जागरण संवाददाता, कोटद्वार। Water Conservation यकीन जानिए, यदि सरकारी सिस्टम क्षेत्र की नदियों में चेकडैम बनाकर वर्षाजल संग्रहण करता तो आज पेयजल के लिए सिस्टम को नलकूप के भरोसे नहीं बैठना पड़ता। राज्य गठन के बाद जिस तेजी से क्षेत्र में नलकूपों की बाढ़ आई, उसी तेजी से प्राकृतिक स्रोत भी विलुप्त होते चले गए। हालांकि, लगातार घटते भूगर्भीय जल स्तर के बीच एक बार फिर सरकारी तंत्र को क्षेत्र की नदियों में उम्मीदें नजर आने लगी हैं।
वर्ष 1975 में कोटद्वार नगर के अलावा मोटाढांग, हल्दूखाता और रिगड्डी में पेयजल योजनाएं बनाई गई। इस दौरान पूरे क्षेत्र में गिनती के कनेक्शन हुआ करते थे, लेकिन आज स्थितियां उलट हैं। उस दौर में क्षेत्र की आबादी बीस-पच्चीस हजार थी। क्षेत्र में खोह नदी, सुखरो और मालन नदियों से पेयजल आपूर्ति होती थी। उत्तराखंड राज्य गठन तक क्षेत्र की आबादी एक लाख के करीब पहुंच गई थी, लेकिन तब तक करीब 75 फीसद क्षेत्र में प्राकृतिक स्रोतों से ही पेयजल आपूर्ति होती थी। राज्य गठन के बाद एकाएक क्षेत्र में नलकूपों की बाढ़ आने लगी और वर्तमान में जल संस्थान के पास 33 नलकूप हैं। साथ ही महकमा सिंचाई विभाग के 37 नलकूपों से क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति करता है।
यहां पैदा हुई समस्याएं
क्षेत्र में जिस तेजी से नलकूपों की संख्या बढ़ी, उसी तेजी से भूगर्भीय जलस्तर में भी कमी आती जा रही है। नब्बे के दशक में जहां सौ फीट की गहराई में पानी मिल जाता था। पर, वर्तमान में चार सौ फीट तक खुदाई करनी पड़ रही है। क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति बदस्तूर जारी रहे, इसके लिए जल संस्थान को प्रतिवर्ष नलकूपों की गहराई बढ़ानी पड़ रही है।
नदियों पर टिकी उम्मीदें
सरकारी सिस्टम की नजरें एक बार फिर क्षेत्र की नदियों पर जा टिकी हैं। सिंचाई विभाग और लघु सिंचाई विभाग की ओर से मालन के साथ ही खोह नदियों में झील निर्माण की तैयारी की जा रही है। वन विभाग ने कैंपा के तहत दो झीलों के निर्माण के लिए दो-दो करोड़ की धनराशि स्वीकृत कर दिए हैं। दोनों झीलों के निर्माण का जिम्मा लघु सिंचाई विभाग को दिया गया है। सिंचाई विभाग की ओर से भी खोह नदी में दो झीलों के निर्माण का प्रस्ताव शासन में भेजा गया है। साथ ही मालन नदी में भी एक झील निर्माणाधीन है। सभी झीलों से ग्रेविटी के जरिये पेयजल लिया जाना है।