नई दिल्ली: देश में 6 महीने और 4 दिन के बाद कल 21 सितंबर को स्कूल खुल गए. 16 मार्च को भारत में स्कूलों को बंद करने का फैसला किया गया था. इसके बाद अनलॉक 4 के दिशानिर्देशों के तहत 21 सितंबर से स्कूलों को आंशिक तौर पर खोलने का फैसला किया गया.
भारत के 9 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आंशिक तौर पर कक्षा 9वीं से 12वीं के लिए क्लासेज शुरू कर दी. ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, असम, जम्मू और कश्मीर.
भारत में स्कूलों को खोलने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं.
इनके मुताबिक कक्षा 9वीं से 12वीं के विद्यार्थियों के लिए स्कूल खोले जा सकते हैं. हालांकि सभी को स्कूल में आना जरूरी नहीं है. इस दौरान ऑनलाइन क्लासेज जारी रहेंगी. स्कूल कंटेनमेंट जोन से बाहर होने चाहिए. स्कूल में वही छात्र और अध्यापक आ सकते हैं जो कंटेनमेंट जोन से बाहर रहते हों.
हालांकि अटेंडेंस जरूरी नहीं है. विद्यार्थी अध्यापकों से गाइडेंस लेने के बाद घर वापस जा सकते हैं. लेकिन स्कूल आने के लिए विद्यार्थियों को अभिभावकों की लिखित सहमति दिखानी होगी. स्कूल में टीचर और स्टाफ मिलाकर 50 प्रतिशत लोग ही रह सकते हैं. स्कूल का नियमित सैनिटाइजेशन जरूरी होगा. क्लासरूम में 24 से 30 डिग्री के बीच तापमान रखना और वेंटिलेशन (Ventilation) बनाए रखना जरूरी होगा. 6 फीट की सोशल डिस्टेंसिंग के तहत बैठने की व्यवस्था करनी होगी. इस दौरान स्विमिंग पूल बंद रहेंगे. हालांकि खेल कूद जैसी आउटडोर एक्टिविटी सावधानी बरतते हुए की जा सकती हैं.
टीचर आए लेकिन स्टूडेंट नहीं पहुंचे
हालांकि पहले दिन स्कूलों में बहुत कम ही छात्र स्कूल आए. किसी किसी स्कूल में तो पूरी व्यवस्था का लाभ उठाने के लिए केवल एक छात्र ही उपस्थित था. बिहार के पटना में ऐसे स्कूल भी थे जहां टीचर्स तो आए लेकिन एक भी छात्र स्कूल नहीं पहुंचा.
यानी कोरोना वायरस महामारी के दौर में हर किसी को सबसे पहले अपने बच्चों की चिंता सता रही है. इसीलिए ज्यादातर अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल न भेजने में ही भलाई समझी. क्या आप अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहेंगे? आज हमने कई अभिभावकों से ये सवाल किया. ज्यादातर अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं. बच्चों को स्कूल भेजने या न भेजने का फैसला काफी मुश्किल है.
कोरोना के मरीजों की संख्या भारत में रोज नए रिकॉर्ड बना रही है. पहले भारत में कोरोना का पीक आने और 2020 के अंत तक कोरोना के खत्म होने की संभावना भी जताई जा रही थी. लेकिन हालात देखकर लगता नहीं कि कोरोना वायरस जल्दी खत्म होने वाला है. ऐसे में बच्चों को स्कूल भेजने या न भेजना का फैसला काफी मुश्किल है.
बच्चों को स्कूल भेजना चाहिए या नहीं?
हमने देश के कई राज्यों से स्कूलों के न्यू नॉर्मल हालात पर विस्तृत रिपोर्टिंग की है. जिसे देखकर आप भी तय कर पाएंगे कि आपको अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहिए या नहीं.
सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजेशन, थर्मल स्कैनिंग, व्यवस्था का पूरा ताम झाम, लेकिन छात्र नदारद. चंडीगढ़ में 9वीं से 12वीं यानी चार कक्षाओं के लिए स्कूल खोले गए लेकिन छात्र केवल एक.
यहां तो फिर भी एक स्टूडेंट ने हिम्मत की. लेकिन बिहार की राजधानी पटना, मध्य प्रदेश के बैतूल और जम्मू में ऐसे स्कूल भी थे जहां टीचर तो स्कूल के आदेश की मजबूरी में पहुंच गए लेकिन एक भी छात्र, स्कूल नहीं पहुंचा. सरकारी स्कूल हो या प्राइवेट स्कूल, सब जगह कोरोना का खौफ शिक्षा पर हावी था.
लोगों को स्कूल की व्यवस्था पर संदेह
हरियाणा के सोनीपत और करनाल में भी बच्चों के लिए इसी तरह के इंतजाम नजर आए. बच्चों ने ऑनलाइन क्लास की दिक्कतों को अपने अध्यापकों के साथ साझा किया. हरियाणा में अध्यापकों को कोरोना वायरस का टेस्ट करवाने के बाद ही आने की अनुमति दी गई है. हालांकि सभी स्कूलों में उपस्थिति न के बराबर रही, लेकिन जो आए वो महीनों बाद स्कूल आने के अनुभव से ही खुश थे.
कई स्कूल कोरोना से जुड़े दिशा निर्देशों को लेकर बेहद सतर्क थे. इमरजेंसी कोविड रूम, डॉक्टर की व्यवस्था और हेल्पलाइन की जानकारी समेत सभी नियमों का पालन किया गया.
बच्चे स्कूल जाकर उत्साह से भरे थे लेकिन अभिभावक डरे हुए थे कुछ लोगों को स्कूल की व्यवस्था पर संदेह था. ज्यादातर अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अभी तैयार नहीं हैं.
अटेंडेंस 9 प्रतिशत से भी कम
भारत के 9 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आज स्कूल तो खुल गए लेकिन कुल मिलाकर अटेंडेंस 9 प्रतिशत से भी कम रही है. कर्नाटक और दिल्ली ने स्कूल खोलने के फैसला करने के बाद आखिर वक्त में उसे पलट दिया है. जहां स्कूल नहीं खुले हैं वो राज्य अब 2 अक्टूबर को ये फैसला लेंगे. अब ये देखना बाकी है कि जहां खुले हैं वहां स्कूलों का जज्बा बाकी बच्चों को भी स्कूल बुला पाने में सफल हो पाता है या कोरोना का खतरा हर चिंता पर भारी पड़ता है.
संक्रमण के मामले में भारत दूसरे नंबर पर
कोरोना काल में भारत में तो आंशिक तौर पर स्कूल खुल गए हैं. अब हम आपको बताते हैं दुनिया में स्कूल खुलने को लेकर किस तरह अलग-अलग राय है.
जनसंख्या और कोरोना संक्रमण के मरीजों की बात करें तो भारत में स्कूल खोलने का फैसला साहसिक फैसला कहा जा सकता है. कोरोना संक्रमित देशों में भारत दूसरे स्थान पर है.
भारत में कोरोना वायरस के कुल मरीजों की संख्या तकरीबन 55 लाख है. अमेरिका पहले नंबर पर है. वहां कोरोना वायरस के 68 लाख मरीज हैं. अमेरिका के कुछ राज्यों में थोड़े बहुत स्कूल खोले गए हैं. ब्राजील तीसरे नंबर पर है. ब्राजील में कोरोना वायरस मरीजों की संख्या 45 लाख है. हालांकि ब्राजील ने भी अब आंशिक तौर पर यानी कम संक्रमण वाले शहरों में स्कूल खोल दिए हैं.
यही हाल बाकी देशों का है. हर जगह कुछ कुछ शहरों में स्कूल खोले गए हैं.
रूस में फिर से बंद करने पड़े स्कूल
रूस, कोरोना वायरस मरीजों की संख्या में चौथे नंबर पर है. यहां मास्क और तमाम सावधानियों के साथ स्कूल खोल दिए गए हैं. जापान में छात्र एक दिन के अंतराल पर स्कूल जाते हैं जिससे क्लास में आधी सीटें खाली रहें, और सोशल डिस्टेंसिंग आसान हो. फ्रांस में एक बार स्कूल खोलने का फैसला लिया गया लेकिन कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ी तो कई शहरों में फिर से स्कूल बंद करने पड़े.
इन बातों का रखें ध्यान
जान है तो जहान है. इसी सिद्दांत पर आज स्कूलों में छात्रों की अटेंडेंस कम हो रही है. हालांकि कोरोना वायरस के साए में जी रहे देश में माता पिता और छात्रों के लिए स्कूल जाने की चुनौती वाला कल पहला दिन था लेकिन अगर आप भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने का मन बना रहे हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा.
-बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो तभी उसे स्कूल भेजें.
-मास्क और सैनिटाइजर के साथ ही बच्चे को स्कूल भेजें.
-किसी विषय के विशेष मार्गदर्शन की जरूरत हो तभी उसे स्कूल भेजें. जिससे वो स्कूल में कम से कम वक्त बिताए.
-बच्चों को ताजा और पौष्टिक खिलाएं जिससे उसकी रोगों से लड़ने की क्षमता अच्छी रहे. ये संक्रमण होने की स्थिति में भी बच्चे की इम्युनिटी को मजबूत रखेगा.
-बच्चों को अस्थमा या सांस से जुड़ी कोई और परेशानी हो तो उसे स्कूल न भेजें.
हालांकि देखा गया है कि बच्चे कोरोना वायरस से तेजी से रिकवर हो जाते हैं लेकिन ये बीमारी फेफड़ों और दिल पर हमेशा के लिए बुरा असर डालने की ताकत भी रखती है. इसलिए बच्चों के मामले में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. स्वास्थ्य और शिक्षा के बीच संतुलन बनाते हुए ही आगे बढ़ने में समझदारी है. जिससे आपके बच्चे का एक साल भी व्यर्थ न जाए और उसका स्वास्थ्य भी सलामत रहे.