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भारतीय श्रमिक दुनिया में सबसे ज्‍यादा काम करके कमाते हैं सबसे कम, जानें क्‍या नए लेबर कोड से होगा कुछ फायदा

केंद्र सरकार के नए लेबर कोड्स (New Labour Codes) में हफ्ते में काम के कम दिन की व्‍यवस्‍था की गई है. इससे देश के कार्यबल (Workforce) के छोटे हिस्‍से को कुछ सहूलियत मिल सकती है. उम्‍मीद नहीं है कि नए लेबर कोड्स से काम के घंटों (Working Hours) को लेकर कोई बड़ा बदलाव होगा क्‍योंकि भारत दुनिया में सबसे ज्‍यादा घंटे काम (Longest Working Hours) कराने वाला देश है.

नई दिल्‍ली. केंद्र सरकार के नए लेबर कोड्स के मसौदे (New Draft Labour Codes) में सप्‍ताह में काम के कम दिनों (Shorter Week) की व्‍यवस्‍था को शामिल किया गया है. इससे कामगारों के छोटे हिस्‍से को कुछ फायदा मिलने की उम्‍मीद तो है, लेकिन भारत में काम के घंटों (Working Hours) को लेकर कोई बड़ा बदलाव होने की उम्‍मीद नहीं है. भारत में कामगारों के लिए काम के घंटे दुनिया में सबसे ज्‍यादा (Longest Working Hours) हैं. कोरोना संकट के बीच घर से काम कर रहे व्‍हाइट कॉलर वर्कर्स (White Collar Workers) नए लेबर कोड्स में प्रस्‍तावित सप्‍ताह में 4 दिन काम (4 Days Week) को लेकर काफी उत्‍साहित हैं. वहीं, बड़ी संख्‍या में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कुशल कामगारों (Skilled Workers) के लिए नए प्रस्‍ताव से कुछ खास हासिल होने की उम्‍मीद नहीं है.

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत वैश्विक स्‍तर पर सबसे ज्‍यादा घंटे काम (Overworked Workers) कराने वाले देशों में पहले से ही मौजूद है. सिर्फ जाम्बिया, मंगोलिया, मालदीव और कतर में ही एक औसत श्रमिक भारतीय कामगार (Indian Workers) से ज्‍यादा काम करता है. आईएलओ के मुताबिक, वास्‍तविक काम के घंटों के आधार पर भारत सप्‍ताह में 48 घंटे काम के साथ दुनिया में 5वें नंबर पर है. वहीं, भारतीय कामगारों को ज्‍यादा समय काम करने के मुताबिक भुगतान नहीं किया जाता है.

वैश्विक स्‍तर पर भारतीय कामगारों को मिलता है सबसे कम मेहनताना
आईएलओ के मुताबिक, एशिया प्रशांत क्षेत्र के सभी देशों के मुकाबले भारत में सबसे कम न्‍यूनतम वेज (Minimum Wage) दी जाती है. हालांकि, 2019 तक बांग्‍लादेशी कामगारों के हालात भारत से भी खराब थे. वहीं, वैश्विक स्‍तर पर भी भारतीय कामगारों को सबसे कम मेहनताना मिलता है. आईएलओ की ग्‍लोबल वेज रिपोर्ट 2020-21 में बताया गया है कि कुछ अफ्रीकी देशों में हालात भारत से भी खराब हैं. हालांकि, वास्‍तविक मेहनताना मिनिमम वेज से ज्‍यादा हो सकता है, लेकिन इसमें बहुत ज्‍यादा अंतर की गुंजाइश कम ही नजर आती है. पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत के शहरों में ग्रामीण इलाकों के कामगारों से ज्‍यादा काम करने वालों को भुगतान भी बेहतर किया जाता है.

पुरुष अपनी महिला सहयोगियों के मुकाबले करते हैं ज्‍यादा घंटे काम
पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में पुरुष महिलाओं के मुकाबले ज्‍यादा घंटे काम करते हैं. वहीं, शहरों में महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए काम के घंटे ग्रामीण इलाकों के मुकाबले ज्‍यादा हैं. दो दशक में पहली बार भारत ने 2019 में इसे लेकर सर्वे किया था, जिसमें ऐसे ही आंकड़े सामने आए थे. सर्वे के मुताबिक, पुरुष कामगार महिलाओं के मुकाबले 4 गुना ज्‍यादा घंटे काम करते हैं. वहीं, शहरों में पुरुष कामगार महिलाओं के मुकाबले हर दिन एक घंटा ज्‍यादा काम करते हैं. भारत में घंटों के आधार पर देखा जाए तो पुरुष कर्मचारी हर हफ्ते कम से कम 6 दिन काम करते ही हैं.

‘4 दिन काम कराने वाली कंपनियां कराएंगी हर दिन 12 घंटे काम’
श्रम सचिव अपूर्व चंद्रा कहते हैं, ‘हो सकता है कि कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों को सप्‍ताह में 4 दिन काम करने की सहूलियत दें. ऐसे में उन्‍हें हर कर्मचारी को सप्‍ताह में लगातार 3 दिन की छुट्टी देनी होगी. ऐसे में उन्‍हें कर्मचारियों से 12 घंटे की शिफ्ट में काम कराने की अनुमति भी देनी होगी.’ बता दें कि संसद ने सितंबर 2020 में चार लेबर कोड पारित कर दिए थे. श्रम व रोजगार मंत्रालय ने दिसंबर 2020 में नए श्रम नियमों का पहला मसौदा पेश किया था. मंत्रालय को इन पर जनवरी में टिप्‍पणियां प्राप्‍त हुईं. श्रम मंत्री का कहना है कि वह इस पर मिली प्रतिक्रियाओं पर विचार कर रहे हैं और अगले मसौदे पर काम कर रहे हैं.

‘हफ्ते में 48 घंटे काम की सीमा में नहीं होने दिया जाएगा बदलाव’
श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि सप्‍ताह में 48 घंटे से ज्‍यादा काम के खिलाफ हैं. इस पर अपूर्व चंद्रा स्‍पष्‍ट कहते हैं कि 48 घंटे काम की समयसीमा में किसी तरह का बदलाव नहीं होने दिया जाएगा. नए प्रस्‍तावों में सप्‍ताह में 4 दिन काम की व्‍यवस्‍था का बहुत कम कर्मचारियों को फायदा मिल पाएगा क्‍योंकि काम के तय घंटों की व्‍यवस्‍था सिर्फ संगठित क्षेत्र में काम करने वालों को ही मिलती है. वहीं, घर से काम करने वाली महिलाओं के लिए भी हर दिन 12 घंटे काम करना बहुत मुयिकल हो जाएगा, क्‍योंकि न पर घर की दूसरी जिम्‍मेदारियां भी रहती हैं.

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