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गहलोत सरकार का बड़ा फैसला, 45 दिन में मिलेगी अनुकंपा नियुक्ति, नहीं लगाने पड़ेंगे दफ्तरों के चक्कर

Rajasthan Govt News: राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति को लेकर एक अहम व्यवस्था जारी करते हुए यह भी तय कर दिया है कि समय सीमा के भीतर आवेदक को नियुक्ति नहीं मिली, तो कौन ज़िम्मेदार होगा.

जयपुर. राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अनुकंपा नियुक्ति मामले में बड़ी राहत दी है. सरकार के नए निर्देश के बाद अब सिर्फ 45 दिनों के भीतर अनुकंपा नियुक्ति मिल सकेगी. अब तक आवेदन की प्रक्रिया जटिल होने कारण समय पर अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिल पाती थी और आवेदकों को विभागों के चक्कर लगाने पड़ते थे. अब राज्य सरकार ने नोडल अधिकारी और केस अधिकारी नियुक्त कर उनकी ज़िम्मेदारी तय कर दी है. कार्मिक विभाग ने सभी ज़िला कलेक्टरों, ACS और सचिवों को परिपत्र जारी कर दिया है. नई व्यवस्था के तहत किसी राजकीय कर्मी की सेवाकाल में मौत होने पर केस प्रभारी परिजनों को अनुकम्पा नियुक्ति दिलवाएगा.

क्या होगी अफसरों की ज़िम्मेदारी?
– नियुक्ति नहीं मिलने की ज़िम्मेदारी नोडल अफसर व केस प्रभारी की होगी.
– विभाग से आवेदन लेने पर उसकी सारी जांच करने का दायित्व नोडल अफसर का होगा.
– आवेदन में कमी को 30 दिन के भीतर पूरा करवाना होगा.
– HOD व केस प्रभारी मृतक के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन की प्रक्रिया बताएंगे.
– नोडल अधिकारी HOD स्तर से जारी होने वाले आदेश/प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज़ तैयार करेंगे.
– नोडल अधिकारी को डीओपी के साथ तालमेल बनाना होगा.
– आवेदन के बाद सक्षम स्तर से अनुमोदन करवाकर 45 दिन में नियुक्ति देना होगी.

– केस प्रभारी आवेदन के बारे में परिजनों को जानकारी देंगे.
– आवेदन पत्र देने के बाद पात्र आश्रित से तय समय में आवेदन लेंगे.
– आवेदन के समय HOD स्तर पर ज़रूरी औपचारिकताएं पूरी करवाएंगे.
– 15 दिन में आवेदन पूरा कराते हुए HOD ऑफिस को भेजना सुनिश्चित करवाएंगे.
– HOD के ज़रिये नोडल अधिकारी के संपर्क में रहेंगे.
– नोडल अधिकारी के बताए जाने पर आवेदन की कमी को तुरंत ठीक करवाएंगे.
– वे नियुक्ति आदेश होने पर मृत कर्मचारी के आश्रित को सूचित करेंगे.

कुल मिलाकर अब अनुकंपा नियुक्ति के मामलों का अगर समय सीमा के भीतर निपटारा नहीं होता है या अनावश्यक देर होती है, तो इसके लिए केस प्रभारी व नोडल अफसर को ज़िम्मेदार माना जाएगा. यह अहम बात है क्योंकि मृत सरकारी कर्मचारियों के परिजनों को महीनों, यहां तक कि कुछ मामलों में सालों तक इंतज़ार करना पड़ता था कि उन्हें अनुकंपा नियुक्ति मिले.

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