मानसिक शांति के लिए यूं तो अपने देश में कई जगहें हैं लेकिन अगर आप कहीं ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां आपको सुकून भी मिले तो आप ‘शत्रुंजय पहाड़ी’ (How To Visit Shatrunjaya Hill Of Gujrat) की यात्रा कर सकते हैं. इस पहाड़ी पर जाना स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं है. ये जगह अध्यात्म और शांति के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है.
नई दिल्ली: आजकल के भाग- दौर वाली जिंदगी में लोग तनाव के आदि हो चुके हैं. लेकिन इसके प्रभाव बहुत बुरे होते हैं. ये आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत (Mental Health) पर बुरा असर डालते हैं. अगर विशेषज्ञ की मानें तो तनाव से बचने के लिए ध्यान, योग और यात्रा सबसे ज्यादा जरूरी है. इसके अलावा अपनी जीवनशैली (Lifestyle) में भी सुधार करना चाहिए. इसके साथ ही आपको नेचर के करीब थोड़ा समय जरूर बिताना चाहिए.
अध्यात्म और शांति है जरूरी
मानसिक शांति के लिए यूं तो अपने देश में कई जगहें हैं लेकिन अगर आप कहीं ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां आपको सुकून भी मिले तो आप ‘शत्रुंजय पहाड़ी’ (How To Visit Shatrunjaya Hill Of Gujrat) की यात्रा कर सकते हैं. इस पहाड़ी पर जाना स्वर्ग की अनुभूति से कम नहीं है. ये जगह अध्यात्म और शांति के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है. अगर आप यहां जाना चाहते हैं तो इसके बारे में थोड़ी जानकारी जरूर लें.
कहां है ‘शत्रुंजय की पहाड़ी’?
ये पहाड़ी गुजरात (Gujrat) के ऐतिहासिक शहर पालीताना (Palitana) के नजदीक है. इस शहर के नजदीक पांच पहाड़ियां हैं. इनमें सबसे पवित्र ‘शत्रुंजय पहाड़ी’ है. इस पहाड़ी पर सैकड़ों की संख्या में जैन मंदिर (Jain Temple) स्थित हैं. ये पहाड़ी समुद्र तल से 164 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस पहाड़ी पर एक-दो नहीं बल्कि कुल 865 मंदिर हैं और पहाड़ी पर पहुंचने के लिए आपको पत्थरों की 375 सीढ़ियों को चढ़ना होगा.
900 साल पहले हुआ था मंदिरों का निर्माण
गौरतलब है कि पहाड़ी पर स्थित इन मंदिरों का निर्माण 900 साल पहले करवाया गया था. कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन काफी संख्या में लोग इस पहाड़ी पर जमा होते हैं, जो कि नवंबर और दिसंबर महीने में पड़ता है. ऐसी मान्यता है कि जैन धर्म के संस्थापक आदिनाथ (Adinath) ने शिखर पर स्थित वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी. इस स्थल पर आज आदिनाथ का भी मंदिर है. मंदिर के परिसर में मुस्लिम संत अंगार पीर ( Sant Angar Peer) की मजार भी स्थित है. इन्होंने मुगलों से ‘शत्रुंजय पहाड़ी’ की रक्षा की थी. इसलिए संत अंगार पीर को मानने वाले मुस्लिम लोग भी इस पहाड़ी पर आते हैं और मजार पर मत्था जरूर टेकते हैं.