कोरोना की दूसरी लहर में एक तरफ जहां देश की राजनीति खूब गरमाई है वहीं यह भी सवाल कि क्या भविष्य की सोच और प्रबंधन में पहले चूके और अब हांफ रहे राज्यों को केंद्र की ओर से समय रहते आगाह किया गया था?
आशुतोष झा, नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर में एक तरफ जहां देश की राजनीति खूब गरमाई है, वहीं यह बहस भी तेज रही है कि कोरोना के तेज प्रकोप के लिए क्या चुनाव और कुंभ जिम्मेदार थे? क्या भविष्य की सोच और प्रबंधन में पहले चूके और अब हांफ रहे राज्यों को केंद्र की ओर से समय रहते आगाह किया गया था? आंकड़े बताते हैं कि राज्यों को जनवरी से ही सतर्क किया जा रहा था, फरवरी तक बार-बार आगाह किया गया लेकिन समय रहते कदम नहीं उठाए जा सके। आइए करते हैं इसकी पड़ताल
आंकड़े बताते हैं कि मार्च आते-आते तो केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली जैसे राज्यों को यह भी बता दिया गया था कि उनके कौन-कौन से जिलों में टेस्टिंग की गति ढीली हो रही है। बहरहाल यह त्रासदी रोके न रुकी। वहां भी प्रकोप की तरह आई जहां न तो चुनाव था और न ही कुंभ का आयोजन।
प्रधानमंत्री ने खुद किया था सतर्क
गुरुवार को भाजपा की आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट कर विपक्षी दलों पर हमला किया और बताया कि सितंबर, 2020 से अप्रैल, 2021 तक प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ छह बैठक की थीं और सतर्क भी किया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों की मानें तो अलग-अलग स्तर पर जनवरी से मार्च तक ही कम से कम दो दर्जन बार राज्यों को आगाह किया गया, उन्हें सलाह दी गई और मदद के लिए केंद्रीय टीम भी भेजी गईं।
राज्यों से 17 बार हुआ संवाद
केंद्र सरकार ने हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा देकर कहा है कि सात फरवरी से 28 फरवरी के बीच कोरोना के बाबत राज्यों से 17 बार संवाद हुआ था। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी नए साल में सात जनवरी को संवाद की शुरुआत मानते हैं।
एक महीने तक केरल रहा नंबर वन
अधिकारी ने कहा कि पूरा देश जब थोड़ा निश्चिंत हो रहा था उस वक्त भी केरल में कोरोना उछाल की ओर था और सात जनवरी, 2021 को केंद्र सरकार ने वहां उच्चस्तरीय टीम भेजने का फैसला लिया था तब वहां रोजाना लगभग पांच हजार केस आ रहे थे और लगभग एक महीने तक केरल देश में नंबर वन राज्य बना रहा था। उसके बाद भी अगले डेढ़-दो महीने तक केरल और महाराष्ट्र से ही देश के 70-72 फीसद मामले आते रहे। इसी बीच केरल में चुनाव भी संपन्न हुए।
जहां चुनाव नहीं वहां भी फैली महामारी
इसी दौरान कुछ तो कोर्ट की टिप्पणियों के कारण और कुछ राजनीतिक बहस में चुनाव को कोरोना का दोषी ठहराया गया। ‘दैनिक जागरण’ ने यही सवाल केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर से पूछा तो उन्होंने कहा, कोरोना तो अभी देश के 580 जिलों में फैला है। वहां भी फैला है जहां कोई चुनाव या धार्मिक कार्यक्रम नहीं हुआ था।
केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा, ”दुर्भाग्य की बात है कि कुछ लोग कोरोना काल में भी राजनीतिक अवसर तलाश रहे हैं, लेकिन यह तो सार्वजनिक है कि दिसंबर-जनवरी में जब लोग थोड़े निश्चिंत होने लगे थे तभी प्रधानमंत्री ने ‘दवाई भी और कड़ाई भी’ का नारा दिया था। मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि हम सभी मिलकर जीतेंगे।”
पंजाब भी था हॉट स्पॉट
जावडेकर भले ही राजनीति से बच रहे हों, लेकिन मालवीय ने दावा किया कि कोरोना की दूसरी लहर का केंद्र पंजाब था और किसान आंदोलन ने सुपर स्प्रेडर का काम किया। बंगाल में भाजपा नेताओं की रैलियों को निशाना बनाने वाले लोगों को मालवीय ने केरल में राहुल गांधी की रैलियों की भी याद दिलाई।
मुख्यमंत्रियों ने नहीं दिया ध्यान
बहरहाल, स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी ने ‘दैनिक जागरण’ के सामने जनवरी से अप्रैल तक केंद्र और राज्यों के बीच हुए संवादों का पुलिंदा रखते हुए कहा कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 17 मार्च को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में कहा था, ‘देश के 70 जिलों में पिछले कुछ दिनों में कोरोना की वृद्धि 150 फीसद से भी ज्यादा है। दूसरी लहर को तुरंत रोकना होगा वरना यह देशव्यापी आउटब्रेक बन सकती है। हमें इसे तुरंत रोकना है।’
टेस्टिंग बढ़ाने के दिए गए थे निर्देश
इससे पहले कभी स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में तो कभी कैबिनेट सचिव या स्वास्थ्य सचिव व कोविड टास्क फोर्स के साथ बैठक में आगाह किया गया था। वरिष्ठ अधिकारियों की टीम भेजी गई थी, रिपोर्ट मंगाई गई थी और यह भी याद दिलाया गया था कि टेस्टिंग की रफ्तार कम न होने दें।
इन राज्यों को किया गया था आगाह
27 फरवरी, 2021 को केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत आठ राज्यों को इसकी याद दिलाई गई थी। जबकि छह मार्च को दिल्ली को नौ जिलों के नाम देकर इंगित किया गया था कि वहां टेस्टिंग कम हो रही है। इसी तरह हरियाणा के 15 और उत्तराखंड के सात जिलों को लेकर भी आगाह किया गया था। राज्यों से साफ-साफ कहा गया था कि टेस्टिंग, ट्रैकिंग और ट्रीटिंग के पुराने फार्मूले पर मुस्तैदी से लौटें, लेकिन कोरोना की गति के सामने राज्य चूक गए।