Madhya Pradesh News: पिछले साल लॉकडाउन के दौरान घर पर फालतू बैठे युवराज ने अपने पिता के साथ खेती करने का मन बनाया और परम्परागत खेती से हटकर पपीते की खेती शुरू की. मोबाइल पर खेती की उन्नत तकनीकी और बारीकी जानी और अपने पिता की 22 बीघा जमीन में से 2 बीघा जमीन पर जैविक पद्धति से पपीते की खेती शुरू की और आज लाखों की कमाई कर रहा है.
कहते है कि काबीलियत हो तो कोई भी काम कर फायदा उठाया जा सकता है. मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के एक छोटे से ग्राम में रहकर पल-बड़कर शहर में अच्छी नौकरी कर रहा एक युवा 2020 में लगाए गए लॉकडाउन में गांव में ही फंस गया, तो प्रसिद्ध फार्मा कम्पनी में नौकरी छोड़ जैविक पद्धति से खेती शुरू की और खेती को लाभ का धंधा बना लिया.आगर मालवा जिले के छोटे से ग्राम सलियाखेड़ी में रहने वाले युवराज पाटीदार फार्मा की प्रसिद्ध कम्पनी ल्युपिन में सीनियर क़्वालिटी कंट्रोलर की पोस्ट पर काम करते थे. उससे पहले दमन में भी एल्केम फार्मा में जॉब कर रहे थे. करीब 5 साल से नौकरी के बाद जब 2020 में लॉकडाउन लगा तो अपने गांव मे ही फंस गए. फालतु बैठे युवराज ने अपने पिता के साथ खेती करने का मन बनाया और परम्परागत खेती से हटकर पपीते की खेती शुरू की. मोबाइल पर खेती की उन्नत तकनीकी और बारीकी जानी और अपने पिता की 22 बीघा जमीन में से 2 बीघा जमीन पर जैविक पद्धति से पपीते की खेती शुरू की.
युवराज के पिता ओंकारलाल पाटीदार ने बताया कि परंपरागत रूप से सोयाबीन, गेंहू, चने आदि की ही फसल का उत्पादन करते थे, लेकिन युवराज की युवा सोच ने इससे हटकर खेती करने की ठानी. पिता का साथ मिला और प्रयोग के तौर पर पहले केवल 2 बीघा जमीन पर पौधे लगाकर पपीते की खेती शुरू की. ड्रिप लाइन डालकर पानी की कमी को दूर किया. समय समय पर जैविक खाद व जैविक रसायन डालकर पौधों को बड़ा किया।.
युवराज बताते है कि शुरू में थोड़ी परेशानी भी आई और शहर से नौकरी छोड़ खेती करना अटपटा भी लगा, लेकिन धीरे-धीरे खेत मे काम करने में आंनद आने लगा. युवराज बताते है अभी 1 वर्ष में ही अच्छी पैदावार हुई है. आगे 3 वर्षों तक इससे फल लिए जा सकेंगे. युवराज को इन पपीतों को बेचने में भी शुरू में परेशानी आई, मंडियों में बेचने गए तो भाव बहुत ही कम मिला. तो युवराज ने अपना नया कंसेप्ट निकाल लिया. खेत राजमार्ग के किनारे था तो युवराज ने खेत के बाहर ही इन पपीतों को बेचना शुरू किया. साथ ही ग्राहकों को ऑफर दिया कि खेत मे से जो मर्जी हो वह पपीता तोड़ कर अपनी पसंद का खरीद सकते है. इससे बाहरी राहगीरों का बहुत अच्छा रिस्पॉन्स तो मिला ही अच्छे भाव भी मिल गए. इस व्यवस्था से लोगों को बिना केमिकल के एकदम ताजे पपीते मिल गए और युवराज को घर बैठे खरीददार.
युवराज के अनुसार, जहां पहले परम्परागत खेती में एक बीघा से तीस चालीस हजार रुपए ही मिल पाते थे, परंतु 2 बीघा की पपीते की इस खेती में उन्हें करीब 5 से 6 लाख रुपए की सालाना आय होगी. खेती के साथ उच्च शिक्षा प्राप्त यह युवा नई तकनीकी के आधार पर डेयरी फार्मिंग करने की योजना भी बना रहा है.