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जन्म से ही कोरोना संक्रमित 4 नवजात बच्चों ने 10 दिन में ही दी वायरस को मात, लुधियाना DMC में थे भर्ती

लुधियाना [आशा मेहता]। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में हालात पहली लहर से बहुत अधिक खराब हैं। नया स्ट्रेन बुजुर्गों से लेकर युवाओं की हालत खराब कर रहा है। वहीं, नवजात अपनी इम्यूनिटी के दम पर कोरोना को मात दे रहे हैं। दयानंद मेडिकल कालेज एंड अस्पताल के डाक्टरों पिछले कुछ दिन में कोरोना संक्रमित नवजात की केस स्टडी के बाद यह पाया है।

अस्पताल के पीडियाट्रिक विभाग के डाक्टरों के मुताबिक नवजात में गजब की इम्यूनिटी देखने को मिल रही है। पिछले दस दिन में चार कोरोना संक्रमित नवजात को भर्ती किया गया। चारों जन्म से कोरोना संक्रमित थे। दो को वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ा। चारों बच्चों ने दस दिन में कोरोना का हरा दिया। इन सभी नवजात बच्चों की माताएं भी संक्रमित हैं। दो की हालत अब भी नाजुक बनी हुई है।

शिशु रोग विशेषज्ञ एवं एसोसिएट प्रोफेसर डा. कमल अरोड़ा का कहना है कि चारों नवजात में कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। एक नवजात तो 1200 ग्राम का है। चारों को दूसरे शिशुओं की तरह साधारण ट्रीटमेंट दिया गया। दस दिन में ये नेगेटिव हो गए हैं। इन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन या अन्य कोई खास ट्रीटमेंट नहीं दिया गया। इनके फेफड़े भी ठीक थे। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि नवजात और बड़ों में हिमोग्लोबिन अलग होता है।

नवजात में हिमोग्लोबिन एफ होता है। एफ मतलब फीटस। यह आक्सीजन को अपने साथ रखता है। इससे आक्सीजन की दिक्कत नहीं होती है, इसलिए वायरस इन्हें इतना तंग नहीं कर रहा है। फीटस लेवल पर हिमोग्लोबिन एफ होना अच्छा होता है। बड़े लोगों में हिमोग्लोबिन ए होता है। यह आक्सीजन को अपने पास नहीं रखता, छोड़ देता है। डाक्टर कमल का कहना है कि अब तक की थ्योरी है, इसलिए हमें ऐसा लगता है।

बड़े बच्चे भी कोरोना की चपेट में आ रहे, ओआरएस व प्रोबाइटिक से हो रहे स्वस्थ

डा. कमल कहते हैं कि उनके पास दो महीने से लेकर दस साल तक के कोरोना संक्रमित बच्चे आ रहे हैं। सबसे अधिक दो से पांच साल की उम्र के बच्चे संक्रमित मिल रहे हैं। बच्चों को दो व तीन दिन से लूज मोशन और फीवर की शिकायत हो रही है। सभी बच्चे ओपीडी बेस्ड पर ही पांच दिन के इलाज से ठीक हो रहे हैं। इन्हें भर्ती करने की नौबत नहीं आ रही है। बच्चों को हम ओआरएस और प्राइटिक देते हैं।

अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि अभिभावक खुद संक्रमित होते हैं लेकिन लक्षण होने पर भी बच्चों के टेस्ट करवाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। उन्हें लगता ळै कि नाक से सैंपल लेने पर बच्चे को तकलीफ होगी। अभिभावकों को चाहिए कि अगर बच्चे को लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत जांच करवाएं। बच्चों में इम्यूनिटी अधिक होती है वे जल्दी ठीक हो सकते हैं।

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