Bihar Panchayat Elections: स्थानीय क्षेत्र के इस चुनाव के मतदाता पंचायत और नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं. हार-जीत का निर्धारण भी पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है.
पटना. बिहार में प्रतिदिन 11 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित पाए जाने के साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि पंचायत चुनाव टाले जा सकते हैं. निर्वाचन आयोग ने पहले ही 22 अप्रैल से होने वाली इलेक्शन ट्रेनिंग को स्थगित कर इस बात के संकेत दे दिए थे कि हो सकता है कि चुनाव फिलहाल टाल दिए जाएं. हालांकि अभी इस बात की समीक्षा की जानी है, लेकिन कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार के कारण ऐसे आसार बन रहे हैं कि पंचायत चुनाव टाल भी दिए जाएं. जानकारों की मानें तो ऐसी स्थिति में जहां संवैधानिक पेच फंस जाएंगे, वहीं यदि पंचायत चुनाव समय नहीं हुए तो बिहार विधान परिषद की सूरत भी बदल जाएगी.
बता दें कि स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद में कुल 24 सदस्य चुने जाते हैं. हर दो साल पर आठ सदस्यों का निर्वाचन होता है. 2009 और 2015 में सभी सीटें एक साथ भरी गयी थी. 2021 में किस तरह ये सीटें भरी जाएंगी ये अभी तक तय नहीं हुआ है. अभी इस बात को लेकर कयास ही है कि सभी सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे या द्विवार्षिक चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी. फिर भी पिछले चुनाव के जीते उम्मीदवार चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं.
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हार-जीत तय करते हैं पंचायत और नगर निकायों के प्रतिनिधि
गौरतलब है कि स्थानीय क्षेत्र के इस चुनाव के मतदाता पंचायत और नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं. हार-जीत का निर्धारण भी पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है. हालांकि क्षेत्र के लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्यों और विधायकों-विधान पार्षदों को भी मताधिकार है. लेकिन, हार जीत का निर्धारण पंचायतों-नगर निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के मतों से ही होता है.
16 जुलाई को समाप्त हो जाएगा कई एमएलसी का कार्यकाल
मालूम हो कि पिछली बार भी पंचायत चुनाव के तुरंत बाद विधान परिषद का चुनाव हुआ था. 11 जून को अधिसूचना निर्गत हुई थी. सात जुलाई को मतदान हुआ और 10 जुलाई 2015 को परिणाम घोषित कर दिए गए। 17 जुलाई 2015 से नए सदस्यों का कार्यकाल शुरू हुआ था. वह इस साल 16 जुलाई को समाप्त हो जाएगा.
भाजपा को बड़ा नुकसान, राजद पर खास असर नहीं
पिछली बार भी पंचायत चुनाव के तुरंत बाद ही विधान परिषद का चुनाव कराया गया था. 17 जुलाई 2015 से जिन नए सदस्यों का कार्यकाल शुरू हुआ था जो अब 16 जुलाई को समाप्त हो जाएगा. ऐसे में पंचायत चुनाव टल गए तो इसका सबसे अधिक असर सत्ताधारी दल को ही होने वाला है. दरअसल, दो महीने बाद विधान परिषद में भाजपा की सदस्य संख्या आधी हो जाएगी. जबकि राजद के उपर इसका अधिक असर नहीं पड़ने वाला है.
इस वजह से होगा भाजपा को नुकसान
बता दें कि 2015 के चुनाव में सबसे अधिक 11 सीटें भाजपा के ही खाते में आई थी. निर्दलीय अशोक कुमार अग्रवाल और लोजपा की नूतन सिंह भी भाजपा में शामिल हो गईं. अगर चुनाव समय पर नहीं हुए तो परिषद में भाजपा की सीटें 26 से घटकर 14 पर आ जाएंगी. वहीं स्थानीय क्षेत्र से दरभंगा से जीते सुनील कुमार सिंह का निधन हो गया था जो भाजपा के ही एमएलसी थे.
पंचायत चुनाव टलने का असर राजद पर बहुत अधिक नहीं पड़ने वाला है. क्योंकि स्थानीय क्षेत्र प्राधिकार से जीते उसके चार में तीन सदस्य पहले ही दल बदल कर जदयू में शामिल हो गए हैं. वहीं लोजपा के टिकट से जीत दर्ज की नूतन सिंह भाजपा में शामिल हो गई हैं.