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राजस्थान के गांवों से ग्राउंड रिपोर्ट:भोपे कोरोना को भूत बताते हैं; बीमार होने पर लोग अस्पतालों को मौत का घर मानते हैं और कहते हैं- देवरे पामणे हो गए

राजस्थान के अंदरूनी इलाकों में कोरोना को लेकर जागरुकता सही तरीके से नहीं पहुंच पाई है। यही वजह है कि यहां लोगों को पता ही नहीं कि कोरोना कितना खतरनाक है। लक्षण दिखने पर लोग इलाज करने भोपों के पास चले जाते हैं।

खुद जयपुर जिले के गांवों में मेडिकल सेवाएं वेंटिलेटर पर हैं। सिस्टम खुद बीमार नजर आता है। आज हम आपको ले चलते हैं राजस्थान के प्रतापगढ़, धरियावद, उदयपुर, सीकर, चुरू, भीलवाड़ा और जयपुर के गांवों में, पढ़ें वहां से ग्राउंड रिपोर्ट…

1. क्वारैंटाइन सेंटर को लोग जेल समझते हैं
– प्रतापगढ़ से अजय कुमार और धरियावद से गेंदमल पालीवाल की 
रिपोर्ट

प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड में ग्राम पंचायत और गांवों के साथ ढाणियों में भी हाल बुरे हैं। यहां पर लगभग हर घर में खांसी-बुखार के मरीज मौजूद हैं। लेकिन इससे भी बुरा यह है कि गांव वालों को यह नहीं पता कि कोरोना क्या है और कितना खतरनाक है?

यहां के सीधे-सादे लोग तो बीमार होने पर यह कहते हैं कि उन्हें काली चढ़ी है या फिर माता है और देवरे पामणे (नाराज होकर शरीर में मेहमान) हो गए हैं। इलाज के लिए डॉक्टरों के पास नहीं, बल्कि भोपा और झाड़-फूंक वालों के पास चले जाते हैं।

डॉक्टर और हेल्थ वर्कर्स के नाम से तो यहां के लोगों को डर लगने लगा है। कहते हैं कि अगर डॉक्टर के पास गए तो वह जेल यानी क्वारैंटाइन सेंटर भेज देंगे। इतना ही नहीं, इलाके में पिछले दिनों कुछ कारोबारियों की अस्पताल में कोरोना से इलाज के दौरान मौत हो गई, तो अब यहां के लोगों को लगने लगा है कि अगर जांच में कोरोना निकला और अस्पताल में भर्ती किया तो उनकी मौत तय है।

ज्यादातर ग्रामीण अपने-अपने घरों को छोड़कर खेतों में परिवारों से अलग रहने लगे हैं। हालांकि, एक चीज अच्छी यही हो रही है कि लक्षण दिखने पर यहां लोग 7 से 8 दिन तक खुद को क्वारैंटाइन रखते हैं। ऐसे में संक्रमण आगे नहीं फैलता। लगभग हर गांव में इस तरह सेल्फ क्वारैंटाइन होने का चलन है।

धरियावद में करीब 30 से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जहां कोरोना जैसे लक्षण लोगों में देखे जा सकते हैं। हैरत की बात यह है कि यहां पर पारेल, नलवा, वलीसीमा के कुछ गांव को छोड़कर आज तक हेल्थ डिपार्टमेंट की ओर से कोरोना के सैम्पल ही नहीं लिए गए।

वलीसीमा सरपंच विष्णु मीणा और पूर्व सरपंच पूरी लाल मीणा बताते हैं कि करीब 3 महीने पहले आखिर बार 35 लोगों के सैम्पल लिए गए थे। एक माह में 10 लोगों की मौत हो चुकी है।

भ्रम, गलतफहमी और मजबूरी की वजह से गांवों में कोरोना हावी

  • भ्रम: सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह झाला ने बताया कि गांव के लोगों की यह सोच है कि बीमार होने पर अगर डॉक्टर के पास गए तो सीधे क्वारैंटाइन सेंटर या फिर अस्पताल भेज दिए जाएंगे। वहां पर सिर्फ मौत मिलती है, क्योंकि जो भी अस्पताल गया, वह जिंदा नहीं लौटा।
  • गलतफहमी: टीचर गौतम लाल मीणा बताते हैं कि कुछ ग्रामीणों को यह गलतफहमी है कि कोरोना का टीका लगाने के बाद भी कोरोना होता है। गांव के कुछ फ्रंटलाइन वर्कर को जो टीके लगाए, वह अच्छे वाले थे। हमें बुरे वाले लगाएंगे।
  • मजबूरी: हर 15 से 20 घरों के बीच एक देवरा है, लेकिन 10 हजार की आबादी के बीच बमुश्किल एक अस्पताल, एक या दो डॉक्टर मिल पाते हैं। खांसी बुखार होने पर डॉक्टर कोरोना जांच की सलाह देते हैं। यहीं से ग्रामीण डर जाते हैं और मजबूरी में भोपा और झाड़-फूंक वालों के पास चले जाते हैं। इस चक्कर में कई लोगों की जान भी चली गई।

2. कोरोना को भोपे बताते हैं भूत
– उदयपुर से चंद्रशेखर गुर्जर, अजय कुमार और छगन मेनारिया की 
रिपोर्ट

उदयपुर जिले में वल्लभनगर उपखंड के गांवों में कोरोना पूरी तरह पैर पसार चुका है। हर गांव में तीन चौथाई आबादी में खांसी-बुखार के मरीज हैं। अगर कोरोना के 100 सैम्पल करवाए जाएं तो इनमें से 80 पॉजिटिव मिल जाएंगे, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट और प्रशासन के रिकॉर्ड में सच से बिल्कुल उलट तस्वीर है क्योंकि सैम्पल लेने का काम केवल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ही सिमट कर रह गया है।

कोरोना को भूत समझते हैं, स्वास्थ्य पर भारी आस्था
यहां के हर गांव में देवरे और देवी-देवताओं के स्थान पर लोग कोरोना को भूत समझकर झाड़-फूंक के लिए पहुंच जाते हैं। इन देवरों पर अक्सर शनिवार और रविवार को छोटे-बड़े मेले लग ही जाते हैं। यहां दिन भर में हर देवरे पर करीब सौ से ढाई सौ के बीच लोग आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कोरोना को भूत मानते हैं और यह भूत उतरवाने के लिए यह लोग डॉक्टर के पास जाने की बजाय भोपा और झाड़-फूंक वालों के पास पहुंच जाते हैं।

अगर कोई मास्क में यहां आता है तो भोपे झाड़-फूंक करने के बाद यह कहकर मास्क उतरवा देते हैं कि तुम्हारे कोरोना का भूत हमने भगा दिया है। घर जाओ आराम करो।

गांव में जाकर सैम्पल लेने की बात सिर्फ कागजों में दौड़ रही है। विभाग के मुताबिक, अब तक ग्राम पंचायत खरसाण में 6, नवणिया में 8, मैनार में दो लोगों की ही कोरोना से मौत हुई है, जबकि सच्चाई यह है कि पिछले 30 दिन यानी 16 अप्रैल से 16 मई तक इन ग्रामीण क्षेत्र में 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि, इनमें कोरोना की पुष्टि नहीं हुई क्योंकि सैम्पल ही नहीं लिए गए।

3. मौत के आंकड़ाें पर सरकारी पहरा
– जयपुर जिले से दिलीप चौधरी और मनीष शर्मा की ग्राउंड 
रिपोर्ट

जयपुर के दूदू, फागी, चाकसू, बगरू, सांभर, शाहपुरा, कोटपूतली तहसील के गांवों में भास्कर टीम ने जमीनी हकीकत देखी तो रूह कंपाने वाली सच्चाई सामने आई। गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं वेंटिलेटर पर और मरीज लाचार नजर आए।

कोरोना की दूसरी लहर में यहां मौतों की संख्या में इजाफा हो गया है। आश्चर्य की बात यह है कि मौतों के लिए सरकार महामारी को जिम्मेदार नहीं बताती। जब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से जानकारी चाही तो उन्होंने फोन काट दिया। अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौतों के आंकड़ों पर सरकारी पहरा किस कदर लगा है। 20 दिन में ही फागी में 30, कोटपूतली में 75 और बस्सी में 50 लोग दम तोड़ चुके हैं।

भास्कर टीम ने गांवों के लोगों से बात की तो हरसूली के रामकिशन ने बताया कि गांव में करीब हर घर में लोग बीमार हैं। पिछले 7 दिनों में ही 10 से ज्यादा मौतें हो चुकी है। उपजिला अस्पताल दूदू से महज 3 किमी दूर खुडियाला के सरपंच गणेश डाबला ने बताया कि क्षेत्र में 13 मौतें हो चुकी हैं।

इसी तरह फागी क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों के अंतराल में 30 मौतें हो चुकी हैं। कोटपूतली निवासी मनीष ने बताया कि क्षेत्र में 75 मौतें हो चुकी हैं। बस्सी क्षेत्र में भी एक महीने के अंदर 50 से ज्यादा मौतें प्रशासनिक दावों की पोल खोल रही है।

बाइक पर हिचकोले खा रही सांसें
शाहपुरा क्षेत्र में मरीज की सांसें बाइक पर हिचकोले खाती नजर आईं। गंभीर मरीज को समय पर एंबुलेंस नहीं मिली तो परिवार के लोग बाइक पर ही ग्लूकोज की बोतल को हाथ से पकड़कर 20 किमी दूर अस्पताल के लिए रवाना हो गए।

दूदू क्षेत्र में घरों पर दे रहे ऑक्सीजन
भास्कर टीम जब दूदू उपजिला अस्पताल पहुंची तो PMO डॉ. सुरेश मीणा ने बताया कि अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं है। हालांकि, 4 ऑक्सीजन सिलेंडर हैं। पड़ताल में सामने आया कि इनकी सुविधा मरीजों को नहीं मिल रही, बल्कि उन्हें 70 किमी दूर जयपुर रेफर कर दिया जाता है। बदइंतजामी का आलम ये था कि दो घंटे से मरीज गीता हाथ में एक्सरे को लेकर दर्द से कहराती रही, लेकिन संभालने वाला कोई नहीं था।

यही स्थिति कोटपूतली जिला अस्पताल की है। आसपास के 35 से अधिक गांवों के मरीजों को वहां वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल रही और जरूरत पड़ने पर मरीजों को जयपुर या दिल्ली का रुख करना पड़ता है।

4. घरों के बाहर लटकाए जूते-चप्पल ताकि नहीं लगे नजर, बल्लियों से बनाए खतरे के निशान
– भीलवाड़ा के आसींद क्षेत्र से जसराज ओझा की 
रिपाेर्ट

हर साल अकाल झेलने वाले आसींद और बदनौर क्षेत्र के हालात डरावने हो गए हैं। आसींद के दांतड़ा बांध गांव में 30 दिन में कोरोना से अब तक 22 मौत हो गई हैं। लोग दहशत में हैं। गांव में कोरोना से मौतें होने से लोगों में गुस्सा है क्योंकि कोई इंतजाम नही हैं।

खौफजदा ग्रामीणों ने घरों के बाहर जूते-चप्पल लटका रखे हैं। इस गांव में करीब 300 घर हैं। लगभग सभी में यही स्थिति है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे हमारे परिवार और गांव को किसी की नजर नहीं लगेगी। कोरोना से भी बचे रहेंगे। यहां घरों के बाहर काली मटकी और टायर बांधते हुए तो देखा है, लेकिन कोरोना के खौफ के कारण जूते और चप्पलें पहली बार लटकी दिख रही हैं।

गांव में कोरोना का खौफ इतना है कि जिस घर में संदिग्ध मरीज हैं, वहां लोगों ने दरवाजे पर बल्लियों से क्रॉस का निशान बना रखा है ताकि गांव वालों को पता चल जाए कि यहां से दूरी बनाकर रखनी है।

लोगों ने बताया कि हमारे यहां इतनी मौते हुईं, लेकिन प्रशासन ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। शुरुआत में टीम आई और 80 लोगों के सैंपल लिए। इसमें से 8 पॉजिटिव निकल गए। इसके बाद दोबारा टीम गांव में नहीं आई। अस्पताल भी बंद है।

समाजसेवी नरेंद्र गुर्जर कहते हैं कि दांतड़ा बांध गांव में 1700 वोटर और 300 घर हैं। यहां इलाज के कोई साधन नहीं हैं। नजदीक में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है। शुरुआत में दवा किट भी पूरे नहीं दी गई। अब कोई टीम भी नहीं आ रही है। लोग बहुत डरे हुए हैं, इसलिए जूते-चप्पलें लटका रहे हैं।

5. सीकर से लेकर चूरू तक फैला है झोलाछाप डॉक्टरों का जाल
– सीकर और चुरू के गांवों से यादवेंद्र सिंह राठाैड़ की 
रिपोर्ट

कोरोना की दूसरी लहर में झोलाछाप डॉक्टर गांवाें में दुकानें खोलकर बैठ गए हैं। छाेटे बच्चाें से लेकर गंभीर बुजुर्ग मरीजाें को इलाज की जगह मौत बांट रहे हैं। जब भास्कर टीम फागलवा गांव पहुंची तो एक झोलाछाप डॉक्टर क्लीनिक खोलकर बैठा मिला। वह कोविड मरीजाें काे बिना जांच के ही दवाई देकर ड्रिप लगाता दिखा।

खांसी-जुकाम के मरीजों से ये लाेग काेविड जांच करवाने की बजाय यह कह रहे हैं कि काेई काेविड-फाेविड नहीं है। मेरे से दवा ले जाओ। दाे दिन में सही हाे जाओगे। सेवद बड़ी में एक क्लीनिक के बाहर मरीजाें की भारी भीड़ जुटी हुई थी। वहीं, इसके पास नर्सिंग हाेम में भी महिला मरीजों की भीड़ जुटी हुई थी।

सबसे बड़ी बात यह है कि ये झाेलाछाप डाॅक्टर इन दाेनाें जिलाें के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्राें के ठीक सामने अपने क्लीनिक और नर्सिंग हाेम खाेलकर बैठे हैं। मरीजाें की जान के साथ बैखौफ खिलवाड़ कर रहे हैं। काेराेना के दौर में इन लाेगाें ने कई सामान्य मरीजाें काे क्रिटिकल स्थिति में पहुंचा दिया है।

काेरोना मरीज काे ड्रिप और गाेलियां दीं, नतीजा- वेंटीलेटर तक पहुंंचे
रतनगढ़ तहसील के पड़िहारा में एक झोलाछाप डाॅक्टर कई काेविड मरीजों काे इलाज के नाम पर कई दिनाें से दवाइयां देने के साथ ही ड्रिप चढ़ा रहा है। इससे कई मरीज गंभीर हालात में पहुंच गए हैं। कुछ मरीज ताे आईसीयू और वेंटिलेटर पर चले गए। गांव की CHC में चिकित्सक हैं। ग्रामीणाें ने झाेलाछाप डाॅक्टर की कलेक्टर सांवरमल वर्मा और CMHO डाॅ. मनाेज शर्मा से शिकायत की, लेकिन काेई कार्रवाई नहीं हुई।

किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित बच्चे काे ड्रिप लगाई
काछवा गांव में पांच झाेलाछाप डाॅक्टर मेडिकल स्टाेर की आड़ में मरीजाें काे देख रहे हैं। घिरणियां बड़ा के रहने वाले बाबूलाल बैरवा अपने 13 साल के बेटे नीतिश कुमार काे काछवा के लाइफ केयर मेडिकल एंड नर्सिंग हाेम में इलाज के लिए लेकर आए थे। उनके बेटे काे किडनी में संक्रमण है। झाेलाछाप डाॅक्टर ने नीतिश काे दुकान के बाहर पाेर्च में ही ड्रिप लगा दी और उसके माता-पिता काे उसके पास बैठा दिया।

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