अगर आप सोचते हैं कि सिगरेट न पीने से आप लंग कैंसर के खतरे से बचे रह सकते हैं तो यह धारणा पूरी तरह से गलत है क्योंकि लंग कैंसर के 20% मामले स्मोकिंग न करने वालों में ही देखने को मिल रहे हैं.
नई दिल्ली: कैंसर की जिस बीमारी के मामले दुनियाभर में सबसे अधिक देखने को मिलते हैं उस लिस्ट में लंग कैंसर यानी फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer) दूसरे नंबर पर है. अधिकतर लोगों का यही मानना है कि सिगरेट पीने और धूम्रपान (Smoking) करने से लंग कैंसर होता है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि वैसे लोग जिन्होंने अपने जीवन में सिगरेट (Cigarette) को हाथ तक नहीं लगाया, कभी सिगरेट का एक कश तक नहीं लिया उन्हें भी लंग कैंसर हो रहा है. नॉन स्मोकर्स (Non-Smokers) में लंग कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और लंग कैंसर के करीब 20 प्रतिशत मामले स्मोकिंग न करने वालों में ही देखने को मिलते हैं.
नॉन-स्मोकर्स को भी हो रहा लंग कैंसर
अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस कैंसर सेंटर में लंग कैंसर स्पेशलिस्ट विन्सेंट लैम कहते हैं, स्मोकिंग करने वालों में होने वाला कैंसर (Cancer) और स्मोकिंग न करने वालों में होने वाला कैंसर दोनों बिलकुल अलग बीमारी की तरह है. नॉन स्मोकर्स जिन्हें लंग कैंसर की बीमारी होती है उनकी उम्र धूम्रपान करने वालों को तुलना में काफी कम होती है (Young Age) और ज्यादातर नॉन स्मोकर्स महिलाएं लंग कैंसर का शिकार हो रही हैं. डॉक्टरों की मानें तो कुछ सामान्य कारण हैं जिनकी वजह से सिगरेट न पीने वालों को भी लंग कैंसर हो रहा है.
1. पैसिव स्मोकिंग- आपने भले ही खुद कभी सिगरेट न पी हो लेकिन सिगरेट पीने वालों के साथ रहते हैं तो तंबाकू का धुआं आपके शरीर में भी जाएगा और लंग कैंसर का खतरा बढ़ जाएगा. सिगरेट पीने वालों के साथ रहने वाले नॉन स्मोकर्स में से 25 प्रतिशत को लंग कैंसर होने का खतरा रहता है. अमेरिका में हर साल पैसिव स्मोकिंग (Passive Smoking) के कारण लंग कैंसर से 3 हजार लोगों की मौत हो जाती है.
2. वायु प्रदूषण- ये तो हम सभी जानते हैं कि दुनिया की करीब 90 प्रतिशत आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है. वायु प्रदूषण (Air Pollution) की रफ्तार जिस तेजी से बढ़ रही है उसे देखते हुए ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि जब यह प्रदूषित हवा फेफड़ों के अंदर जाती है तो वह कितना नुकसान पहुंचाती होगी. लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों को लंग कैंसर हो रहा है.
3. ऐस्बैस्टस- ऐस्बैस्टस (Asbestos) एक तरह का मिनरल है और जो लोग इससे जुड़ा काम करते हैं उन्हें भी लंग कैंसर होने का खतरा अधिक होता है. इसका कारण ये है कि ऐस्बैस्टस के माइक्रोस्कोपिक फाइबर्स टूटकर हवा में रिलीज हो जाते हैं जो सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक ऐस्बैस्टस के संपर्क में रहे तो लंग कैंसर का खतरा अधिक होता है.
4. रेडॉन गैस- जब यूरेनियम (Uranium) सड़ता है तो उससे प्राकृतिक रूप से एक गैस निकलती है जिसे रेडॉन (Radon) कहते हैं और लंबे समय तक रेडॉन गैस के संपर्क में रहने की वजह से लंग कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. रेडॉन गैस जमीन के नीचे होती है लेकिन कई बार अगर मकान में किसी तरह का गैप आ जाए तो यह पाइपलाइन या ड्रेनेज के जरिए मकान के अंदर भी पहुंच सकती है. चूंकि इस गैस का कोई रंग या गंध नहीं होती इसलिए इसकी पहचान मुश्किल होती है.