Explained: कोविड -19 की दूसरी लहर को लेकर राज्यों द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों से बैंकों की चिंता बढ़ती जा रही है.
Explained: कोविड-19 की दूसरी लहर के देश के ज्यादातर राज्यों में पांव पसारने की वजह से बैंकों की चिंता बढ़ती जा रही है, क्योंकि महामारी की इस दूसरी लहर ने विभिन्न राज्यों में आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. पहले से ही लोन के डिफाल्ट से बैंक पीड़ित हैं. इसकी वजह से बैंक अब चालू वित्त वर्ष में अधिक तनाव को झेलने की स्थिति में नहीं हैं. लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है. यह दौर काफी बुरा रहने वाला है, क्योंकि अब इस बात की आशंका बढ़ती जा रही है कि इस महामारी से अर्थव्यवस्था एक बार फिर से पटरी से उतर सकती है.
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देश में कोरोनोवायरस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी के कारण विभिन्न राज्यों में तालाबंदी और रात के कर्फ्यू जैसे स्थानीय प्रतिबंध हो लागू किया जा रहे हैं. वहीं, कारोबार पहले से ही दूसरी लहर के प्रभाव को महसूस कर रहे हैं.
क्यों बढ़ती जा रही है बैंकों की चिंता?
अगर कोरोना के मामले इसी तरह से बढ़ते रहे और राज्य सरकारों की ओर से लगाए जा रहे प्रति बंध इसी तरह से पूरे मई तक लागू रहते हैं तो कई व्यवसायों को स्थायी रूप से शटर गिराने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. पिछले साले के दौरान किए गए लॉकडाउन की वजह से वे पहले से इसकी मार झेल रहे हैं.
अघर इनमें से कुछ कारोबार और बंद हो जाते हैं तो इससे बेरोजगारी और बढ़ेगी. परिणामस्वरूप, इसका दबाव बैंकों पर देखा जाएगा, क्योंकि कई लोग कारोबार के लिए गए कर्ज को चुका पाने में असमर्थ हो जाएंगे. इसके बैंकों का डिफाल्ट और बढ़ने की आशंका जताई जाने ली है.
पिछले साल, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) लोन जमा करने पर रोक लगाने की घोषणा करके कर्जदारों और बैंकों के बचाव में आया था. इससे बैंकों को अपनी बैलेंस शीट से चूक को दूर रखने में मदद मिली और परिसंपत्ति की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ा.
हालांकि, इस समय लोन जमा नहीं करने की घोषणा की संभावना बिल्कुल नहीं होगी. हां, इतना जरूर है कि यदि महामारी की स्थिति बिगड़ती है तो बैंकों के डिफाल्ट जरूर होंगे.
अगर मामला और बिगड़ता है तो केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद 7,000 करोड़ रुपये के चक्रवृद्धि ब्याज माफी के बिल को उठाने के लिए तैयार हो गया. अगर यह भार बैंकों पर लादा जाता है तो इसका बैंकों की वित्तीय स्थिति पर बुरा असर होगा.
बता दें, सर्वोच्च न्यायालय ने बैंकों को मार्च से अगस्त 2020 तक की अवधि के दौरान सभी उधारकर्ताओं के लिए ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज (ब्याज पर ब्याज) माफ करने का निर्देश दिया था.
लॉकडाउन और बैंकिंग क्षेत्र
महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में लगाए गए कुछ प्रतिबंधों न केवल आर्थिक गतिविधियों में बड़े पैमाने पर नुकसान होगा, बल्कि देश में बैंकों को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.
Livemint.com की रिपोर्ट के अनुसार, सभी बैंकों के एक चौथाई ऋण महाराष्ट्र में व्यक्तियों और व्यवसायों के लिए लिए गए हैं. वाणिज्यिक बैंकों से लगभग 24 प्रतिशत ऋण के लिए वित्तीय रूप से महत्वपूर्ण राज्य है. ऐसे परिदृश्य में, लॉकडाउन के कारण डिफाल्ट बढ़ेगा जिससे बैंकों को काफी नुकसान हो सकता है.
जबकि बैंकर प्रतिबंधों को लेकर ज्यादा चिंतित दिखाई दे रहे हैं. लेकिन, वे इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि पिछले साल की तरह पूर्ण लॉकडाउन जैसे कठोर प्रतिबंधों की घोषणा नहीं की जाएगी. उनमें से ज्यादातर का मानना है कि माल की मुक्त आवाजाही से कारोबारियों के लिए यह आसान हो जाएगा.
कोविड -19 की दूसरी लहर के दौरान पूर्ण लॉकडाउन की संभावना नहीं है, स्थानीयकृत प्रतिबंधों ने वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक रिकवरी को पहले से ही रोक दिया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय लॉकडाउन के कारण आर्थिक नुकसान प्रति सप्ताह लगभग 1,000 करोड़ रुपये हो सकता है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, बेरोजगारी दर अप्रैल से बढ़ने लगी है.
यदि आर्थिक चुनौतियां लंबे समय तक बनी रहती हैं, तो देश में बैंक बहुत अधिक समर्थन देने में सक्षम नहीं हो सकते हैं क्योंकि वे पहले से ही बढ़ती लोन डिफाल्ट से निपट रहे हैं.
गौरतलब है कि नए संक्रमण का 80 फीसदी हिस्सा छह राज्यों में बताया जा रहा है, जिसमें बैंकिंग क्षेत्र के 45 फीसदी कर्ज हैं.
ऐसी स्थिति में जहां बैंक नए व्यवसायों और औद्योगिक विस्तार का समर्थन करने में सक्षम नहीं हैं, दूसरी लहर के बाद आर्थिक सुधार और विकास के लिए चुनौती बहुत कठिन हो सकती है.