वास्तुशास़्त्र का संबंध नैसर्गिक उूर्जा के बेहतर इस्तेमाल से है. वास्तु के अनुसार नैरक्त्य कोण यानि दक्षिण-पश्चिम दिशा छाया ग्रह राहू की होती है. इस दिशा में की गई छोटी भूल भी बड़े अवरोध खड़े कर सकती है.
वास्तुशास्त्र में दक्षिण-पश्चिम दिशा को घर मालिक के शयन कक्ष का स्थान माना जाता है. अर्थात् मुखिया की शांति में राहू की शुभता का खासा महत्व माना जाता है. राहू ठीक होने से नींद अच्छी आती है. इससे उूर्जा से भरा दिन बनता है.
राहू की खराबी की स्थिति में नींद, स्वास्थ्य, आकस्मिक अवरोध और अनिर्णय की स्थिति बनती है. इससे उन्नति का मार्ग प्रभावित होता है. नैरक्त्य कोण में स्थिर एवं भारी वस्तुओं को रखा जाता है. इस दिशा में हल्की और चलायमान वस्तुओं को रखने से बचें. हवा के लिए खिड़की आदि से बचें.
दक्षिण-पश्चिम दिशा में जल निकासी, सीढ़ी और जलभराव आदि नहीं होना चाहिए. इससे घर में सुख सौख्य के धन संचय में कमी आती है. महालक्ष्मी की कृपा कम होती है.
राहू की दिशा का भूभाग भवन के अन्य सभी स्थानों से उूंचा होना चाहिए. निचला होने पर राहू का प्रकोप बढ़ जाता है. अप्रत्याशित घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है. इसे उूंचा करके ठीक किया जा सकता है.
राहू को छाया ग्रह कहा जाता है. इस दिशा में सूरज का प्रकाश नहीं पहुंचता है. यह स्थान उजले रंगों की अपेक्षा गहरे रंगों से निखरता है. अलमारी जैसी भारी वस्तुएं इसी दक्षिण पश्चिम में रखना शुभ होता है. इस दिशा में मुख्यद्वार भी नहीं होना चाहिए. हालांकि कॉलोनी में सामने घर हों तो यह दोश कम हो जाता है. खुले मैदान में इस दिशा में दरवाजा बिलकुल नहीं रखना चाहिए.