नई दिल्ली: अगर आपके घर में भी RO लगा है और आप RO के द्वारा फिल्टर किया गया पानी ही पीते हैं तो ये विश्लेषण आपके लिए ही है. क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी NGT ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को आखिरी अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि सरकार इस साल के अंत तक ऐसे RO पर प्रतिबंध लगा दे जिनमें पानी साफ करने की प्रकिया के दौरान 80 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है. इसके अलावा NGT ने उन जगहों पर भी RO पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है. जहां एक लीटर पानी में TDS यानी टोटल डिजॉल्व्ड सॉलिड्स (Total Dissolved Solids) की मात्रा 500 मिलिग्राम से कम है.
NGT ने ये आदेश कुछ महीनों पहले भी दिया था लेकिन पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से इसे लागू कराने में देर हो रही है और सरकार ने इसे लागू कराने और लोगों को जागरूक करने के लिए 4 महीनों की मोहलत मांगी है.
NGT का कहना है कि सिर्फ ऐसे RO की बिक्री को ही इजाजत मिलनी चाहिए जो पानी साफ करने की प्रक्रिया के दौरान सिर्फ 40 प्रतिशत पानी बर्बाद करते हैं. NGT का कहना है कि RO द्वारा बर्बाद किया गया पानी पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है. ग्राउंड वॉटर को भी प्रदूषित करता है.
लेकिन अगर इस साल के अंत तक ये नए नियम लागू हो गए तो इसका आप पर क्या असर होगा. ये आज हम आपको समझाएंगे.
आप पर क्या होगा असर
भारत में हर जगह पीने के पानी की गुणवत्ता एक जैसी नहीं हैं. इसलिए लोगों को ये पता नहीं चल पाता कि उनके यहां जो पानी आता है वो पीने के लायक है या नहीं. इसलिए लोग अक्सर अपने घर में RO लगवा लेते हैं. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि RO लगाने की जरूरत सिर्फ उन्हीं लोगों को है जिनके यहां आने वाले पानी में TDS की मात्रा 500 मिलिग्राम प्रति लीटर से ज्यादा है.
TDS पानी में घुल जाने वाले वो कण होते हैं जिन्हें RO की मदद से पानी से हटाया जाता है. लेकिन दिक्कत ये है कि पानी में आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले कणों के साथ-साथ वो मिनरल्स भी होते हैं जो आपके स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं और RO द्वारा पानी साफ किए जाने की प्रक्रिया के दौरान ये जरूरी मिनरल्स भी पानी से गायब हो जाते हैं. इनमें आयरन, कैल्शियम और पोटैशियम जैसे मिनरल्स शामिल हैं.
RO का अर्थ होता है रिवर्स ऑस्मोसिस (Reverse Osmosis). ये पानी को साफ करने की एक प्रकिया है और इसके तहत पानी को एक मेंब्रेन (Membrane) यानी एक प्रकार के फिल्टर से गुजारा जाता है. इस दौरान पानी में घुले कण पानी से अलग हो जाते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान पानी में घुले कणों पर दबाव डाला जाता है और दबाव बढ़ने पर पानी में घुले ये कण पानी से अलग होकर पीछे रह जाते हैं और RO के जरिए आपको साफ पानी मिलने लगता है.
पानी की बर्बादी करता है RO
लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक मात्रा में पानी बर्बाद हो जाता है. आम तौर पर एक RO प्यूरीफायर एक लीटर साफ पानी उपलब्ध कराने के दौरान 3 लीटर पानी बर्बाद कर देता है. यानी 75 प्रतिशत पानी बर्बाद हो जाता है और आपको पीने के लिए मिलता है सिर्फ 25 प्रतिशत पानी.
एक अनुमान के मुताबिक भारत में दूषित पानी को साफ करने वाले RO सिस्टम का बाजार फिलहाल 4 हजार 200 करोड़ रुपये का है. और वर्ष 2024 तक ये 7 गुना बढ़कर करीब 29 हजार करोड़ रुपये का हो जाएगा.
लेकिन विडंबना ये है कि सरकार RO के गैरजरूरी इस्तेमाल पर बैन तो लगाना चाहती है लेकिन भारत के ज्यादातर शहरों में पीने के पानी की गुणवत्ता सवालों के घेरे में है. पिछले साल उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 21 शहरों से पानी के सैंपल लिए थे और इनमें से 15 शहरों से लिए गए सैंपल जांच में फेल हो गए थे. इन शहरों में देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल थी.
RO का इस्तेमाल, भारत की मजबूरी!
NITI आयोग के मुताबिक भारत में उपलब्ध 70 प्रतिशत पानी दूषित है. पानी की गुणवत्ता के मामले में भारत दुनिया के 122 देशों में 120वें नंबर पर है.
RO का इस्तेमाल करना भारत के लोगों की मजबूरी है लेकिन इससे होने वाली पानी की बर्बादी के बारे में भी लोगों को सोचना होगा. उदाहरण के लिए अगर एक परिवार में पांच लोग रहते हैं और वो प्रतिदिन 20 लीटर पानी का इस्तेमाल खाना बनाने और पीने के लिए करते हैं तो ये 20 लीटर पानी 60 लीटर पानी को बर्बाद करके हासिल होता है. यानी महीने भर में करीब 1800 लीटर पानी बर्बाद हो जाता है.
सेंट्रल ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी के मुताबिक भारत में एक मध्यवर्गीय परिवार में प्रति व्यक्ति पानी की खपत करीब 135 लीटर है. लेकिन ये 135 लीटर पानी उन खुशनसीब भारतीयों को मिल पाता है जिनके घरों तक पानी पहुंचता है. क्योंकि NITI आयोग के मुताबिक भारत के 60 करोड़ लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं. और 2020 तक देश के 21 शहरों में ग्राउंड वॉटर पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. इनमें बैंगलुरू, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहर भी शामिल हैं.
क्या आप पर हो सकती है कार्रवाई?
लेकिन अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि अगर आपके घर में RO लगा है और आपके यहां पानी की जो सप्लाई होती है उसमें TDS की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है तो क्या सरकार आप पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है. इसका जवाब ये है कि फिलहाल इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है. इसलिए इससे जुड़े नियम क्या होंगे ये कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन अगर सरकार नए नियम लागू करती है तो हो सकता है कि उन इलाकों में लोगों को घरों में RO लगाने की इजाजत ना दी जाए जहां पीने के पानी की गुणवत्ता ठीक है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है तो हो सकता है कि उसका RO जब्त कर लिया जाए और उस पर कोई जुर्माना भी लगा दिया जाए. RO बनाने वाली कंपनियों के लिए भी ये नियम बहुत सख्त होंगे क्योंकि उन्हें ऐसे RO का ही निर्माण करने की इजाजत मिलेगी जो कम से कम पानी की बर्बादी करते हैं.
भारत पर दोहरी मुसीबत
भारत इस समय पानी के मामले में दोहरी मुसीबत का सामना कर रहा है. एक तरफ भारत में पानी का संकट है और बड़ी संख्या में लोगों के पास पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है तो दूसरी तरफ जो लोग RO का इस्तेमाल करके किसी तरह से पानी को साफ कर भी लेते हैं वो जाने अंजाने में पर्यावरण का नुकसान कर रहे हैं.
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक अगर भारत में पानी की बर्बादी नहीं रोकी गई तो इससे भारत की अर्थव्यस्था को भी बड़ा नुकसान होगा. भारत की विकास दर नेगेटिव में भी जा सकती है. यानी शून्य से भी नीचे. इतना ही नहीं, भारत में हर साल दो लाख लोग साफ पानी नहीं मिलने की वजह से मर जाते हैं और अगले 11 वर्षों में देश के 60 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने का पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा.
जिस तरह मछली बिना पानी के तड़पती है, ठीक उसी तरह भारत आने वाले वर्षों में बिना पानी के तड़पने पर मजबूर हो सकता है. हमें पानी के महत्व को समझना होगा और अपनी विशाल जनसंख्या, जो अगले 11 सालों में 160 करोड़ के पार पहुंच जाएगी. उसकी प्यास बुझाने का इंतजाम करना होगा और ये प्यास ना सिर्फ पानी से बुझानी होगी, बल्कि पानी की बर्बादी को भी रोकना होगा.
साफ पानी का पैमाना
अब आपको ये भी समझना होगा कि भारत में जिस पानी को साफ माना जाता है क्या वो पानी दुनिया के पैमानों पर खरा उतरता है? ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स के मुताबिक भारत में एक लीटर पानी में TDS की मात्रा अगर 500 मिलीग्राम या उससे कम है तो ये पीने लायक है. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO के मुताबिक एक लीटर पानी में TDS का स्तर 300 मिलीग्राम से कम होता है वो सबसे उत्तम पेय जल माना जाता है. 300 से 600 मिलीग्राम TDS वाले पानी को अच्छा और 600 से 900 मिलीग्राम TDS वाले पानी को ठीक ठाक माना जाता है. जबकि इससे ज्यादा TDS वाला पानी पीने के योग्य नहीं होता है.
कुछ नए और स्मार्ट RO सिस्टम आपको ये बताने में सक्षम होते हैं कि आपके पानी में TDS की मात्रा कितनी है. इसके अलावा आप TDS मीटर के जरिए भी इसका पता लगा सकते हैं.
भारत में 70 प्रतिशत पानी पीने लायक नहीं है और ये बात उपभोक्ता मंत्रालय के सर्वे से भी साफ हो गई है. जिन लोगों के पास पैसे हैं वो RO लगवा सकते हैं. लेकिन जिनके पास RO का विकल्प नहीं है. वो पानी उबालकर पी सकते हैं. लेकिन अमेरिका जैसे देशों में ना तो पानी उबालना पड़ता है और ना ही RO पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है. और तो और आप बाथरूम के नल से पानी लेकर इत्मिनान से पी सकते हैं.
जल है तो कल है
कहा जाता है कि जल ही जीवन है. लेकिन, जल सिर्फ जीवन नहीं, बल्कि भारत के लोगों का संस्कार भी है. हमारी संस्कृतियों का जन्म नदियों के किनारे हुआ. हमारे कई तीर्थ स्थल जलाशयों के किनारे हैं. कई उत्सव और मेले नदियों और समुद्र के किनारे आयोजित किए जाते हैं. हिंदू कैलेंडर में खास मौकों पर स्नान का बहुत महत्व होता है. हम जल से भगवान का अभिषेक करते हैं, पूजा से पहले जल से शुद्धि करते हैं, मृत्यु के बाद जल में अस्थियों का विसर्जन करते हैं और श्राद्ध में जल से तर्पण भी करते हैं. हमारे पुराणों में जल-समाधि का भी जिक्र है.
जब घर में कोई मेहमान आता है, तब हम पानी के लिए जरूर पूछते हैं. लेकिन अब जो हालात बन रहे हैं, उससे लग रहा है कि मेहमान खुद ही कहेंगे, पानी के अलावा कुछ भी दे दो, बस पानी मत देना. क्योंकि भारत में पानी की गुणवत्ता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता.
सरकार आखिर हमें दे क्या रही है?
अब आप सोचिए कि आप साफ हवा के लिए एयर प्यूरीफायर लगवा रहे हैं. साफ पानी के लिए RO सिस्टम की मदद ले रहे हैं. ट्रांसपोर्ट के लिए आप अपनी प्राइवेट कार या फिर टू व्हीलर का इस्तेमाल करते हैं. इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं. अपने बच्चे की शिक्षा भी प्राइवेट स्कूल में कराते हैं. अपनी सुरक्षा के लिए अपनी सोसाइटी या फिर दफ्तर में प्राइवेट गार्ड रख लेते हैं और जब बिजली चली जाती है तो जेनरेटर या इनवर्टर की मदद लेनी पड़ती है. यानी आपने अपनी हर एक मूलभूत सुविधा के लिए समानांतर व्यवस्था कर ली है. सरकारें आपको साफ हवा नहीं दे पा रही हैं, साफ पानी नहीं दे पा रही हैं. इलाज के लिए अस्पताल नहीं दे पा रहीं हैं. शिक्षा के लिए स्कूल नहीं दे पा रहीं हैं. सुरक्षा नहीं दे पा रहीं हैं. आपको बिजली भी नहीं मिलती और सरकार जो सड़कें आपको दे रही हैं वो भी इस्तेमाल के योग्य नहीं रह गई हैं. तो सवाल ये है कि हम सरकार से आखिर ले क्या रहे हैं. आज आपको इस पर विचार करना चाहिए.