Loan Moratorium: लोन मोरेटोरियम की सुविधा लेने वाले ग्राहकों को ब्याज पर ब्याज देने से राहत मिल सकती है. कम से कम सुप्रीम कोर्ट में अब तक इस मामले पद चल रही सुनवाई देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. कोर्ट ने सरकार को भी कहा है कि मोरेटोरिमय अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज न लेने पर विचार करें. सरकार ने अब इस मामले में ठोस योजना के साथ आने को कहा है. वहीं, सरकार ने अब इस मामले में लोन मोरेटोरियम का ग्राहकों पर असर जानने के लिए समिति का गठन किया है. यह समिति देखेगी कि 6 महीने का ब्याज माफ करने का क्या असर होगा. वहीं, यह कर्जदारों को ब्याज पर ब्याज से राहत सहित कई अन्य मुद्दों का आकलन करेगी.
सुविधा लेने वालों को क्यों दोहरा झटका
लॉकडाउन के चलते आरबीआई ने उन ग्राहकों को लोन मोरेटोरियम की सुविधा दी थी, जो आमदनी घटने की वजह से समय से ईएमआई चुकाने में असमर्थ थे. यह सुविधा मार्च से अगस्त तक यानी 6 महीने तक रही. हालांकि यह सिर्फ फौरी तौर पर ही राहत था, क्योंकि यह सिर्फ ईएमआई को टालने का विकल्प था. लेकिन ग्राहकों को झटके वाली बात यह रही कि जितने दिन के लिए उन्होंने मोरेटोरियम लिया है, उस दौरान ईएमआई के बनने वाले ब्याज पर आगे बैंक ब्याज लेंगे. यानी सीधी सी बात है कि उनकी या तो मंथली ईएमआई बढ़ेगी या ईएमआई भरने की अवधि.
ग्राहकों के पक्ष में क्या है दलील
इस मामले में कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि अगर सरकार ने लॉकडाउन को देखते हुए यह सुविधा दी है तो फिर ग्राहकों को ब्याज पर ब्याज क्यों देना पउ़ रहा है. जिन ग्रोहकों ने ईएमआई को टाला था, अब उनकी ईएमआई बढ़कर आ रही है. उनसे चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंडिंग इंट्रेस्ट लिया जा रहा है. फिर इस सुविधा का क्या फायदा है. यह योजना तो ग्राहकों पर दोगुनी मार है क्योंकि वे हमें चक्रवृद्धि ब्याज चार्ज किया जा रहा है. ब्याज पर ब्याज वसूलने के लिए बैंक इसे डिफॉल्ट मान रहे हैं.
बैंकों ने सरकार पर मढ़ा आरोप
बैंकों की संस्था IBA की ओर से पेश वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सरकार ने कोई ठोस फैसला नहीं लिया, बल्कि एक और रिजॉल्यूशन के साथ जरूर आ गई. कर्जदारों को लेकर चिंता जताई जा रही है, यहां पर रिजर्व बैंको को नहीं बल्कि वित्त मंत्रालय को कुछ कदम उठाने की जरूरत है. जहां तक डाउनग्रेडिंग और ब्याज पर ब्याज वसूलने की बात है, हमें इस पर चर्चा करनी चाहिए. कोरोना महामारी की वजह से पूरी इंडस्ट्री मुश्किल दौर से गुजर रही है.
CREDAI की सुप्रीम कोर्ट में दलील
रियल एस्टेट कंपनियों की संस्था CREDAI तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा कि मौजूदा लोन रीस्ट्रक्चरिंग से 95 फीसदी कर्जदारों को कोई फायदा नहीं होगा. कर्जदारों को डाउनग्रेड किया जा रहा है, उसे रोकना चाहिए और जो ब्याज पर ब्याज वसूला जा रहा है, उस पर रोक लगनी चाहिए. साथ ही लोन मोरेटोरियम स्कीम को आगे बढ़ाया जाना चाहिए.
समिति में ये हैं शामिल
भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राजीव महर्षि की अध्यक्षता में गठित समिति में दो अन्य सदस्य आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रोफेसर और रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के पूर्व सदस्य डॉ. रवींद्र ढोलकिया, भारतीय स्टेट बैंक और आईडीबीआई बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक बी. श्रीराम शामिल हैं. समिति कोविड-19 अवधि के दौरान कर्ज किस्त पर दी गई छूट अवधि में ब्याज और ब्याज पर ब्याज से राहत दिए जाने का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करेगी. समिति समाज के विभिन्न वर्गों पर पड़ने वाले वित्तीय संकट को कम करने और उपायों के बारे में भी सुझाव देगी.