देश में इन दिनों एक नई चर्चा छिड़ी हुई है और वह है रोटी और परांठे की कैटेगरी और इस पर टैक्स क्लासिफिकेशन को लेकर. शुक्रवार को कर्नाटक बेंच ऑफ अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (AAR) ने फैसला दिया है कि रेडी टू ईट परांठा; खाखरा, चपाती या रोटी से अलग है. ऐसे में टैक्स एक्सपर्ट का कहना है कि इस फैसले से ऐसे कई अन्य वर्गीकरण विवाद खड़े होंगे.
वैसे इस तरह की बहस नई नहीं है. इससे पहले भी कुछ और प्रॉडक्ट्स की कैटेगरी को लेकर कन्फ्यूजन हो चुका है जैसे- नेस्ले की किटकैट बिस्किट है या चॉकलेट, डाबर लाल दंत मंजन टूथ पाउडर है या मेडिसिनल ड्रग, मैरिको का पैराशूट हेयर ऑयल है या केवल कोकोनट ऑयल आदि.
नवंबर 2019 में मध्य प्रदेश की अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (AAR) ने अलीशा फूड्स की एक पिटीशन पर प्रतिक्रिया दी थी. यह पिटीशन इस बात पर थी कि Fryums को पापड़ माना जाना चाहिए जो 5 फीसदी टैक्स के दायरे में आते हैं या फिर इसे ऐसे फूड आइटम्स में डालना चाहिए जो कहीं और उल्लिखित नहीं है. इस पर अथॉरिटी ने फैसला दिया था कि ये दूसरी कैटेगरी में आएंगे.
रेवेन्यु अथॉरिटी से टैक्स डिमांड भी एक चिंता
जीएसटी में टैक्स की कई रेट होने से इस तरह के विवाद जारी रहने वाले हैं. विभिन्न प्रॉडक्ट्स की कैटेगरी तय करने की प्रक्रिया अभी भी जारी है. मैन्युफैक्चरर्स की ओर से प्रॉडक्ट की कैटेगरी को लेकर डाली जा रहीं इस तरह की पिटीशंस के पीछे एक चिंता यह भी है कि अगर कैटेगरी स्पष्ट नहीं हुई तो आगे चलकर टैक्स को लेकर दिक्कत खड़ी हो सकती है. हो सकता है कि प्रॉडक्ट ज्यादा टैक्स वाली कैटेगरी में समझकर टैक्स अथॉरिटीज बकाया टैक्स की डिमांड कर सकती हैं, जिसमें पेनल्टी, ब्याज आदि शामिल रह सकता है. इसलिए पहले ही वर्गीकरण हो जाना जरूरी है.
पहले भी हुए हैं ऐसे केस
कई एमसीजी कंपनियां प्रॉडक्ट कैटेगराइजेशन को लेकर रेवेन्यु अथॉरिटीज के साथ विवाद में पड़ चुकी हैं. उदाहरण के तौर पर किटकैट का केस. 1999 में नेस्ले इंडिया लिमिटेड वर्सेज कमिश्नर आॅफ सेंट्रल एक्साइज, मुंबई विवाद में फैसला नेस्ले के पक्ष में गया था कि किटकैट बिस्किट है, न कि चॉकलेट. लिहाजा मैन्युफैक्चरर पर टैक्स का बोझ कम रहेगा.
इसी तरह पैराशूट कोकोनट तेल बनाने वाली मैरिको का भी राज्य सरकारों के साथ विवाद रह चुका है कि पैराशूट हेयर ऑयल है या कोकोनट ऑयल. कंपनी ने कोशिश की थी कि प्रॉडक्ट को कोकोनट ऑयल कैटेगरी में रखा जाए ताकि टैक्स कम रहे. लेकिन जीएसटी लागू होने के वक्त केरल सरकार ने जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस बात के लिए मजबूत पक्ष रखा कि कोकोनट ऑयल को खाने का तेल माना जाता है.
टैक्स रेट क्यों कम रखना चाहती हैं कंपनियां
टैक्स एक्सपर्ट का कहना है कि प्रॉडक्ट्स पर टैक्स रेट जितना कम होगा, कंपनियों के लिए उच्च मार्जिन रखने की संभावना उतनी ही ज्यादा रहेगी, विशेषकर एफएमसीजी प्रॉडक्ट्स के मामले में. EY में टैक्स पार्टनर अभिषेक जैन कहते हैं कि जीएसटी में टैक्स स्लैब्स की विस्तृत रेंज और कानून में अस्पष्टता की वजह से प्रॉडक्ट की कैटेगरी से जुड़े विवादों की गुंजाइश बन गई है. रेवेन्यु अथॉरिटीज टैक्स को लेकर विवाद न खड़ा कर दें, इसलिए कंपनियां पहले से कैटेगरी को लेकर स्पष्टता चाहती हैं. अगर जीएसटी में रेट स्लैब्स में कमी आती है तो प्रॉडक्ट कैटेगरी को लेकर ऐसे विवादों को कम करने में मदद हो सकती है.