बिहार की सियासत में चिराग वाला ‘तीर’ बिल्कुल निशाने पर लगा है। कल तक जो लोग फुदक रहे थे वो भी शांत पड़ गए होंगे। सबसे ज्यादा अलर्ट जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी हुए होंगे। ऐसा माना जा रहा था कि ये लोग लालू यादव के भी संपर्क में थे। मांझी ने तो इसे स्वीकार किया था जबकि मुकेश सहनी ने पूछे जाने पर खंडन नहीं किया था।
हाइलाइट्स:
- बिहार की सियासत में निशाने पर चिराग वाला ‘तीर’
- जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को भी मिला मैसेज?
- मांझी और सहनी को लालू यादव के संपर्क में रहने की चर्चा
पटना
दो दिन पहले तक उछल रहे मांझी और सहनी ‘चिराग कांड’ से सहम जरूर गए होंगे। लालू यादव से फोन हुई बात को बड़े ही रहस्यमय तरीके से मीडिया में पेश कर रहे थे। जीतन राम मांझी राजनीति की ‘गूढ़’ बातें समझा रहे थे तो सहनी वादा याद दिलाने की हिदायतें दे रहे थे।
रेत की तरह फिसल गई चिराग के हाथ से राजनीति
नीति आयोग को डेवेलपमेंट के अलावा ‘पॉलिटिकल इंडेक्स’ भी तैयार करना चाहिए। यकीन मानिए उसमें बिहार बिल्कुल टॉप पर रहेगा। बिहार की राजनीति इतनी महीन है कि अगर नहीं पकड़ पाए तो रेत की तरह हाथ से फिसल जाएगी। चिराग पासवान के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। रेट्रो क्लचर में पले-बढ़े चिराग बिहारी पॉलिटिक्स को समझ ही नहीं पाए। चाचा (पशुपति पारस) के दरवाजे पर गाड़ी में बैठे हॉर्न बजाते रहे और गेट खुलने में 45 मिनट लग गए। बाद में चाची से दुखड़ा सुनाकर लौट आए। चिराग के पहुंचने से पहले पशुपति पारस घर से जा चुके थे। जो सांसद एक इशारे पर दिल्ली से पटना और पटना से दिल्ली की दौड़ लगाते थे, उन्होंने फोन तक उठाया।
मांझी और सहनी की ‘चिराग कांड’ पर पैनी नजर
बिहार की राजनीति का पूरा खेल दिल्ली में खेला गया गया। सेटिंग ऐसी कि पटना की पार्टी ऑफिस से कब चिराग पासवान का नेम प्लेट उखाड़कर पशुपति पारस का लगाया गया, किसी को पता भी नहीं चला। दिल्ली से एक हजार किलोमीटर दूर बैठे दो पार्टियों के सुप्रीमो जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी पलपल का अपडेट लेते रहे। एक दिन पहले तक नीतीश सरकार को कर्म और धर्म याद दिला रहे थे। ‘चिराग कांड’ के बाद मौन साध गए।
राजनीति में काम आ रहा बचपन का ‘पुड़िया ज्ञान’
कम संसाधन से काम चलाने में माहिर नीतीश कुमार जब एक ‘तीर’ चलाते हैं तो उससे कई निशाने सधते हैं। 17 मार्च 2018 को पटना के ज्ञान भवन में आयुर्वेदिक डॉक्टरों के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘हम स्कूल में पढ़ते थे तो देखते थे कि पिताजी खुद दवा बनाकर लोगों का इलाज करते थे। वह खुद चूर्ण को पुड़िया में बांधकर लोगों को दवा देते थे। जब मैं पढ़कर शाम में स्कूल से लौटता था तो मैं भी पुड़िया बनाता था।’ उन्होंने कहा कि ‘बचपन से ही हम अच्छा पुड़िया बनाते हैं जो फेंकने पर भी नहीं खुलेगा।’
क्या चिराग पासवान का बड़बोलापन ले डूबा?
कम वोट बैंक (कैडर) की बदौलत पिछले साढ़े 15 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार से चिराग पासवान ने बैर मोल लिया। 2020 विधानसभा चुनाव में जेल भेजने तक की धमकी दे डाली। सभा में आए लोगों की तालियों से चिराग पासवान काफी खुश होते थे। मगर नीतीश कुमार इसकी पूरी फाइल तैयार करते जा रहे थे। आज तक लालू यादव या तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार को जेल भेजने की बात नहीं कही है। राजनीतिक बयानबाजी कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए ठीक है, मगर जरूरत से ज्यादा हांकना कई बार भारी पड़ जाता है। चिराग पासवान के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव को नीतीश कुमार नहीं भूले
ये हकीककत है कि चिराग पासवान को बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त मनाने की बहुत कोशिशें हुई लेकिन वो एनडीए के पार्टनर बनने को तैयार नहीं हुए। तब उन्होंने पार्टी को अपनी उंगली पर नचाया। पॉजिटिव पॉलिटिक्स की बजाए निगेटिव राजनीति की ओर चले गए। विधानसभा चुनाव उन्होंने जीतने के लिए नहीं बल्कि नीतीश कुमार को हराने के लिए लड़ी। सार्वजनिक तौर पर इसका ऐलान भी किया। अपने तो कुछ नहीं कर पाए लेकिन नीतीश कुमार को 30 से ज्यादा सीटों (अनुमान) का नुकसान जरूर हुआ। इसका सीधे-सीधे फायदा आरजेडी को मिला। जो कि बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर आ गई।
‘चिराग कांड’ से मांझी और सहनी ने क्या सीखा?
जेडीयू से जुड़े लोग सीधे-सीधे तो नहीं कह रहे हैं कि उनका ‘चिराग कांड’ में कोई हाथ है। ना ही पशुपति पारस ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर माना। मगर इस पूरे सियासी हलचल से अगर सबसे ज्यादा कोई खुश होगा तो वो है जेडीयू का खेमा। नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान लगातार बयानबाजी कर रहे थे। इधर, हम सुप्रीमो जीतन राम मांझी पीएम मोदी के खिलाफ बयान दे रहे थे और लालू यादव के बेटे तेजप्रताप से मिले थे। लालू यादव से फोन पर बात भी किए थे। वहीं, एनडीए के दूसरे पार्टनर मुकेश सहनी नीतीश सरकार को वादों की याद दिला रहे थे। हिदायत भी दे रहे थे। लालू यादव से फोन पर हुई बात को पर्दे में रखने की सलाह दे रहे थे। बिहार की सियासत में ‘चिराग कांड’ कई लोगों को मेसेज भी दे गया।
नीतीश कुमार के पास ‘ऑपरेशन’ एक्सपर्ट्स की टीम
‘ऑपरेशन’ को अंजाम देने के लिए नीतीश कुमार के पास एक्सपर्ट्स की टीम है। ‘ऑपरेशन चिराग’ को मुकाम तक पहुंचाने के लिए दिल्ली में ललन सिंह और महेश्वर हजारी लंबे समय से लगे हुए थे। जिसका नतीजा है कि कुछ दिन पहले एलजेपी के इकलौते विधायक राजकुमार सिंह नीतीश के पाले में आ गए और इकलौती विधान पार्षद नूतन सिंह बीजेपी में शामिल हो गईं। अब अपनी ही पार्टी में चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए। उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी समेत जेडीयू में लाने के लिए नीतीश कुमार ने वशिष्ठ नारायण सिंह को जिम्मेदारी दे रखी थी। जो कामयाब रहा। इसके अलावा बीएसपी और निर्दलीय विधायक को पार्टी में लाने का काम मंत्री अशोक चौधरी ने किया। महागठबंधन से जुड़ी पार्टियों के विधायक भी अशोक चौधरी के संपर्क में रहते हैं। ऐसे में मांझी और सहनी ज्यादा इधर-उधर किए उनके लिए भी कोई न कोई ‘ऑपरेशन’ चला रहा होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।