नई दिल्ली: केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन ने संकेत दिया है कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और भारत बायोटेक द्वारा विकसित की जा रही कोरोना की वैक्सीन के 15 अगस्त तक आने की संभावना कम है. विजयराघवन शुक्रवार को कहा कि भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) की वैक्सीन विकसित करने वालों को कड़ी मूल्यांकन प्रक्रिया से गुजरना होगा, जिससे किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा.
विजयराघवन ने नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन’ में एक वेब सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि किसी भी वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के फर्स्ट फेज में 28 दिन लगते हैं और इसके बाद दो और फेज के परीक्षण होते हैं.
उन्होंने आगे कहा कि देश के औषधि नियामक ने भारत बायोटेक और जायडस कैडिला को वैक्सीन के परीक्षण को हरी झंडी दे दी है इसीलिए भारत बायोटेक के वैक्सीन या जायडस कैडिला के वैक्सीन को कड़ी मूल्यांकन प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ेगा जिससे किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा.
आईसीएमआर ने 15 अगस्त तक स्वदेशी कोविड-19 वैक्सीन को पेश करने का लक्ष्य रखते हुए चुनिंदा मेडिकल संस्थानों एवं अस्पतालों को पत्र लिखकर भारत बायोटेक के सहयोग से विकिसत ‘कोवैक्सीन’ टीके के लिए क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी में तेजी लाने को कहा था.
आईसीएमआर के पत्र पर सवाल पूछे जाने पर विजयराघवन ने कहा, ‘10 जुलाई को क्लिनिकल ट्रायल का फर्स्ट फेज शुरू हो गया है सभी 12 स्थानों पर एक ही समय पर ट्रायल शुरू होने की संभावना कम है.
उन्होंने कहा, ‘मान लीजिए कि ट्रायल एक ही समय पर शुरू होता है तो फर्स्ट फेज में एक इंजेक्शन लगेगा फिर सात दिन बाद एक और इंजेक्शन लगेगा और तब 14 दिन के बाद जांच की जाएगी और फिर निर्णय लेने से पहले नतीजों पर गौर किया जाएगा जिसमें 28 दिन तक लग जाएंगे.’
विजयराघवन ने कहा कि परीक्षण के फर्स्ट फेज के बाद दो और फेज होंगे इसीलिए किसी वैक्सीन के लिए समय सीमा अगर हम वैश्विक स्तर पर देखें तो फर्स्ट फेज के बाद थर्ड फेज के परीक्षण तक कई महीने लगेंगे.
विशेषज्ञों ने कोरोना की वैक्सीन विकसित करने की प्रक्रिया में हड़बड़ी करने के प्रति आगाह किया है और इस बात पर जोर दिया है कि कोरोना की वैक्सीन विकसित करने में जल्दबाजी करना वैश्विक रूप से स्वीकार्य नियमों के अनुरूप नहीं है.