ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, सोलन जिले के कई इलाके हैं जहां स्थिती भयावह है. प्रदेश में नदी-नालों,चश्मों,बावड़ियों की कमी नहीं है, जल बांधों की बात करें तो भाखड़ा,पौंग, लारजी,चमेरा,कोल बांध, कोलडैम जैसे जलबांध होने बावजूद भी हर साल करोड़ों रूपए टैंकरों के माध्यम से की जाने वाली सप्लाई पर फूंक दिए जाते हैं.