Jharkhand News Lohardaga Samachar लोहरदगा के मुर्की गांव के रहने वाले सुरेश हर माह जैविक खाद से डेढ़ लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं। सुरेश से प्रेरित होकर गांव के दर्जनों लोग जैविक खाद तैयार कर रहे हैं। पूरा गांव जैविक खाद का ही उपयोग करता है।
सेन्हा (लोहरदगा), [गफ्फार अंसारी]। रासायनिक खाद के इस्तेमाल से उपजी फसलें जहां हमें चौतरफा नुकसान पहुंचा रही हैं, वहीं परंपरागत तौर पर जैविक खाद का मजबूत विकल्प उपलब्ध होने के बाद भी इसका इस्तेमाल नहीं करना खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के मुर्की गांव निवासी सुरेश मुंडा ने जब इस मंत्र को समझा तो उन्होंने जैविक खाद इस्तेमाल करने के साथ इसे रोजगार का भी साधन बना लिया। जैविक खाद तैयार कर सुरेश मुंडा सलाना एक से डेढ़ लाख रुपये तक की कमाई कर रहे हैं।
सुरेश की सफलता देखकर अब गांव के दर्जनों अन्य लोगों ने भी जैविक खाद के उत्पादन को अपनी आमदनी का जरिया बनाया है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी हो रहा है कि लोहरदगा के इस गांव में लगभग सभी लोग जैविक खाद का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। सुरेश बताते हैं कि जैविक खाद के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा क्षमता भी बढ़ रही है और लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। अनाज, सब्जियों व अन्य फसलों की पौष्टिकता बढ़ने के कारण लोग हमारी फसलें ज्यादा कीमत देकर भी खरीदने को तैयार रहते हैं।
महिला मंडल से मिली प्रेरणा
सुरेश मुंडा बताते हैं कि उन्हें आज से पांच वर्ष पहले गांव के ही कुछ लोगों ने जैविक खाद के उत्पादन और प्रयोग के लिए प्रेरित किया। फिर इस बारे में कुछ कृषि विशेषज्ञों से बात की और इसे रोजगार के तौर पर अपनाया। गोबर के खाद से अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं, यह तो पता था, लेकिन इससे बड़े पैमानी पर आमदनी भी कर सकते हैं, इसकी जानकारी नहीं थी। शुरुआत में गोबर से बिना पूंजी के कमाई होने लगी। बाद में इसका दायरा बढ़ाने के लिए गोबर खरीद कर उससे जैविक खाद तैयार करने लगे। जैविक खाद तैयार होने के बाद व्यापारी गांव आकर यहीं से जैविक खाद खरीद कर ले जाते हैं। गांव में अब करीब 60 लोग जैविक खाद तैयार कर रहे हैं।
सात से आठ रुपये प्रति किलो की दर से बिक जाती है खाद
सुरेश बताते हैं कि एक ट्रैक्टर ट्राॅली गोबर 2500 रुपये में मिलता है। केंचुआ भी आसानी से गांव में उपलब्ध हो जाता है। इसके बाद इसे प्रोसेस करने और मजदूरी आदि में प्रति किलो लगभग दो रुपये का अतिरिक्त खर्च आता है। तैयार होने के बाद यह खाद बाजार में सात से आठ रुपये प्रति किलो की दर से बिक जाती है। लोहरदगा के अलग-अलग क्षेत्रों के अलावा रांची, गुमला, लातेहार, पलामू आदि क्षेत्र के व्यापारी भी इसे खरीद कर ले जाते हैं।
अन्य किसानों को भी देते हैं प्रशिक्षण
सुरेश गांव के दूसरे लोगों को भी जैविक खाद तैयार करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण भी देते हैं। बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़ रहे हैं। हालत यह है कि मुर्की गांव में प्रत्येक घर में जैविक खाद तैयार किया जा रहा है। इससे सुरेश सहित गांव के लोग आत्मनिभर हो रहे हैं। बकौल सुरेश आसपास के अन्य गांवों में आम की बागवानी, धान और गेहूं की खेती, सब्जियों की खेती समेत तमाम फसलों के उत्पादन में जैविक खाद का उपयोग किया जाता है। जैविक खाद का सबसे अधिक उपयोग धान की खेती और सब्जियों की खेती में हो रहा है। अब गांव के लोग खेत और खेती में रासायनिक खाद का कम उपयोग करते हैं।
बनाना भी आसान और बेचना भी
सुरेश से प्रभावित होकर मुर्की गांव के राजेश मुंडा, जगदीश मुंडा, गंगा उरांव, मैमून खातून, रानी देवी, कौशल्या देवी, सुशांति उरांव जैविक खाद बनाकर इसे जीविका के रूप में अपना चुके हैं। राजेश मुंडा कहते हैं कि पहले गोबर जी का जंजाल बना रहता था। अब जैविक खाद बनाकर बेचने व अपने खेतों में भी इस्तेमाल करने से आमदनी भी अच्छी हो रही है और पैदावार भी। जैविक खाद की मांग के साथ हमारी आमदनी भी बढ़ रही है। इसे बनाना भी आसान है और बिक्री में भी कोई परेशानी नहीं है। खेती-किसानी से जुड़े लोगों के लिए यह बेहतर व्यवसाय है। प्रगतिशील किसान सुरेश कहते हैं कि जैविक खाद अपने खेतों में उपयोग करने से रासायनिक खाद में होने वाला खर्च बचता है। वहीं खेत की मिट्टी भी खराब नहीं होती है।
मुर्की गांव में जैविक खाद अधिक मात्रा में तैयार होती है। ये किसान अन्य गांवों के किसानों के लिए भी मिसाल पेश कर रहे हैं। प्रखंड क्षेत्र की हर पंचायत में किसानों को प्रशिक्षण देकर इससे जोड़ा जाएगा। इसके माध्यम से लोगों को रोजगार गांव में देने का प्रयास किया जाएगा। सुरेश ने सबसे पहले यह काम शुरू किया। धीरे-धीरे वहां के कई किसान जुड़े और समृद्ध हुए।