संतान की चाह हर दंपति को होती है. ऐसे दंपति जिन्हें संतान पाने में देरी हो रही है. वे अपना शयन कक्ष घर में उत्तर और वायव्य दिशा के मध्य में बनाना चाहिए.
उत्तर दिशा को उर्ध्वमुखी दिशा माना जाता है. यह विकास और विस्तार की प्रतीक है. इसके स्वामी किशोर ग्रह माने जाने वाले बुध हैं. वायव्य दिशा पश्चिम और उत्तर दिशा के मिलन की स्थिति है. इसमें मेहमानों का कक्ष बनाया जाता है. इसे अतिथि के लिए शुभ माना जाता है. जिन घरों में वायव्य दिशा का भाग उर्जावान और सकारात्मक रहता है उन घरों मंे मेहमानों का आगमन बना रहता है.
संतान भी घर में नन्हे मेहमान के समान आती है. उत्तर और वायव्य दिशा के मध्य में बनाया गया कक्ष दंपति के लिए मिलन के लिए श्रेष्ठ होता है. वास्तुशास्त्र के अनुसार यहां रतिकक्ष बनाना श्रेष्ठ माना जाता है. अच्छे दाम्पत्य के फलस्वरूप ही महान संतान की प्राप्ति संभव है.
ज्योतिष में चंद्रमा को माता का कारक माना जाता है. माता के लिए उक्त कक्ष शुभकर होता है.
उत्तर दिशा की यहां प्रधानता होने से वायु प्रवाह के वातायनों अर्थात् खिड़की भी रखी जानी शुभकर होती है. इन पर अच्छे पर्दे अवश्य रखें. शयन कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग करें.
बिस्तर की दिशा पूर्व-पश्चिम की होनी चाहिए. इसमें सोते समय सिर पूर्व की ओर होना चाहिए. पैरों की ओर सीधी दिशा में कोई खिड़की दरवाजा भी होना चाहिए.
इस शयनकक्ष में दाम्पत्य की मधुरता बढ़ती है. सुख और संस्कारों में वृद्धि होती है.