हालांकि केंद्र सरकार (Central Government) और ज़्यादातर राज्य सरकारें यह मानने से परहेज़ कर रही हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण कम्युनिटी ट्रांसमिशन की स्टेज में पहुंच चुका है, लेकिन Covid-19 के ताज़ा आंकड़ों (Corona Numbers) के विश्लेषण से ये दावे खोखले साबित हो जाते हैं. सरकारों की दलील है कि देश की आबादी के लिहाज़ से संक्रमण की इस संख्या के आधार पर कम्युनिटी ट्रांसमिशन साबित नहीं होता लेकिन विशेषज्ञों (Experts) की दलील कहती है कि जब आप संक्रमण का कॉंटैक्ट ट्रैस नहीं कर पा रहे, तो ये स्टेज खतरनाक हो चुकी है.
कई खबरों में ये भी टटोला गया है कि क्यों और कैसे सरकारें इस सच को स्वीकार करने से कतरा रही हैं. इसी बीच, देश भर के पिछले एक हफ्ते के आंकड़ों से पता चलता है कि कम से कम तीन राज्यों में तो कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इनकार करना मूर्खतापूर्ण ही होगा. जानिए क्या है हकीकत.
किन राज्यों ने माना कम्युनिटी ट्रांसमिशन?
केरल एक ऐसा राज्य रहा, जिसने सबसे पहले कोविड 19 पर काबू पाने की तस्वीर और मिसाल पेश की थी, लेकिन संक्रमण के दूसरे दौर के बाद मुख्यमंत्री पी विजयन ने माना कि राज्य में कम्युनिटी स्प्रेड की स्थिति हो सकती है. कुछ ही रोज़ पहले तेलंगाना ने भी मामले तेज़ी से बढ़ने के बाद कहा था कि यह स्थिति हो सकती है, लेकिन स्पष्ट तौर पर नहीं माना.
ताज़ा स्थिति ये है कि महाराष्ट्र भी इस स्थिति को मान रहा है, लेकिन भाषा बड़ी सियासी है. राज्य के स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन से मना नहीं किया जा सकता लेकिन यह तय करना राज्य सरकार का काम नहीं है क्योंकि यह आईसीएमआर का कार्यक्षेत्र है और सबको उसी के निर्देश मानने हैं.
विज्ञान में पारदर्शिता न होने पर नाराज़गी
स्वास्थ्य एवं विज्ञान के विशेषज्ञों के हवाले से लगातार खबरें कह रही हैं कि सरकार का कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इनकार करते रहना चकराने वाली बात रही है क्योंकि यह स्थिति तो देश में बहुत पहले बन चुकी थी. विशेषज्ञों ने यहां तक कहा कि विज्ञान के मामले में पारदर्शिता को लेकर कट्टर बेईमानी चिंता का विषय रही है. आप साफ आंकड़ों से कैसे मुकर सकते हैं?
क्या है सरकारी तर्क?
इससे क्या फर्क पड़ता है? महाराष्ट्र के अधिकारी का जवाब यही एटिट्यूड दर्शाता है. उन्होंने कहा कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन घोषित कर देने से भी स्थानीय सरकारों, स्वास्थ्य प्रशासन, डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के साथ ही लोगों को भी क्या फर्क पड़ेगा. यह सिर्फ अकादमिक सवाल है और सब जानते हैं कि एक दिन में करीब 50 हज़ार केस आने लगें तो इसका क्या मतलब होता है.
आंध्र प्रदेश में एक दिन में 8000 से ज़्यादा केस आने के बाद शनिवार के आंकड़े 7800 केस के रहे. अब आंध्र प्रदेश में कुल केसों की संख्या 88671 हो गई है जो कर्नाटक से सिर्फ दो हज़ार केस पीछे है. कर्नाटक में, एक और दिन 5000 से ज़्यादा नए केस सामने आए.
भारत के पूर्व में भी हालात नाज़ुक
पश्चिम बंगाल में ताज़ा आंकड़े गुजरात में कुल केसों की संख्या से ज़्यादा हो गए हैं और अब बंगाल सातवां सबसे ज़्यादा संक्रमित राज्य बन गया है. वहीं, टॉप टेन लिस्ट में बिहार भी शामिल हो गया है. राजस्थान के आंकड़ों को मात देकर बिहार संक्रमणों के मामले में आगे निकला और शनिवार को राज्य में 2800 नए केस दर्ज हुए. एक तरफ देश में आंध्र और कर्नाटक में सबसे ज़्यादा संक्रमण फैल रहा है, तो दूसरी तरफ, बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा के हालात भी चिंताजनक बने हुए हैं.
क्या कहीं स्लोडाउन के आसार नहीं!
दिल्ली के अलावा और किसी राज्य में संक्रमण को लेकर स्लोडाउन के संकेत नहीं दिख रहे हैं. दिल्ली में भी बेहद धीमी गति से संक्रमण थमते दिखे हैं. रोज़ाना नए केसों की संख्या यानी ग्रोथ रेट में दिल्ली एक फीसदी की गिरावट दर्ज करने में कामयाब रहा है, जो देश में अब सबसे कम हो गई है. पिछले पूरे एक हफ्ते में दिल्ली में 8000 से कम केस दर्ज होना बड़ी राहत समझी जा रही है.
दक्षिण के राज्यों के आंकड़े
देश में पिछले चौबीस घंटे में आए नए केसों की संख्या लगातार तीसरे दिन 48,000 से ज़्यादा रही. लेकिन, यह आंकड़ा 50,000 से भी ज़्यादा हो सकता है क्योंकि इस संख्या में तेलंगाना ने अपने नंबर का खुलासा नहीं किया. जबकि तेलंगाना में पिछले कुछ दिनों का ट्रेंड कह रहा है कि रोज़ाना 1500 नए केस तक आ रहे हैं.