मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर से पहले विधानसभा सदस्य निर्वाचित होना है। कांग्रेस का दावा है कि अब अगर मुख्यमंत्री उपचुनाव लड़ते है तो यह असंवैधानिक होगा।
उत्तराखंड में एक बार फिर संवैधानिक संकट गहराने लगा है। पिछले 20 साल में 9 मुख्यमंत्री प्रदेश पर राज कर चुके हैं। साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बहुमत सरकार के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। 4 साल के कार्यकाल के बाद बीजेपी के केंद्रीय संगठन ने उन्हें हटा दिया और पौड़ी से सांसद तीर्थ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। 10 मार्च को तीर्थ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
संवैधानिक नियम अनुसार, मुख्यमंत्री को 6 महीन के भीतर विधानसभा का निर्वाचित सदस्य बनना है। कांग्रेस पार्टी का दावा है कि अब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता और अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की सदस्य गरिमा मेहरा दसौनी ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को बताया कि लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151(क) के तहत जिस प्रदेश में आम चुनाव होने में 1 साल से कम का समय शेष हो, वहां पर उपचुनाव नहीं हो सकता और उत्तराखंड में 2022 में आम चुनाव है।
कांग्रेस का दावा, प्रदेश में फिर आया संवैधानिक संकट
मेहरा ने कहा कि ऐसे में अब प्रदेश में फिर राजनीतिक और संवैधानिक संकट आ चुका है। अब बीजेपी या तो विधायक दल से कोई मुख्यमंत्री घोषित करे या फिर राष्ट्रपति शासन लगे। वहीं दूसरी ओर जब इस बारे में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक से बात की गई तो उन्होंने कांग्रेस पर ही आरोप लगा दिए। कौशिक ने कहा कि कांग्रेस चुनाव से डर रही है। जब मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शपथ ली थी तब 1 साल से ज्यादा का समय शेष था, इसलिए चुनाव में कोई संवैधानिक संकट नहीं है। चुनाव आयोग अपना काम करेगा। पार्टी चुनाव के लिए तैयार है और भारी बहुमत से बीजेपी यह सीट भी जीतेगी।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर से पहले विधानसभा सदस्य की शपथ लेना अनिवार्य है। अगर मुख्यमंत्री जीत जाते हैं तो 14 दिन के भीतर ही मुख्यमंत्री को सांसद के पद से इस्तीफा देना होगा, जिसके बाद पौड़ी लोकसभा सीट पर उपचुनाव होगा।