देहरादून: तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाली सायरा बानो भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई हैं. उत्तराखंड भाजपा के अध्यक्ष बंशीधर भगत ने सायरो बानो का शनिवार को पार्टी में स्वागत किया. इस दौरान बंशीधर भगत ने कहा कि जिस तरह सायरा बानो ने दृढता के साथ तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उसी तरह वह भाजपा के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करेंगी. विशेष तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के बीच पार्टी की पहुंच बढ़ाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
आपको बता दें कि तीन तलाक को आपराधिक बनाने की मांग को लेकर सायरा बानो ने ही सुप्रीम कोर्ट में सबसे पहली याचिका दायर की थी. बीते दो साल से उनके भाजपा में आने की अटकलें लग रही थीं. वर्ष 2018 में सायरा बानो 8 जुलाई को भाजपा के तत्कालिक प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट से मिलकर पार्टी में शामिल होने की इच्छा जताई थी. अब दो वर्षों के बाद उनकी यह इच्छा पूरी हो गई है. सायरा भविष्य में चुनाव मैदान में नजर आ सकती हैं. उन्होंने इसका फैसला पार्टी के ऊपर छोड़ दिया है.
उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली हैं सायरा बानो
उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली सायरा बानो ने ही पहली बार तीन तलाक (Triple Talaq), बहुविवाह (Polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए फरवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. सायरा का निकाह 2002 में इलाहाबाद के एक प्रॉपर्टी डीलर से हुई थी. सायरा का आरोप था कि शादी के बाद उन्हें हर दिन पीटा जाता था. पति हर दिन छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करता था. पति ने उन्हें टेलीग्राम के जरिए तलाकनामा भेजा. वह एक मुफ्ती के पास गईं तो उसने कहा कि टेलीग्राम से भेजा गया तलाक जायज है. इसके बाद सायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के रिवाज को चुनौती दी.
पहले 1985 में शाहबानो फिर 2016 में सायरो बानो का मामला
पहले 1985 और फिर 2019 यानी 34 साल में दो मौके ऐसे आए, जब तीन तलाक का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद संसद तक पहुंचा और इस पर कानून बना. शाहबानो 1985 में तीन तलाक के बाद कम गुजारा भत्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सर्वोच्च अदालत ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि तीन तलाक के बाद महिला गुजारे भत्ते की हकदार होगी. शीर्ष अदालत के इस फैसले को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसदीय विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए पलट दिया. इसी मामले में केरल के वर्तमान गवर्नर और तब राजीव कैबिनेट में मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
मोदी सरकार ने 2019 में बनाया तीन तलाक के खिलाफ कानून
साल 2019 में मोदी सरकार ने संसद से ऐसा विधेयक पारित कराया कि तीन तलाक अपराध की श्रेणी में आ गया. सायरा बानो की याचिका पर ही अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाकर तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था. इसके बाद मोदी सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह से जुड़े अधिकारों का संरक्षण) विधेयक संसद से पारित कराया, जो अब कानून बन चुका है. इस कानून के तहत तलाक-ए-बिद्दत यानी एक ही बार में तीन बार तलाक कहना आपराधिक श्रेणी में आ गया है. वॉट्सऐप, एसएमएस के जरिए तीन तलाक देने से जुड़े मामले भी इस कानून के तहत ही सुने जाएंगे. नए कानून में तीन तलाक की पीड़िता को अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा-भत्ता मांगने का हक मिला है.
नए कानून के मुताबिक अब तीन तलाक गैर-जमानती अपराध है
नए कानून के मुताबिक तीन तलाक गैर-जमानती अपराध है. यानी आरोपी को पुलिस स्टेशन से जमानत नहीं मिलेगी. पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर मजिस्ट्रेट ही जमानत दे सकेंगे. उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा. मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा. आरोपी पति को उसका भी गुजारा-भत्ता देना होगा. तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा, जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं. तीन तलाक देने के दोषी पुरुष को तीन साल की सजा देने का प्रावधान है.