हाईकोर्ट ने कहा दिल्ली में यह चलन बन गया है कि कभी भी लोग अदालत में याचिका दायर कर टीकाकरण में प्राथमिकता मांगने लगते हैं। यदि सभी को प्राथमिकता दी जाए, तो सवाल यह है कि फिर बाद में टीका किसे लगेगा। सरकार की अपनी खुद की भी प्राथमिकताएं हैं। अदालत ने कोविड-19 रोधी विदेशी टीकों के क्लिनिकल ट्रायल से छूट देने और टीकाकरण में पहली खुराक ले चुके लोगों को प्राथमिकता देने के लिये दायर याचिका पर सुनवाई से इंकार करते हुए टिप्प्णी की। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार के नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता में जिस राहतों की मांग की गई है उसके लिए नीतियों का ड्राफ्ट तैयार करने की जरूरत है। यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। अदालत मात्र असाधारण मामलों में नीतिगत निर्णय लेने पर विचार करेगी।
अदालत ने कहा कि याची वकील नाजिया प्रवीण ने टीकाकरण में पहली खुराक ले चुके लोगों को प्राथमिकता देने की मांग की गई है और ऐसी रियायत केवल मांगने से ही नहीं दी जा सकती। दिल्ली में यह आम चलन बन गया है कि कभी भी लोग अदालत में याचिका दायर कर टीकाकरण में प्राथमिकता मांगने लगते हैं। यदि सभी को प्राथमिकता दी जाए तो सवाल यह है कि फिर बाद में टीका किसी लगेगा। सरकार की अपनी खुद की भी प्राथमिकताएं हैं।
वहीं एक मई से शुरू हुए टीकाकरण अभियान के संबंध में ऑर्डर दी गई खुराक की स्थिति के संबंध में जानकारी मांगने पर पीठ ने कहा कि ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार के जरिए हासिल की जा सकती है। इसके लिए रिट याचिका या जनहित याचिका दायर करना सही तरीका नहीं है।
अदालत ने टीके के वितरण के संबंध में नीति बनाने और कोविड-19 रोधी विदेशी टीकों के क्लिनिकल ट्रायल से छूट की अनुमति देने के अनुरोध पर कहा कि नीतिगत निर्णय क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा लिए जाते हैं क्योंकि यह एक जटिल काम है। अदालत ने कहा कि याचिका में कुछ ऐसे मामले उठाए गए हैं, जिसके संबंध में पहले ही उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही है।
अदालत फिलहाल केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार को याचिका को बतौर ज्ञापन स्वीकार कर विचार करने को कहा है।
विदेशी टीकों को अनुमति संबंधी याचिका खारिज
हाईकोर्ट ने विदेशी फार्मा कंपनियों द्वारा उनके कोरोना टीकों के भारत में आपात इस्तेमाल की अनुमति के लिए किए गए आवेदनों के विवरण और स्थिति की जानकारी की मांग कों लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने बिना आधार के याचिका दायर करने पर याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता मयंक वाधवा के ज्ञान को बढ़ाने के लिए याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं था। पीठ ने कहा कि हम आपका ज्ञान बढ़ाने के लिए आपकी याचिका पर विचार नहीं करने जा रहे हैं। पीठ ने कहा कि याचिका में जो मांग की गई है, उसके लिए याचिकाकर्ता सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत एक आवेदन कर सकते थे।
पीठ ने कहा कि इस तरह की मांग को लेकर जनहित या रिट याचिका दाखिल करना उचित उपाय नहीं है। पीठ ने कहा कि न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का जनता द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि दिल्ली में एक फैशन बन गया है कि किसी को भी कोई आईडिया आता है तो याचिका दायर कर दो। अदालत ने कहा हर समस्या का हल याचिका नहीं है।
अदालत ने एक अन्य याचिका में उठाए गए टीकों की बॉटलिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह आरो का पानी नहीं, टीका है।’ पीठ ने कहा कि टीके का बॉटलिंग एक तकनीकी पहलू है जिस पर विशेषज्ञों को विचार करना चाहिए। पीठ ने कहा कि ऐसे में इस मांग को सुनवाई के लिए स्वीकर कर नहीं कर रहे हैं। हालांकि पीठ ने केंद्र सरकार व संबंधित प्राधिकार को याचिका को बतौर प्रतिवेदन स्वीकार करने और इसमें उठाए गए मसलों पर अपने नीति, नियमों के तहत विचार करके सुमचित निर्णय लेने को कहा है।