जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) समेत कई संस्थानों की तरफ से हाल के दिनों में दुनिया में वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर जताई गई चिंता के बावजूद इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है। एक तरफ अमीर देश अपनी जरूरत से ज्यादा वैक्सीन स्टाक करते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कम आय वर्ग वाले देशों के समक्ष वैक्सीन संकट गहराता जा रहा है।
इन देशों के पास पर्याप्त वैक्सीन
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन जैसे देशों के पास उनकी पूरी आबादी को देने लायक वैक्सीन की डोज हैं और ये अपनी 35 से 85 फीसद तक आबादी को वैक्सीन की कम से कम एक डोज दे भी चुके हैं। जबकि, ऐसे दर्जनों देश हैं जहां एक फीसद आबादी को भी एक डोज तक नहीं लगाई जा सकी है। तमाम एजेंसियां मान रही हैं कि यह असमानता कोरोना को खत्म करने की लड़ाई को कुंद कर सकती हैं।
ऐसे तो लग जाएंगे कई दशक
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के मुताबिक इथियोपिया, कांगो, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, सूडान समेत सभी अफ्रीकी देशों में कुल आबादी का 0.1 से 2 फीसद का ही टीकाकरण हुआ है। इस रफ्तार से अगर इन्हें वैक्सीन दी गई तो पूरी आबादी को वैक्सीन देने में कई दशक लग जाएंगे। भारत की तरफ से वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इन देशों को सिर्फ चीन का आसरा है।
अमेरिका ने भी दिया मदद का भरोसा
अमेरिका ने हाल ही में कोरोना वैक्सीन की छह करोड़ डोज दूसरे देशों को देने का एलान किया है लेकिन इसमें से गरीब देशों तक कितनी डोज पहुंचेगी, यह अभी तय नहीं है। आइएमएफ की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका के पास अगस्त, 2021 तक 35 करोड़ अतिरिक्त वैक्सीन होगी जिसे वह चाहे तो दूसरे देशों को दान कर सकता है।
एशियाई देशों में भी टीकाकरण की रफ्तार सुस्त
एशिया के कई देशों में कोरोना महामारी की दूसरी लहरा का प्रकोप ज्यादा है और इन देशों में टीकाकरण की रफ्तार भी बहुत सुस्त है। 22 मई तक के डाटा के मुताबिक भारत अपनी 15 फीसद आबादी को टीके की कम से कम एक डोज दे चुका है। पाकिस्तान में सिर्फ 2.3 फीसद, नेपाल में 9.2 फीसद, बांग्लादेश में 06 फीसद, अफगानिस्तान में 1.4 फीसद आबादी को ही अभी वैक्सीन की एक डोज मिल सकी है। जबकि, चीन में 35 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाई जा चुकी है।
वैक्सीन का अंतर आगे भी बना रहेगा
आइएमएफ की तरफ से 22 मई को प्रकाशित एक नोट के मुताबिक विभिन्न देशों के बीच टीकाकरण में आगे भी जारी रहेगा। यह असमानता उन देशों के लिए भी खतरा है जो तेजी से वैक्सीन लगा रहा हैं, क्योंकि जब तक पूरी दुनिया इस वायरस से सुरक्षित नहीं होगी, वो भी सुरक्षित नहीं होंगे। ऐसे में कम आय वर्ग वाले 91 देशों (भारत व चीन को छोड़ कर) को बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद की जरूरत है ताकि वह वैक्सीन खरीद सकें। वैक्सीन की 600 करोड़ डोज बनाने की जरूरत होगी ताकि कम और मध्यम आय वर्ग के देशों की एक बड़ी आबादी को भी सुरक्षित किया जा सके।
देश-कुल डोज-प्रति सौ व्यक्ति पर डोज
अमेरिका-28.39-86
कनाडा-2.03-54
फ्रांस-3.15-47
ब्रिटेन-5.92-89
भारत-18.78-14
चीन-48.33-35
ब्राजील-5.65-27
पाकिस्तान-0.49-2.3
नेपाल-0.26-9.2
बांग्लादेश-0.97-06
सूडान-0.29-0.7
नाइजीरिया-0.19-0.9
कांगो-0.015-0.1
अमीर देश कर सकते हैं ज्यादा भंडारण
वैश्विक टीकाकरण में एक समस्या यह भी है कि जिस तरह से वायरस दिनों दिन खतरनाक होता जा रहा है उसे देखते हुए हो सकता है कि जब वैक्सीन का उत्पादन बढ़े तो दुनिया के अमीर देश और ज्यादा वैक्सीन कर भंडारण कर लें। उनके द्वारा अधिक प्रभावशाली वैक्सीन का भंडारण करने का भी खतरा है। ऐसे में गरीब और अविकसित देशों के हिस्से में कम प्रभाव वाली वैक्सीन ही आ पाएगी। बता दें कि अभी हाल ही में अमेरिका ने दूसरे देशों को जो वैक्सीन देने की घोषणा की है, उसे वहां की नियामक एजेंसियों ने भी मान्यता नहीं दी है। अमेरिका के अलावा कनाडा के पास भी वैक्सीन की इतनी ज्यादा डोज है कि वह अपनी पूरी आबादी का तीन बार टीकाकरण कर दे।