जेएनएन, बठिंडा/लुधियाना। पंजाब में मिनी लाकडाउन के कारण श्रमिक अपने राज्यों को लौट चुके हैं और धान का सीजन सिर पर है। ऐसे में किसानों को धान की रोपाई के लिए श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कई गांवों में तो श्रमिक हैं ही नहीं। किसान अब उत्तर प्रदेश और बिहार लौटे श्रमिकों को बुलाने के लिए संपर्क कर रहे हैं, लेकिन श्रमिक आने को तैयार नहीं हैं।
मिनी लाकडाउन के कारण उन्हें इस बात का डर है कि कहीं बाद में पूर्ण लाकडाउन न लग जाए। अब किसान स्थानीय श्रमिकों के सहारे काम चलाना पड़ेगा। पंजाब में जून महीने से धान की रोपाई शुरू होगी। गांव महमा (बठिंडा) के किसान जगतार सिंह बराड़ ने कहा कि वह 85 एकड़ में आलू व धान की खेती करते हैं। उन्होंने कहा कि धान की रोपाई यूपी और बिहार से आने वाले श्रमिकों के बिना संभव नहीं है। रोपाई के दाम भी बढ़ गए हैं। पहले एक एकड़ के लिए 2500 रुपये मजदूरी दी जाती थी जो अब 4000 रुपये हो गई है।
बढ़े हुए रेट के बावजूद इस बार दिक्कत का सामना करना पड़ेगा
15 एकड़ में धान की खेती करने वाले गांव लहरी (बठिंडा) के किसान काला सिंह ने कहा कि उनके सामने श्रमिकों का न होना बड़ी चुनौती है। क्योंकि श्रमिक नहीं मिल रहे। सरकार को इस विषय पर सोचना चाहिए ताकि श्रमिक लौट सकें।
गांव देहड़का (लुधियाना) के किसान गुरप्रीत सिंह ने कहा कि वह 28 एकड़ में धान लगाते हैं। बिहार में श्रमिकों से बात हुई तो उन्होंने पंजाब आने की बात तो कही लेकिन साथ ही पूर्ण लाकडाउन की आशंका को लेकर डर भी रहे हैं। उन्हें 14 दिन के एकांतवास का भय भी सता रहा है। अब उनका आना कोरोना की स्थिति पर निर्भर है।
गांव चचराड़ी (लुधियाना) के किसान लखविंदर सिंह ने कहा कि श्रमिक न लौटे तो उन्हें परेशानी होना तय है। बिहार से आने वाले श्रमिकों ने संपर्क करने पर कहा कि महामारी के बीच आना ठीक नहीं है। फिर भी अगर श्रमिकों के समूह ने बसों से पंजाब आने का मन बनाया तो वह जरूर आएंगे। लखविंदर सिंह ने कहा कि उम्मीद तो बंधी है कि वह आएंगे लेकिन वर्तमान हालात में संभावना कम ही दिखाई दे रही है। गालिब खुर्द (लुधियाना) के किसान नवतेज सिंह 55 एकड़ में धान लगाते हैं। उन्होंने ने कहा कि यह दौर काफी मुश्किल है। अगर श्रमिक पंजाब न आए तो पेडी-ट्रांसप्लांटर की मदद से धान की रोपाई करनी पड़ेगी।
गालिब खुर्द (लुधियाना) के किसान जसप्रीत सिंह जस्सी ने भी श्रमिकों की कमी के संकट पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि महामारी की दूसरी लहर पहले से अधिक खतरनाक है और इसी कारण श्रमिक लौटना नहीं चाहते। फिर भी कुछ दिन उनका इंतजार रहेगा। यदि समय रहते वह न लौटे तो रोपाई के काम में पूरे परिवार को जुटना पड़ेगा।