Overdraft Facility: मुश्किल वक्त में व्यक्ति की पैसों की जरूरत पूरी हो सके, इसके लिए बैंकों ने लोन की सुविधा उपलब्ध करा रखी है. लेकिन बैंक लोन से मिलती-जुलती एक अन्य सुविधा की भी पेशकश करते हैं, जो है ‘ओवरड्राफ्ट’ (OD). यह प्रॉडक्ट लोन जैसा होने के बावजूद उससे थोड़ा अलग है. OD की पेशकश बैंक व एनबीएफसी समेत लगभग सभी वित्तीय संस्थान करते हैं.
लोन की तरह ओवरड्राफ्ट में भी बैंकों की ओर से ग्राहक के लिए एक निश्चित धनराशि एक निश्चित रिपेमेंट अवधि के साथ लोन अमाउंट के रूप में मंजूर होती है. लोन विकल्प में पूरा लोन अमाउंट ग्राहक को दे दिया जाता है और उस पूरे अमाउंट पर ब्याज का भुगतान धनराशि मिलने के पहले दिन से करना होता है. लेकिन ओवरड्राफ्ट सुविधा में ग्राहक मंजूर धनराशि में से अपनी जरूरत के बराबर का पैसा अपनी सुविधानुसार निकाल सकता है और उसे केवल उसी अमाउंट पर ब्याज का भुगतान करना होता है, जितना उसने विदड्रॉ कर इस्तेमाल किया है. ओवरड्राफ्ट पर भी प्रोसेसिंग फीस रहती है. ब्याज और फीस को उस दिन से लगाया जाता है, जिस दिन से ग्राहक ने ओवरड्राफ्ट लिमिट को इस्तेमाल करना शुरू किया.
बैंक खाते से निकाल सकते हैं OD का पैसा
ओवरड्राफ्ट ग्राहक के बचत या चालू खाते से लिंक होता है, जिससे ग्राहक OD अमाउंट को जरूरत के हिसाब से निकाल सके और फिर डिपॉजिट कर सके. ओवरड्राफ्ट, बचत/चालू खाते में मौजूद बैलेंस के इतर रहता है, यानी अगर ग्राहक के बचत/चालू खाते में पैसा नहीं भी है तो भी ओवरड्राफ्ट के कारण वह अपने खाते में से ओवरड्राफ्ट की लिमिट तक का कैश निकाल सकता है. ओवरड्राफ्ट की लिमिट क्या रहेगी, यह ग्राहक की जरूरत और बैंक या NBFCs पर निर्भर करता है.
OD का रिपेमेंट
ओवरड्राफ्ट को लोन की तरह EMI में चुकाने की बाध्यता नहीं है. ग्राहक इसे रिपेमेंट अवधि के दौरान जब चाहे चुका सकता है. वह चाहे तो इसे टुकड़ों में चुका सकता है, या फिर एकमुश्त. चाहे तो रिपेमेंट अवधि पूरी होने से पहले ही बिना कोई चार्ज दिए ओवरड्राफ्ट का रिपेमेंट किया जा सकता है. अगर पैसा उपलब्ध है तो OD अमाउंट को जमा कर देने के बाद रिपेमेंट अवधि के दौरान ही फिर से जरूरत पड़ने पर फिर से विदड्रॉ किया जा सकता है. इससे ब्याज में बचत की जा सकती है. ब्याज डेली बेसिस पर कैलकुलेट होता है.
देनी होती है सिक्योरिटी
ग्राहक एफडी, शेयर्स, प्रॉपर्टी, सैलरी, इंश्योरेंस पॉलिसी, बॉन्ड्स आदि जैसी चीजों को बैंक को गिरवीं रख इन पर ओवरड्राफ्ट हासिल कर सकते हैं. इसे आसान भाषा में एफडी या शेयर्स पर लोन लेना भी कहते हैं. कुछ बैंक सैलरी पर भी ओवरड्राफ्ट की पेशकश करते हैं. इस सुविधा को जॉइंट में भी लिया जा सकता है. ऐसे में पैसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की होगी. वहीं अगर कोई एक अमाउंट को नहीं चुका पाता है तो दूसरे को पूरा अमाउंट चुकाना होगा. वहीं गिरवी रखी गई चीजों पर जोखिम पैदा हो जाएगा.