हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे पासपोर्ट के बारे में, जिसके साथ इंसान कहीं भी आ जा सकता है. हालांकि ये पासपोर्ट बिल्कुल भी आम नहीं है
कोरोना महामारी की वजह से यूं तो पूरी दुनिया थम सी गई थी. लेकिन अब जब तमाम देशों की सीमाएं खुल गई हैं, क्वारंटीन नियमों के साथ. तो अब लोग भी बाहर घूमने जाने लगे हैं. हालांकि कई देशों के लोग अब भी सभी जगहों पर नहीं जा सकते. वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं, जहां के नागरिकों को कहीं भी आने जाने की छूट है. ऐसा उस देश के पासपोर्ट की ताकत पर भी निर्भर करता है.
क्या आपको पता है कि भारतीय पासपोर्ट के साथ आप दुनिया के 53 देशों में बिना रोक टोक के एंट्री पा सकते हैं. ऐसे देशों में घूमने के लिए आपको एडवांस वीजा की जरूरत नहीं पड़ती. वहीं, अमेरिकी पासपोर्ट धारी दुनिया के 170 देशों में कभी भी आ जा सकते हैं. लेकिन इस पासपोर्ट के साथ कहीं ज्यादा देशों में तुरंत एंट्री मिल सकती है.
हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे पासपोर्ट के बारे में, जिसके साथ इंसान कहीं भी आ जा सकता है. हालांकि ये पासपोर्ट बिल्कुल भी आम नहीं है और इतना दुर्लभ है कि बीते 900 सालों में सिर्फ 500 लोगों को ही मिला है. इस पासपोर्ट के साथ दुनिया के अधिकांश देशों में आसानी से एंट्री मिल जाती है. हालांकि ये पासपोर्ट किसी देश की तरफ से जारी नहीं होता.
इस पासपोर्ट को सोवेरियन मिलिटरी एंड हॉस्पिटलर ऑर्डर ऑफ सैंट जॉह्न ऑफ जेरुसलम, ऑफ रॉड्स एंड ऑफ माल्टा की तरफ से जारी किया जाता है. ये किसी देश का नाम नहीं है, बल्कि ये एक धार्मिक संगठन है और सैकड़ों सालों से अस्तित्व में है. इसका अपना कोई देश नहीं है, लेकिन ऑर्डर ऑफ माल्टा की तरफ से करेंसी, स्टैंप सर्विस, गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन तक की व्यवस्था है.
सोवेरियन मिलिटरी एंड हॉस्पिटलर ऑर्डर ऑफ सैंट जॉह्न ऑफ जेरुसलम सन 1099 में अस्तित्व में आया. इसका हेडक्वार्टर समय के साथ बदलता रहता है. मौजूदा समय में रोम में इसका बेस है. खास बात ये है कि ये संगठन अराजनीतिक कार्यों में योगदान देता है और भूख, युद्ध के खिलाफ लड़ाई लड़ता है. युद्धों में संगठन की मानवीय सहायता वाली भूमिका को देखते हुए संगठन को साल 1994 में यूएन जनरल असेंबली का सदस्य बनाया गया. यानि एक देश की तरह इस संगठन से जुड़े अधिकारी को भी संयुक्त राष्ट्र महासभा में शामिल रहना होता है. खास बात ये है कि इस संगठन में हजारों लोग हैं, लेकिन इसका डिप्लोमेटिक पासपोर्ट पिछले 900 सालों में सिर्फ 500 लोगों को ही मिला है. हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देश इसके पासपोर्ट को मान्यता नहीं भी देते हैं.