पश्चिम बंगाल चुनावः 2021: नंदीग्राम का इतिहास काफी पुराना रहा है. नंदीग्राम क्रांतिकारियों की भूमि रही है. यही कारण है कि साल 1947 से पहले ही नंदीग्राम के लोगों ने मिलकर कुछ दिनों के लिए अंग्रेजी हुकूमत से पार पा ली थी.
नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जारी है. आज दूसरे चरण का वोटिंग हो रहा है. दूसरे चरण में नंदीग्राम सीट पर भी वोटिंग हो रहा है. इस सीट पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिल रही है. नंदीग्राम सीट से टीएमसी की ओर से ममता बनर्जी खुद चुनावी मैदान में हैं तो वहीं बीजेपी ने शुभेंदू अधिकारी को टिकट दिया है. इससे पहले शुभेंदू अधिकारी टीएमसी में थे लेकिन ममता बनर्जी के साथ रिश्तों में खटास आने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी.
नंदीग्राम रहा है क्रांतिकारियों का इतिहास
ममता बनर्जी के यहां से चुनावी मैदान में उतरने के बाद नंदीग्राम एक बार फिर चर्चा में आ गया है. ऐसा नहीं कि नंदीग्राम पहली बार चर्चा में आया हो इसके पहले भी कई बार नंदीग्राम इतिहास रच चुका है. यही कारण है कि नंदीग्राम न सिर्फ राजनीतिक बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. नंदीग्राम का इतिहास क्रांतिकारियों का इतिहास रहा है.
दो बार मिली आजादी
भारत की स्वतंत्रता से पहले नंदीग्राम के लोगों ने अपने उग्र आंदोलन के कारण अंग्रेजों को झुकाने में कामयाब रहे थे. साल 1947 में देश की स्वतंत्रता से पहले, अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा, सतीश चन्द्र सामंत और उनके मित्रों ने नंदीग्राम के लोगों के साथ मिलकर ‘तामलुक’ क्षेत्र को अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए आजाद करवा लिया था. मतलब साफ है कि अगर आधुनिक भारत का यही एकमात्र क्षेत्र है, जिसे दो बार स्वतंत्रता मिली.
जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन
पश्चिम बंगाल की राजनीति में नंदीग्राम महत्वपूर्ण पड़ाव है. साल 2007 में तात्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सलीम ग्रूप को ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में केमिकल हब बनाने की अनुमति दी थी. जिसके बाद बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था
मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोर्चा संभाला और शुभेंदू अधिकारी के साथ मिलकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. ममता बनर्जी और शुभेंदू अधिकारी ने मिलकर नंदीग्राम भूमि अधिग्रहण को हथियार बनाया और मौजूदा लेफ्ट की सरकार को उखाड़ फेंका.