गलवान से चीनी सेना पीछे हट गई. दरअसल, चीन पीछे हटा नहीं है बल्कि उसको पीछे धकेला गया है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि एक करिश्माई नेतृत्व में एकजुट राष्ट्र की दमदार ताकत की झलक दुनिया को दिखने लगी है।
विस्तारवादी इरादे रखने वाले चीन को वश में करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन इस बात से यह भी साबित हो गया है कि सटीक रणनीति और एक्शन से मनमुताबिक नतीजे मिल सकते हैं.
दरअसल, अतीत को देखते हुए चीनी ये समझ रहे थे कि भारत का रुख इस बार भी ‘नरम’ रहेगा, लेकिन कुछ ही दिनों में उन्हें पता चल गया कि उनका सामना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत से है. पीएम मोदी ने साफ शब्दों में जाहिर कर दिया कि यह एक ऐसा भारत है, जो अपने मित्रों को गले लगाता है और विरोधियों से आंख में आंख मिलाकर बात करता है.
मिलिट्री, इकोनॉमी से लेकर ठोस रणनीतिक कदम उठाकर प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को पीछे धकेल दिया है. चीन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नजरिया पहले दिन से ही स्पष्ट था कि भारत की संप्रभुता के मुद्दे पर कोई बातचीत नहीं होगी.
इस कूटनीति में विदेश मंत्रालय (MEA) से लेकर एनएसए (NSA) तक पूरी मशीनरी ने अपनी भूमिका निभाई. भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए भारतीय दूतावासों और प्रवासी भारतीयों के नेटवर्क को सक्रिय किया गया. इसका नतीजा ये हुआ कि अमेरिकी कांग्रेस के कई नेताओं और सीनेटर्स जैसे रिक स्कॉट, मार्को रुबियो, टॉम कॉटन, एलियट एंजेल, अमी बेरा ने चीन की हरकत के खिलाफ मुखर आवाज उठाई.
किस तरह भारत ने गलवान विजय के बाद चीन को घुटनों पर ला दिया, ये स्ट्रैटजी निम्न बिंदुओं के जरिए समझी जा सकता है.
किस रणनीति के तहत चीन को समझ आई भारत की ताकत
पीएम मोदी की लेह यात्रा ने ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम किया. इस दौरे से दुनिया को यह संदेश गया कि भारत अपने रणनीतिक हितों के लिए किसी भी चुनौती से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण ने सेना के जवानों का हौसला बढ़ाया. वहां उन्होंने साफ संदेश दिया कि विस्तारवादी शक्तियों का युग अब बीत चुका है.
इससे पहले भी लोगों ने देखा कि डोकलाम मुद्दे पर पीएम मोदी ने किस तरह से धैर्य और ताकत दिखाई. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘वन बेल्ट, वन रोड पहल’ पर वार्ता के मामले पर भी अपना नजरिया मजबूती से रखा. उस दौरान जब अन्य राष्ट्र वार्ता के लिए उच्च स्तरीय प्रतिनिधि भेज रहे थे, तब भारत ने किसी भी प्रतिनिधि को भेजना तक उचित नहीं समझा.
अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने का फार्मूला
पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान के ऐलान से चीन को आर्थिक रूप से तगड़ा झटका लगा. उन्होंने बताया कि भारत के पास न केवल आत्मनिर्भर होने, बल्कि वैश्विक मांगों को पूरा करने की ताकत और कौशल भी है. इसका नतीजा ये हुआ कि चीन इस वक्त गंभीर आर्थिक दबाव में है. बड़ी चीनी कंपनियां अब चीनी सरकार से भारत को लेकर एक व्यावहारिक समाधान खोजने की अपील कर रही हैं, ताकि चीनी कंपनियों के आर्थिक हितों को आघात न पहुंचे.
चीनी कंपनियों को दिखाई भारत की ताकत
भारत में 59 चीनी ऐप्स के बैन से चीन को करारा झटका लगा है. इस फैसले से इन ऐप्स और चीनी कंपनियों को करीब 50 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा. हालांकि, यह आंकड़ा और भी बड़ा हो सकता है. चीनी टेक कंपनियों के लिए अब भारतीय बाजार में अपने लिए स्थान बनाना आसान नहीं होगा.
इसका असर ये हुआ कि अमेरिका में ट्रंप सरकार के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने ऐसे बयान दिए, जो चीनी कंपनी Huawei के हित में नहीं हैं.
इसके साथ ही न्यू इंडिया ने दिखा दिया कि यह दुश्मन को ऐसी जगह चोट पहुंचा सकता है, जहां सबसे ज्यादा नुकसान होता है. चाहे मैप हो या ऐप, भारत हर किसी को पीछे धकेल देगा, जो उसके उदार रवैये का फायदा उठाने की कोशिश करेगा.