आज के टाइम में हर व्यक्ति अपने भविष्य को ध्यान में रखकर चलता है. भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा मौजूद रहे, इसके लिए सेविंग्स जरूरी है. भारत में सेविंग्स के लिए बचत खाता, फिक्स्ड डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट में पैसे रखना अधिकतर लोग सहज, सरल व सुरक्षित मानते हैं. लेकिन इस बात पर गौर करना जरूरी है कि इन निवेश विकल्पों में जमा पैसे पर मिलने वाला ब्याज आयकर यानी इनकम टैक्स के दायरे में आता है क्योंकि इन सेविंग्स स्कीम्स से ब्याज को ‘अन्य सोर्स से इनकम’ माना जाता है. आइए जानते हैं इन तीनों निवेश विकल्पों के तहत होने वाली ब्याज आय पर टैक्स की गणना किस तरह होती है…
सेविंग्स अकाउंट व FD
आयकर कानून के सेक्शन 80TTA के तहत बैंक/को-ऑपरेटिव सोसायटी/पोस्ट ऑफिस के सेविंग्स अकाउंट के मामले में 10000 रुपये सालाना तक की ब्याज आय टैक्स फ्री है. इसका लाभ 60 साल से कम उम्र के व्यक्ति या HUF (Hindu Undivided Family) को मिलता है.
FD की बात करें तो बैंक FD से मिलने वाले ब्याज पर TDS कटता है, जो बैंक काटते हैं. लेकिन बैंक FD से सालाना ब्याज आय 40000 रुपये तक की सीमा के अंदर है तो TDS से छूट का प्रावधान है. यह लिमिट 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए है. यहां यह गौर करने वाली बात है कि पोस्ट ऑफिस की FD से ब्याज आय पर TDS नहीं कटता है.
अब बात करते हैं 60 साल से ज्यादा उम्र यानी सीनियर सिटीजन वालों की. सीनियर सिटीजन के मामले में सेविंग्स अकाउंट, FD/TD, पोस्ट ऑफिस स्कीम्स, को-ऑपरेटिव बैंकों में किए गए किसी भी तरह के डिपॉजिट से एक वित्त वर्ष में हासिल होने वाला 50000 रुपये तक का ब्याज टैक्स फ्री है. ऐसा आयकर कानून के सेक्शन 80TTB के तहत है
पोस्ट ऑफिस सेविंग्स अकाउंट में थोड़ा ज्यादा फायदा
टैक्स एक्सपर्ट सुनील गर्ग के मुताबिक, पोस्ट ऑफिस सेविंग्स अकाउंट रखने वाले व्यक्तियों को टैक्स में थोड़ा ज्यादा फायदा हासिल हो सकता है. बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि पोस्ट ऑफिस सेविंग्स अकाउंट से होने वाली सालाना ब्याज आय पर आयकर कानून के सेक्शन 10(15) के तहत एकल खाताधारक 3500 रुपये तक का अतिरिक्त डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं. वहीं अगर खाता ज्वॉइंट में है तो 7000 रुपये तक अतिरिक्त डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है. यह अतिरिक्त डिडक्शन, 10000/50000 रुपये वाली लिमिट के इतर है.
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर बैंक में सेविंग्स अकाउंट है तो सालाना केवल 10000 (सीनियर सिटीजन के लिए 50000 रु) रुपये की ब्याज आय को टैक्स से छूट है, वहीं अगर पोस्ट ऑफिस में सेविंग्स अकाउंट है तो सिंगल खाते पर 13500 रुपये (सीनियर सिटीजन के लिए 53500 रु) और ज्वॉइंट खाते पर 17000 रुपये (सीनियर सिटीजन के लिए 57000 रु) तक की सालाना ब्याज आय टैक्स फ्री हो जाएगी.
कैसे तय होती है छूट की लिमिट
सेविंग्स अकाउंट के मामले में 10000 रुपये की ब्याज आय लिमिट, व्यक्ति को हर सेविंग्स अकाउंट से सालाना होने वाली ब्याज आय को जोड़कर है. यानी अगर व्यक्ति के एक से अधिक बचत खाते हैं और वे बैंक, पोस्ट ऑफिस, को-ऑपरेटिव बैंक विभिन्न वित्तीय संस्थानों में मौजूद हैं तो उन सभी खातों से कुल आने वाले ब्याज को जोड़कर 10000 रुपये की लिमिट काउंट की जाएगी. इस लिमिट से अधिक ब्याज आय अमाउंट को व्यक्ति की टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाएगा और फिर उस पर टैक्सपेयर जिस टैक्स स्लैब में आता होगा, उसके अनुरूप टैक्स लगेगा.
FD के मामले में नियम थोड़ा अलग है. FD पर TDS के मामले में एक बैंक की सभी ब्रांच में मौजूद व्यक्ति की सभी FD से होने वाली कुल ब्याज आय को जोड़कर 40000 रुपये सालाना तक की लिमिट काउंट की जाती है.
RD से ब्याज पर टैक्स
CA योगेश अग्रवाल का कहना है, रिकरिंग डिपॉजिट (RD) से होने वाली ब्याज आय पर भी TDS कटता है. RD से भी साल में 40000 रुपये (सीनियर सिटीजन के मामले में 50000 रुपये) तक की ब्याज आय होने पर TDS लागू नहीं होता है. यह नियम अप्रैल 2019 से प्रभाव में आया है. लेकिन इस लिमिट से अधिक ब्याज आय होने पर TDS कटेगा.
FD: बैंक काटते हैं 10% TDS
FD/RD से तय छूट लिमिट से ज्यादा ब्याज आय होने पर बैंक द्वारा काटे जाने वाले TDS की दर 10 फीसदी रहती है. लेकिन अगर PAN न दिया जाए तो TDS की दर 20 फीसदी हो जाती है. एक बात और नोट करने वाली है, HDFC Bank के मुताबिक 14 मई 2020 से 31 मार्च 2021 तक के लिए FD से 40000 रुपये सालाना (सीनियर सिटीजन के मामले में 50,000 रुपये) से अधिक की ब्याज आय पर TDS की दर को घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया गया है. हालांकि PAN डिटेल्स न दिए जाने पर दर 20 फीसदी ही रहेगी.
जब टैक्स के दायरे में न आती हो कुल इनकम
अगर आपकी FD/RD से सालाना ब्याज आय 40000/50000 रु से अधिक है लेकिन कुल सालाना आय (ब्याज आय मिलाकर) उस सीमा तक नहीं है, जहां उस पर टैक्स लगे तो बैंक TDS नहीं काट सकते. बैंक TDS न काटे, इसके लिए सीनियर सिटीजन को बैंक में फॉर्म 15H जमा करना होता है. वहीं जो लोग सीनियर सिटीजन नहीं हैं, उन्हें फॉर्म 15G जमा करना होता है. ये फॉर्म इस घोषणा के लिए हैं कि व्यक्ति की सालाना आय एक वित्त वर्ष में तय मिनिमम एग्जेंप्ट इनकम से ज्यादा नहीं है. इन फॉर्म को हर साल वित्त वर्ष की शुरुआत में जमा करना होता है ताकि टैक्स न कटने पाए.