बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक 2020 को मंगलवार को संसद की मंजूरी मिल गयी. यह विधेयक सहकारिता क्षेत्र के बैंकों (को-ऑपरेटिव बैंक) को बैंकिंग क्षेत्र की नियामक संस्था, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के निगरानी दायरे में लाने के लिए है. इस विधेयक का उद्देश्य जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करना है. राज्यसभा ने बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक, 2020 को ध्वनिमत से पारित कर दिया. विधेयक को लोकसभा 16 सितंबर को पारित कर चुकी है.
यह विधेयक कानून बनने के बाद उस अध्यादेश की जगह लेगा, जिसे 26 जून को लाया गया था. पीएमसी बैंक घोटाले की पृष्ठभूमि में लाये गये इस विधेयक का उद्देश्य सहकारी बैंकों में पेशेवर तौर तरीकों को बढ़ाना, पूंजी तक पहुंच को बेहतर बनाना, प्रशासन में सुधार लाना और रिजर्व बैंक के माध्यम से समुचित बैंकिंग व्यवस्था को सुनिश्चित करना है.
कोविड काल में कई सहकारी बैंक वित्तीय दबाव में
राज्यसभा में विधेयक पर संक्षिप्त चर्चा का जवाब देते हुए, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जमाकर्ताओं के हितों की पूर्ण रक्षा करने के लिए ये प्रावधान किए गए हैं. यह संशोधन केवल बैंकिंग गतिविधियों में लगी सहकारी समितियों के लिए है. सीतारमण ने कहा, ‘‘कोविड की अवधि के दौरान कई सहकारी बैंक वित्तीय दबाव में आ गए. उनकी वित्तीय स्थिति पर नियामक संस्था रिजर्व बैंक द्वारा कड़ी निगरानी की जा रही है.’’ वित्त मंत्री ने लोकसभा में इस बिल पर चर्चा के दौरान कहा था कि 277 शहरी सहकारी बैंकों का वित्तीय स्टेटस कमजोर है. 105 सहकारी बैंक मिनिमम रेगुलेटरी कैपिटल जरूरत को पूरा करने में असमर्थ हैं. 47 बैंकों की नेटवर्थ निगेटिव है. 328 शहरी सहकारी बैंकों का ग्रॉस NPA रेशियो 15 फीसदी से भी अधिक है.
संशोधनों की आवश्यकता को उचित ठहराते हुए, वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार संकट से जूझ रहे यस बैंक का जल्द समाधान निकालने में सक्षम हुई क्योंकि यह वाणिज्यिक बैंक नियमों द्वारा संचालित था, लेकिन पीएमसी बैंक संकट का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है.