नई दिल्ली: हर साल कार्तिक महीने में धनतेरस (Dhanteras) का त्योहार मनाया जाता है, जो छोटी दीपावली (Deepawali) से एक दिन पहले आता है. इस दिन भगवान धनवंतरि की पूजा की जाती है और यह एक शुभ दिन माना जाता है. सोना, चांदी के आभूषण और बर्तन आदि चीजें खरीदना शुभ माना जाता है. इस साल धनतेरस 13 नवम्बर यानी शुक्रवार को है.
धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धनवंतरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को ‘धनतेरस’ के रूप में मनाया जाता है. धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था. भगवान धनवंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है, विशेषकर कलश खरीदना शुभ माना जाता है. इस दिन खरीदी करने से उसमें 13 गुना वृद्धि होती है.
साबुत धनिया जरूर खरीदें
ऐसा कहा जाता है कि धनतेरस पर पीली वस्तुएं खरीदना चाहिए. जैसे सोना, पीतल के बर्तन या धनिया. साबुत धनिया खरीदना चाहिए. मान्यता है कि इसे तिजोरी में रख दें. फिर दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों या खेतों में बोते हैं. माना जाता है कि साबुत धनिया से हरा भरा स्वस्थ पौधा निकल आता है तो आर्थिक स्थिति उत्तम होती है.
झाड़ू खरीदने की परंपरा
इस दिन झाड़ू खरीदने की भी अनोखी परंपरा रही है. मत्स्य पुराण के अनुसार झाड़ू को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. वहीं बृहत संहिता में झाड़ू को सुख-शांति की वृद्धि करने वाली और दुष्ट शक्तियों का सर्वनाश करने वाली बताया है. झाड़ू को घर में दरिद्रता को हटाने का कारक बताया गया है और इसके इस्तेमाल से मनुष्य की दरिद्रता भी दूर होती है. साथ ही इस दिन घर में नई झाड़ू से झाड़ू लगाने से कर्ज से भी मुक्ति मिलती है.
धनतेरस से सजने लगती हैं दीपमालिका
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धनवंतरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. देवी लक्ष्मी हालांकि धन की देवी हैं, परंतु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य और लंबी आयु भी चाहिए. यही कारण है कि दीपावली के पहले यानी धनतेरस से ही दीपमालाएं सजने लगती हैं.
हर तरफ जगमग रोशनी
धनतेरस भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है. अधिकतर जगहों पर सायंकाल दीपक जलाकर घर-द्वार, आंगन, दुकान आदि को सजाते हैं. इस दिन से मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुआं, तालाब एवं बगीचे सभी जगहों को जगमग कर दिया जाता है. पश्चिमी भारत के व्यापारिक समुदाय के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है. महाराष्ट्र में लोग सूखे धनिया के बीज को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर एक मिश्रण बनाकर ‘नैवेद्य’ तैयार करते हैं.