विदेशी ई-काॅमर्स एवं इंटरनेट के जरिए विभिन्न सेवा दे रही विदेशी कंपनियों पर बजट 2021 के माध्यम से 1 अप्रैल 2020 से 2% की दर से एक्वालिसशन लेवी का प्रावधान किया गया है.
Budget 2021 Equalisation Levy: अमेजन (Amazon), फ्लिपकार्ट (Flipkart), गूगल (Google), जूम (Zoom) समेत अन्य विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को सामान या सेवाओं की बिकी पर 2 फीसदी अतिरिक्त टैक्स देना होगा. बजट 2021 में यह प्रावधान किया गया है. इस प्रावधान पर भ्रम की स्थिति हो गई थी कि क्या भारत में काम कर रही विदेशी कंपनियां, जो यहां आयकर एवं जीएसटी देती है उन पर भी लगेगा, क्या ग्राहकों पर भी इसका असर होगा? दरअसल, बजट में जो प्रावधान किए गए हैं, उसके मुताबिक यह प्रावधान सिर्फ उन कंपनियों पर लागू होगा जो भारत में कार्यरत नहीं है. इस प्रावधान से व्यापारियों के साथ-साथ ग्राहकों में भी एक भ्रम की स्थिति हो गई थी. हालांकि, बाद में सरकार ने इस प्रावधान पर स्थिति स्पष्ट कर दी कि विदेशी कार्यरत ईकाॅमर्स कंपनियों पर यह नियम लागू होंगे, जो यहां किसी भी तरह का टैक्स नहीं चुकाती हैं.
बजट प्रस्ताव के अनुसार, यह प्रावधान सामान की बिक्री पर भी लागू होगा फिर चाहे प्रोवाइडर ई-कॉमर्स पोर्टल का मालिक ही क्यों न हो. इसके अलावा, ई-कॉमर्स के जरिए सेवाओं उपलब्ध कराने वाली कंपनियां भी इसके दायरे में हैं, बशर्ते सर्विस प्रोवाइडर खुद ई कॉमर्स ऑपरेटर ही क्यों न हो. दरअसल, विदेशी ई-काॅमर्स एवं इंटरनेट के जरिए विभिन्न सेवा दे रही विदेशी कंपनियों पर बजट 2021 के माध्यम से 1 अप्रैल 2020 से 2 फीसदी की दर से एक्वालिसशन लेवी (Equalisation Levy) का प्रावधान किया गया है.
सरकार को था राजस्व का नुकसान
सीनियर चार्टर्ड अकाउंटेंट एवं डायरेक्ट टैक्स मामलों की जानकार राजेश्वर पैन्यूली का कहना है, कई ऐसी ई-काॅमर्स कंपनियां हैं, जिनका भारत में कोई कार्यालय नहीं है. इस प्रकार के ई-कॉमर्स पोर्टल विदेश में स्थित विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित किया जा रहे हैं. यह कंपनियां भारत सरकार को किसी भी प्रकार का टैक्स जैसे आयकर या जीएसटी नहीं देती हैं, लेकिन भारत में अच्छा-खासा कारोबार करती हैं. जिसके कारण सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है. इसे देखते हुए सरकार ने 2 फीसदी अतिरिक्त टैक्स का प्रावधान विदेशी ई-काॅमर्स कंपनियों के लिए किया है.
पैन्यूली ने बताया कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में भी स्पस्टीकरण देते हुए कहा था कि जो कंपनियां भारत में आयकर देती है उन्हें 2 फीसदी की एक्वालिसशन लेवी नहीं देनी है. पैन्यूली ने स्पष्ट किया कि यदि अमेजन अपने अमेरिका वाले पोर्टल के जरिए किसी व्यक्ति को भारत में सामान बेचती है, तो उसे यहां 2 फीसदी एक्वालिसशन लेवी देने के लिए बाध्य है. लेकिन, यदि वही अमेजन अपनी भारत स्थित कंपनी की ओर से संचालित ई-काॅमर्स पोर्टल के जरिए भारत में कोई बिक्री करता है तो उसे एक्वालिसशन लेवी नहीं देनी होगी, क्योंकि भारत स्थित अमेजन वाली कंपनी भारत में आयकर देती हैं.
क्या ग्राहकों पर होगा असर?
क्या बजट में बढ़ी हुई लेवी का असर उन ग्राहकों पर होगा, जो विदेशी ई-काॅमर्स से शाॅपिंग कर रहे हैं? इस मसले पर पेन्यूली बताते हैं, सरकार के इस प्रावधान से ग्राहकों को कोई अतिरिक्त असर नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह आयकर कंपनी की ओर से चुकाई जाती है, उसी प्रकार एक्वालिसशन लेवी भी कंपनी की तरफ से अपनी भारत में की गई बिक्री पर भुगतान किया जाएगा. उन्होंने बताया कि लेवी आयकर की तरह सालाना बिक्री पर गणना करके वसूल की जाएगी.
फैम ने कहा- 5% होनी चाहिए लैवी
फेडरेशन ऑफ आल इंडिया व्यापार मंडल फैम के राष्ट्रीय महामंत्री वीके बंसल ने बताया कि प्री-बजट सुझावों ने सुझावों में हमने सरकार से सभी प्रकार के ई-कॉमर्स पोर्टल के जरिए बिक्री पर 5 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाने की बात कही थी. बंसल ने कहा, हम 2 फीसदी एक्वालिसशन लेवी का स्वागत करते हैं. साथ ही वित्त मंत्री से मांग है कि वे इसे बढ़ाकर कम से कम 5 फीसदी करें. भारत एक बहुत बड़ा कंज्यूमर मार्केट है और इस बाजार को विकसित करने में भारत सरकार एक बड़ा निवेश कर रही है. यदि भारत के बाजार में कोई विदेशी कंपनी कारोबार करती है और भारत में न आयकर देता है और न हीं जीएसटी तो सरकार को अपने राजस्व की हानि के भरपाई के लिए कम से कम 5 फीसदी एक्वालिसशन लेवी वसूल करनी चाहिए.
गलत ट्रेड प्रैक्टिस पर रोक लगेगी: CAIT
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल का कहना है कि यह प्रस्ताव ‘सामान की ऑनलाइन बिक्री’ और ‘सर्विसेज के ऑनलाइन प्रावधान’ की परिभाषा का विस्तार करता है. ई-कॉमर्स को लेकर सभी भ्रम दूर हो जाएंगे और ये देश में ई-कॉमर्स को नई सिरे से परिभाषित करेगा. खंडेलवाल का कहना है कि अमेजन, वॉलमार्ट आदि ने देश के कानूनों के साथ खिलवाड़ किया है, जिसमें फेमा और एफडीआई पॉलिसी का बड़े पैमाने पर उल्लंघन भी शामिल है. हमें उम्मीद है कि प्रस्तावित प्रावधान का कड़ाई से अनुपालन होगा और यूएसबीसी जैसे लॉबी संगठनों के भारत के आंतरिक मामलों में दखल को रोका जा सकेगा.
खंडेलवाल का कहना है, समान लेवी की शुरुआत एक स्तर पर व्यापार के लिए समान मैदान मुहैया कराने और डिजिटल लेनदेन पर टैक्स कानूनों की परिधि को रोकने के लिए किया गया था. जैसाकि डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार करने के लिए और एक सिस्टम लाने पर वैश्विक सहमति से ओईसीडी और संयुक्त राष्ट्र संघ लगातार कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, भारत में समान लेवी की प्रक्रिया में 2016 के अपने प्रारंभिक स्वरूप से 2020 में कुछ बदलाव हुए है, और अब वित्त विधेयक 2021 में कुछ और बदलावों को जोड़ा गया हैं.