Tax Free Investment in PF: पीएफ (Provident Fund) को लेकर सरकार की तरफ से एक बड़ा कदम उठाया गया है। सरकार ने प्रोविडेंट फंड में टैक्स फ्री निवेश की सीमा (tax free investment in pf) को एक कैटेगरी के लोगों के लिए बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है। यह वह लोग हैं, जिनके पीएफ खाते में नियोक्ता की तरफ से कोई योगदान नहीं दिया जाता है। यानी इन्हें 5 लाख रुपये तक के निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स छूट मिलेगी।
हाइलाइट्स:
- सरकार ने प्रोविडेंट फंड में टैक्स फ्री निवेश की सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है।
- ये सिर्फ उस केस में है, जिनमें नियोक्ता की तरफ से पीएफ में योगदान नहीं दिया जाता है।
- ईपीएफ में नियोक्ता योगदान देता है, जबकि पीपीएफ और वीपीएफ में उसका योगदान नहीं होता।
- पीपीएफ और वीपीएफ में योगदान से 5 लाख रुपये तक के निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स छूट मिलेगी।
नई दिल्ली
लोकसभा में वित्त विधेयक 2021 पारित हो चुका है, जिसमें सरकार ने कुछ संशोधन भी किए हैं। सरकार ने प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) में निवेश के ब्याज पर छूट मिलने की सीमा (tax free investment in pf) को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है। हालांकि, ये सिर्फ उस केस में है, जिनमें नियोक्ता की तरफ से पीएफ में योगदान नहीं दिया जाता है। यानी इसका फायदा सिर्फ उन्हें होगा, जिनके पीएफ खाते में नियोक्ता की तरफ से कोई योगदान नहीं दिया जाता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इससे प्रोविडेंट फंड में निवेश करने वाले सिर्फ 1 फीसदी लोगों पर असर पड़ेगा, क्योंकि बाकी लोगों का पीएफ में योगदान 2.5 लाख रुपये से कम है।
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर आप अपने ईपीएफ खाते में 2.5 लाख रुपये से अधिक का निवेश करते हैं तो आपको अतिरिक्त निवेश के ब्याज पर टैक्स चुकाना होगा, क्योंकि उसमें नियोक्ता भी योगदान देता है। वहीं अगर आप वॉलिंटरी प्रोविडेंट फंड यानी वीपीएफ और पब्लिक प्रोविडेंट फंड यानी पीपीएफ में निवेश करते हैं तो आप 5 लाख रुपये तक के कुल पीएफ निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स छूट पा सकते हैं।
बजट में इसे 2.5 लाख तक कर दिया था सीमित
पीएफ में ज्यादा पैसे सेव कर टैक्स बचाने वाले लोगों को 2021 के बजट से तगड़ा झटका लगा था। अच्छी कमाई करने वाले लोग अब तक टैक्स-फ्री हेवेन के तौर पर पीएफ का इस्तेमाल करते थे, पर बजट ने वो छूट खत्म कर दी। नई व्यवस्था के तहत एक साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा प्रोविडेंट फंड जमा करने पर मिलने वाला ब्याज टैक्स के दायरे में आना था। इससे हाई-इनकम सैलरीड लोग सीधे तौर पर प्रभावित होते, जो टैक्स फ्री इंट्रेस्ट कमाने के लिए पीएफ का इस्तेमाल करते थे।