नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सरकारी दिशा-निर्देशों के पालन में नाकाम रहने होने वाले फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप जैसे कुछ इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म की ओर से वक्त मांगा जा रहा है, तो कुछ पूरी तरह चुप्पी साधे हैं। माना जा रहा है कि बुधवार को खत्म हो रही समयसीमा में कुछ मोहलत दी जा सकती है। लेकिन सरकार के अंदर यह मन बन चुका है कि उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह निरंकुश और सर्वशक्तिमान होने की छूट बिल्कुल नहीं दी जा सकती। इतिहास गवाह है कि ईस्ट इंडिया कंपनी कमाई तो भारत में करती रही, लेकिन उसके नियम-कायदे इंगलैंड के होते थे।
इन्हें किसी हाल में ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं बनने देगी सरकार
सरकारी सूत्रों के अनुसार ये कंपनियां भी कुछ इसी तरह व्यवहार कर रही हैं। फेसबुक, ट्विटर जैसी कंपनियां इतना मामूली और जायज आदेश मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं कि वे भारत के अंदर ऐसा आफिस बनाएं और ऐसे अधिकारी नियुक्त करें, जिनसे किसी शिकायत के निपटारे के लिए संपर्क साधा जा सके। क्या इतनी बड़ी कंपनी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह आपत्तिजनक पोस्ट पर तत्काल कार्रवाई करे और पारदर्शी रूप से यह बताए कि वह किसी आधार पर किसी के पोस्ट को ब्लॉक करता है। क्या संबंधित व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उसकी सुनवाई नहीं होनी चाहिए।
नियम न माने तो डिजिटल मीडिया की श्रेणी में कर दी जाएंगी ये कंपनियां
बहरहाल, अधिकारी मानते हैं कि इन कंपनियों का भारत में बहुत बड़ा ग्राहक वर्ग है और ऐसे में उन्हें थोड़ा वक्त मिल सकता है, लेकिन बिना शर्त के नहीं। वक्त इस चेतावनी के साथ दिया जाएगा कि अब नहीं माने तो निश्चित रूप से कार्रवाई होगी।
सूत्रों के मुताबिक अगर ये प्लेटफार्म्स इन निर्देशों का पालन करने से इन्कार कर देते हैं तो वे अपना इंटरमीडिएरीज का दर्जा खो देंगे और वे डिजिटल मीडिया की तरह हो जाएंगे। यानी उन्हें हर पोस्ट के लिए जिम्मेदार माना जाएगा और उन पर आपराधिक कानून पर लागू होगा। वहीं दूसरी ओर से डिजिटल मीडिया होने पर उन्हें भारत से अपना कारोबार भी समेटना पड़ सकता है क्योंकि डिजिटल मीडिया में विदेशी निवेश की सीमा अलग है।