देश में पहले भी इस तरह के किस्से सामने आते रहे हैं कि कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिभा कितनी बदहाली में गुज़र बसर कर रही है. हालात अब भी बदले नहीं है, इसकी गवाही झारखंड के धनबाद से आई खबर दे रही है.
नई दिल्ली. झारखंड से ताल्लुक रखने वाली एक इंटरनेशनल फुटबॉलर संगीता कुमारी अपने परिवार को पालने के लिए ईंट के भट्टे में बेगारी करने पर मजबूर है. अब इस मामले को सुलझाने में कम से कम तीन पार्टियां बन गई हैं, पहली झारखंड सरकार, दूसरी राष्ट्रीय महिला आयोग और तीसरी सोशल मीडिया. और 20 वर्षीय मजबूर संगीता तो है ही. संगीता के बहाने हालात को ये पंक्तियां बयान कर रही हैं : ‘तरक़्क़ी हो गयी? अच्छा! यहां की तो ख़बर है ये/कभी दिल बैठ जाता है कभी सूरत उतरती है.’
कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन हुआ और यह संगीता के जीवन पर भारी पड़ गया. गरीब लेकिन बड़े संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखने वाली संगीता के लिए ये हालात इतने कठोर रहे कि उसे खेल की प्रैक्टिस बंद करके परिवार के लिए मेहनत मज़ूदरी करना पड़ रही है. सुबह 10 से शाम 5 बजे तक संगीता जब ईंटें उठाती है, तब उसे दिन भर के 150 से 200 रुपये मिल पाते हैं. बीते शनिवार को संगीता की पूरी कहानी रोशनी में आई. जानिए क्या है पूरा मामला.
महिला आयोग ने राज्य को लताड़ा
राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख रेखा शर्मा ने संगीता की इस बदहाली को रेखांकित करते हुए झारखंड सरकार को चिट्ठी लिखकर कड़ी आलोचना की. इसमें कहा गया ‘संगीता की यह हालत देश को शर्मसार करती है इसलिए इसे प्राथमिकता पर लेना चाहिए. न सिर्फ भारत बल्कि संगीता खेल के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड का नाम ले जा चुकी हैं, यह भूलना नहीं चाहिए.’
इस चिट्ठी के बाद बीते शनिवार से ही संगीता के लिए सोशल मीडिया पर हक की आवाज़ उठी और सरकारों की आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हुआ. इसके बाद से संगीता की हालत पर सरकारी और प्रशासनिक दिलचस्पी को लेकर खबरों का दौर शुरू हुआ.
क्या कहता है झारखंड?
राज्य खेल सचिव पूजा सिंघल के हवाले से खबरों में कहा गया कि संगीता को वित्तीय सहयोग देने के तमाम कदम उठाने के लिए धनबाद के कलेक्टर को पूरा मामले की पड़ताल करने के निर्देश दिए गए हैं. वहीं, कुछ अनाम सूत्रों के हवाले से कहा गया कि ‘नेशनल ट्रायल के लिए कतार में रही संगीता को सपोर्ट मिलना ही चाहिए. कम से कम खिलाड़ियों को मिलने वाली स्कॉलरशिप तो उसका अधिकार है ही.’
क्या है संगीता की आपबीती?
बदहाली और वित्तीय मदद की बातों के बीच संगीता बताती हैं कि पिछले साल उन्होंने स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई किया था, लेकिन अब तक कोई रकम नहीं मिली. संगीता के हवाले से रिपोर्ट्स में बताया गया कि उनके परिवार में एक बड़ा भाई, एक छोटा और तीन बहनें हैं. पिता की नज़र न के बराबर रह गई है इसलिए परिवार के वयस्क बच्चों को ही घर चलाना है.
संगीता की मांगें कुछ ज़्यादा नहीं हैं, वहीं खास बात यह है कि मुश्किल हालात ने भी उसकी हिम्मत को तोड़ा नहीं है. वह बताती है कि इन दिनों में भी वह रोज़ सुबह 6.30 बजे से 9.30 बजे तक स्टेडियम जाकर प्रैक्टिस करती रही और उसके बाद बेगारी के लिए भट्टे पर पहुंचती रही.