कोरोना महामारी (Corona epidemic) दुनिया में जब से फैलनी शुरू हुई है उसके बाद से ही इसकी वैक्सीन और अन्य चीजों को लेकर रिसर्च चल रहे हैं. myUpchar से जुड़े एम्स के डॉ. अजय मोहन बताते हैं कि दवा की जरूरत विशेषकर उम्रदराज लोगों को ज्यादा होती है, जिन पर कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा है. तमाम शोध के बीच ब्रिटेन में भी एक बड़ा क्लिनिकल ट्रायल हुआ है. इस रिसर्च में 12 हजार लोगों को शामिल किया गया था. इसमें यह पता चला कि डेक्सामैथासोन नाम की दवा कोरोना संक्रमण के खतरे से बचाने में कुछ हद तक सफल रही है. आइए जानते हैं इस दवा के अलावा अन्य ऐसी दवाइयों के बारे में, जिन्होंने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ने में एक उम्मीद की किरण जगाई है.
सबसे कारगर दवा है डेक्सामैथासोन
ब्रिटेन में हुए शोध में पता चला है कि कम मात्रा में इस दवा के उपयोग से कोरोना वायरस के गंभीर मरीज भी ठीक हो रहे हैं. विशेषकर ऐसे कोरोना संक्रमित मरीज, जिन्हें वेंटिलेटर की जरूरत होती है, उन्हें डेक्सामैथासोन दवा देने पर सेहत में सुधार हो रहा है. इस दवा को देने के बाद एक तिहाई मरीजों को वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ी. डेक्सामैथासोन दवा का उपयोग अब तक सूजन कम करने में किया जाता था, लेकिन अब प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में भी यह सफल साबित हुई है. फिलहाल अधिक जोखिम वाले लोगों पर ही इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं ऐसे मरीज, जिनमें कोरोना वायरस के बहुत कम लक्षण पाए जाते हैं, उनमें डेक्सामैथासोन का असर काफी कम देखने को मिलता है.
रेमडेसिवीर का ट्रायल भी सफल
अब तक इबोला के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही रेमडेसिवीर दवा के भी कोरोना संक्रमण के खिलाफ उत्साहवर्द्धक नतीजे सामने आए हैं. इस दवा का ट्रायल दुनियाभर में हजारों लोगों पर किया गया, जिसमें यह बात सामने आई कि जिन लोगों को रेमडेसिवीर दवा दी गई, उनमें कोरोना के लक्षण 15 दिन के बजाए 11 दिन तक ही दिखे. शोधकर्ताओं का यह मानना है कि एंटी वायरल दवाएं कोरोना संक्रमण के शुरुआती समय में काफी कारगर साबित हुई हैं, बल्कि इम्युनिटी बढ़ाने वाली दवाएं संक्रमण के आखिरी चरण में काम आई हैं
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा
मलेरिया से पीड़ित मरीजों को दी जाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा अब तक काफी चर्चा में रही है, लेकिन अब भी इस दवा के कोरोना मरीजों पर असरदार होने के कोई खास प्रमाण नहीं मिले हैं. इस दवा का उपयोग आर्थराइटिस के इलाज के लिए भी किया जाता है और अब रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा रहा है. ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के रिकवरी ट्रायल से यह पता चला है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना संक्रमण के इलाज में कोई खास मददगार नहीं है, इसलिए यह ट्रायल से बाहर हो गई.
प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी का सबसे पहले प्रयोग अमेरिका में किया गया था, जिसमें कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों का प्लाज्मा निकाल कर अन्य गंभीर मरीजों में डाला गया था. चूंकि, ठीक हुए मरीजों में एंटीबॉडी तैयार हो चुकी थी, इसलिए कुछ हद तक यह प्रयोग सफल भी रहा. एंटीबॉडी कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ती है, लेकिन कई जगह प्लाज्मा थेरेपी में भी खास कामयाबी नहीं मिली है, क्योंकि इसमें भी कई तरह की जोखिम होते हैं. myUpchar से जुड़े एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, तमाम प्रयासों के बाद भी कोरोना वायरस अब तक लाइलाज है. जब तक इलाज नहीं मिल जाता तब तक सावधानी बरतना बहुत जरूरी है.