नई दिल्ली: आजकल आप हमेशा अपने साथ दो चीजें जरूर रखते होंगे. पहली चीज है, हैंड सैनिटाइजर (Sanitizer) और दूसरी महत्वपूर्ण चीज है, फेस मास्क (Face Mask) . इन दोनों को कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार माना जाता है. लेकिन भारत में बिकने वाले ज्यादातर हैंड सैनिटाइजर नकली हैं. ज्यादातर फेस मास्क की क्वालिटी ऐसी ही है कि वो आपको पूरी तरह से वायरस से नहीं बचा सकते.
सबसे पहले बात हैंड सैनिटाइजर्स की करेंगे. कंज्यूमर गाइडेंस सोसायटी ऑफ इंडिया यानी CGSI ने मुंबई और आसपास के इलाकों से हैंड सैनिटाइजर्स के 122 सैंपल जमा किए. जांच में इनमें से 50 प्रतिशत या तो नकली पाए गए या फिर इनमें मेथेनॉल जैसे जहरीले रसायनों की अधिक मात्रा पाई गई. यानी जिन सैनिटाइजर्स का इस्तेमाल करके आप खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं. उनकी क्वालिटी पूरी तरह से भगवान भरोसे है. जो 122 सैंपल इकट्ठा किए गए उनमें से 118 ब्रांडेड कंपनियों के थे, जबकि चार अनब्रांडेड यानी लोकल प्रोडक्ट थे. इन Samples की जांच में पता चला कि 37 प्रतिशत सैनिटाइजर्स के लेबल पर जो दावे थे, वो ठीक नहीं हैं. 10 प्रतिशत सैनिटाइजर्स ऐसे थे जिनके लेबल पर कोई जानकारी नहीं दी गई थी. एक कंपनी का सैनिटाइजर तो ऐसा भी था जो कोरोना तो छोड़िए, किसी भी वायरस को मारने में सक्षम नहीं था.
18 से 65 प्रतिशत तक मेथेनॉल का इस्तेमाल
अगर इस जांच को आधार मान लिया जाए तो आप कह सकते हैं कि भारत में बिकने वाले आधे सैनिटाइजर्स या तो मिलावटी हैं या वो कोरोना वायरस से लड़ने में सक्षम ही नहीं हैं. इस जांच में एक और खतरनाक बात पता चली कि 4 प्रतिशत सैनिटाइजर्स में एक जहरीला केमिकल मौजूद था जिसका नाम है मिथेनोल. जिन सैंपल्स में ये केमिकल पाया गया उन्हें बनाने वाली कंपनियों ने दावा तो किया था कि उनके प्रोडक्ट में 70 से 95 प्रतिशत तक इथेनॉल यानी अल्कोहल का इस्तेमाल किया गया है. लेकिन असल में ये कंपनियां अल्कोहल की जगह 18 से 65 प्रतिशत तक मिथेनोल का इस्तेमाल कर रही थीं.
मेथेनॉल अगर किसी के शरीर में चला जाए तो वो व्यक्ति बेहोश हो सकता है. उसकी किडनी फेल हो सकती है और सांस लेने में परेशानी हो सकती है. लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से जान भी जा सकती है.
कुल मिलाकर भारत में कई कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए या तो ग्राहकों को मिलावटी और नकली सैनिटाइजर बेच रही हैं या फिर आपके घर और शरीर में जहर पहुंचाने का काम कर रही हैं.
यही हाल फेस मास्क का भी
यही हाल फेस मास्क का भी है. कोरोना वायरस के बाद से भारत में फेस मास्क और सैनिटाइजर बनाने वाली कंपनियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. लेकिन इन प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता सवालों के घेरे में है. एक समस्या ये भी है कि जिन लोगों के पास ढंग का फेस मास्क है. उनमें से भी कई लोग ठीक से इसे पहनना नहीं चाहते. ऐसे लोग अपने साथ साथ दूसरों की जान को भी खतरे में डालते हैं. ये ठीक वैसा ही है जैसे जब कोई व्यक्ति शराब पीकर गाड़ी चलाता है तो वो अपने साथ साथ दूसरों की जान भी खतरे में डाल देता है. अगर लोग सावधान हो जाएं और ठीक से फेस मास्क पहनना शुरू कर दें तो भारत में लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है.
लापरवाही भारी पड़ सकती है
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के एक रिसर्चर का आकलन है कि अगर भारत में फेस मास्क को प्राथमिकता दी जाए तो इस साल दिसंबर तक 2 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है. इससे संक्रमण की रफ्तार को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. भारत में अब तक 36 लाख लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका है. इससे 66 हजार से ज्यादा मौत हो चुकी है. इसके बावजूद भारत में सैनिटाइजर जैसे महत्वपूर्ण प्रोडक्ट की क्वालिटी पर किसी का ध्यान नहीं है. कोरोना वायरस के इस दौर में ये लापरवाही कैसे भारी पड़ सकती है. इस पर हमने एक छोटा सा विश्लेषण तैयार किया है.
कोरोना वायरस की वैक्सीन अब भी महीनों दूर है और इस महामारी से बचने के दो सबसे मजबूत हथियार हैं फेस मास्क और सैनिटाइजर. जिसने अपने हाथों को सैनिटाइज कर लिया और जिसने चेहरे पर ठीक से मास्क लगा लिया. वो इस वायरस से आधी जंग यूं ही जीत जाता है. लेकिन भारत का सिस्टम और भारत के लोग इस जंग में दिल से लड़ ही नहीं रहे.
सैनिटाइजर में जहरीले केमिकल
मुंबई और थाणे से सैनिटाइजर्स के 100 से ज्यादा सैंपल्स लिए गए इनमें से करीब आधे या तो मिलावटी निकले या फिर ग्राहकों को गुमराह करने वाले. जबकि कुछ तो ऐसे थे जिनमें कोरोना वायरस से बचाने वाले नहीं, बल्कि आपको अस्पताल पहुंचाने वाले जहरीले केमिकल मौजूद हैं. एक्सपर्ट्स की राय है कि सैनिटाइजर के प्रति सिस्टम और लोगों की ये सोच पूरे देश के स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकती है.
भारत में मार्च में कोरोना वायरस तेजी से फैलना शुरू हुआ और अप्रैल और मई आते आते देश के तमाम शहरों और कस्बों में धड़ल्ले से सैनिटाइजर बनने लगे. लोगों के मन में खौफ है. इसलिए इनकी मांग भी 6 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है. लेकिन बढ़ती मांग के बीच लोग सैनिटाइजर को लेकर लापरवाह हो रहे हैं. जिस सैनिटाइजर में 60 प्रतिशत से ज्यादा अल्कोहल नहीं होता वो कोरोना से लड़ने में भी सक्षम नहीं होता. लेकिन क्या लोग सैनिटाइजर खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखते हैं?
सैनिटाइजर और मास्क से समझौता आपकी सेहत बिगाड़ सकता है
सैनिटाइजर से समझौता आपकी सेहत बिगाड़ सकता है तो मास्क पहनने के प्रति बरती गई लापरवाही आपके साथ साथ दूसरों के जीवन को भी खतरे में डाल देती है. भारत में संक्रमण का अब चरम पर पहुंच रहा है. लेकिन कई लोगों का मास्क नाक से ऊपर आने का नाम नहीं लेता.
अमेरिका में कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर हुई रिसर्च कहती है कि अगर भारत के लोगों ने ठीक से मास्क पहनना सीख लिया तो सिर्फ दिसंबर तक की 2 लाख लोगों को मरने से बचाया जा सकता है. कोरोना वायरस से मौतों के मामले में भारत अभी दुनिया में पांचवें नंबर पर है. भारत में अब भी कोरोना का कर्व समतल नहीं हुआ है. इसलिए अभी मौतों का आंकड़ा बढ़ने की आशंका है. लेकिन आपके मास्क पहनने की आदत हजारों नहीं लाखों जिंदगियां बचा सकती है.
इसलिए मास्क से कतराइये मत और बाजार से कोई भी सैनिटाइजर उठाकर इतराइये मत क्योंकि, बेमन से पहना मास्क, आपकी और दूसरों की जान का दुश्मन बन सकता है और सस्ते के चक्कर में खरीदा गया सैनिटाइजर आपको कोरोना से बचाने की बजाय अस्पताल तक पहुंचा सकता है. इसलिए दोनों ही मामलों में सोच समझकर फैसला कीजिए.
असली और नकली की पहचान
सबसे पहले तो वही सैनिटाइजर खरीदें जिस पर किसी जानी पहचानी कंपनी का लेबल लगा हो. फिर इस लेबल को ध्यान से पढ़ें कि कहीं इसमें बड़ी मात्रा में मेथेनॉल तो नहीं है. ये भी देखें कि सैनिटाइजर में इथेनॉल है या नहीं. जिस सैनिटाइजर में इथेनॉल नहीं होता तो वो किसी काम का नहीं हैं.
सैनिटाइजर को किसी ठंडी जगह पर और बच्चों की पहुंच से दूर रखें. अगर आपने या आपके परिवार में किसी ने मेथेनॉल से बने सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर लिया है तो उसके स्वास्थ्य पर नजर रखें. अगर उसे सिरदर्द, चक्कर, पेट में दर्द या उलटी की शिकायत हो तो फौरन अपने डॉक्टर से संपर्क करें. जिन लोगों को त्वचा, किडनी या लिवर की कोई समस्या है उन्हें सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए.