भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में हर साल अप्रैल फूल डे मनाया जाता है. कई देशों में इस दिन छुट्टी भी होती है. इस दिन लोग एक-दूसरे से मजाक -मस्ती करते हैं. फिर चाहे वो मैसेज भेजकर, प्रैंक करने के अलावा और भी कई तरीकों हैं जिनसे लोग एक दूसरे के साथ मजाक करते हैं. कुछ स्थानों पर इसे ‘ऑल फूल्स डे’ (All Fools’ Day) के नाम से भी जाना जाता है. इन मजाकों का लोग बुरा नहीं मानते हैं बल्कि इसको एंजाय करते हैं. क्या आप जानते हैं कि इस दिन को कब से मनाया जा रहा है कैसे और क्यों इसकी शुरुआत हुई. इस रिपोर्ट में हम आपको इस दिन के बारे में सारी जानकारी देंगे.
अलग-अलग देशों में मनाने के तरीके अलग
अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से अप्रैल फूल डे मनाया जाता है. जैसे ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका और ब्रिटेन में अप्रैल फूल डे सिर्फ दोपहर तक मनाया जाता है. जबकि कुछ देशों- जापान, रूस, आयरलैंड, इटली और ब्राजील में पूरे दिन फूल डे मनाया जाता है.
इस दौरान जो व्यक्ति हंसी मजाक का शिकार हो जाता है तो उसे अप्रैल फूल का नाम दिया जाता है. अप्रैल फूल दिवस की शुरुआत के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है. हालांकि बड़ी संख्या में मानते हैं कि फ्रेंच कैलेंडर में होने वाला बदलाव अप्रैल फूल डे मनाने की शुरुआत हुई.
32 मार्च को विवाह का आमंत्रण
ऐसा कहा जाता है कि पहला अप्रैल फूल डे साल 1381 में मनाया गया था. दरअसल इसके पीछे एक मजेदार वाक्या बताया जाता है. दरअसल, इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी ने सगाई का ऐलान किया था. और इसमें कहा गया कि सगाई के लिए 32 मार्च 1381 का दिन चुना गया है. लोग बेहद खुश हो गए और जश्न मनाने लगे. पर, बाद में उन्हें एहसास हुआ कि ये दिन तो साल में आता ही नहीं. 31 मार्च के बाद 1 अप्रैल को तभी से मूर्ख दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हो गई.
कहानी नए कैलेंडर की!
17वीं सदी में युरोप के लगभग सभी देशों में एक कैलेंडर प्रचलन में था, जिसके अनुसार हर साल पहली अप्रैल से नया साल शुरु होता था. लेकिन साल 1564 में वहां के राजा चार्ल्स-9 ने एक बेहतर और मार्डन कैलेंडर को अपनाने का आदेश दिया. इस नये कैलेंडर के मुताबिक 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत मानी गयी थी. लेकिन कुछ पुरातनपंथियों ने नये कैलेंडर को नहीं मानते हुए, पहली अप्रैल को ही नववर्ष मनाते रहे. तब इन्हें रास्ते पर लाने के लिए नया कैलैंडर बनाने वालों ने उन्हें मूर्ख साबित करते हुए उनके खिलाफ तरह-तरह के मजाक भरे व्यंग्य, प्रहसन, झूठे उपहार और मूर्खतापूर्ण ढंग से बधाइयां देनी शुरु कर दी.हैं धीरे-धीरे सभी ने नये कैलेंडर को मान्यता देना शुरु कर दिया, लेकिन 1 अप्रैल को मूर्ख बनाने का चलन बंद नहीं हुआ और आज भी इसी तरह लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की जाती है.
जब संत की दाढ़ी में लगी आग!
ऐसा कहा जाता है कि चीन में सनंती नामक एक संत रहा करते थे. संत की लंबी दाढ़ी जमीन को छूती थी. एक दिन वो कहीं से गुजर रहे थे, कि उनकी दाढ़ी में आग लग गई, बचाओ-बचाओ चीखते हुए जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे. उन्हें इस तरह से जलती दाढ़ी के साथ उछलते देख बच्चे ताली बजाकर हंसने लगे. संत ने कहा कि मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के दिन हमेशा किसी न किसी पर यूं ही हंसते रहोगे. ऐसा कहते हुए उनकी मृत्यु हो गयी. संयोगवश वह 1 अप्रैल का ही दिन था.
गधों के स्नान को लेकर फैली थी अफवाह
इतिहास में 1860 की 1 अप्रैल खासी मशहूर रही है. लंदन में हजारों लोगों के पास डाक कार्ड से पोस्ट कार्ड द्वारा एक सूचना पहुंची कि आज शाम टॉवर ऑफ लंदन में सफेद गधों के स्नान का कार्यक्रम होगा. इस कार्यक्रम को देखने के लिए आप आमंत्रित हैं. कृपया साथ में कार्ड अवश्य लाएं. मालूम हो कि उस समय टॉवर ऑफ लंदन में आम जनता का प्रवेश वर्जित था. शाम होते टावर के आसपास हजारों लोगों की भीड़ जमा होने लगी और अंदर प्रवेश के लिए धक्का-मुक्की होने लगा लगी. लोगों को जब पता चला कि उन्हें मूर्ख बनाया गया है तो वो किसी आकर अपने घर लौट गए.