Lockdown में ढील देने में अगर जल्दबाज़ी की गई और पूरी रणनीति के साथ Unlock नहीं किया गया तो एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इसका बड़ा खामियाज़ा भारत (India) को भुगतना होगा. जानिए कि कैसे लॉकडाउन के समय हुईं चूकों का नुकसान हुआ और कैसे अब वही कहानी दोहराए जाने की आशंकाएं बन रही हैं.
भारत में बुधवार शाम तक 2 लाख 8 हज़ार से ज़्यादा Covid-19 के कुल केस और इस संक्रमण से 5 हज़ार 800 से ज़्यादा मौतों की पुष्टि हो चुकी है. देश के कई इलाकों में रेस्तरां, होटल, शॉपिंग सेंटर और धार्मिक स्थल फिर खोल जाने के कदम उठाए जा रहे हैं. जुलाई में स्कूल और कॉलेज खुलेंगे. क्या अनलॉक (Unlock-1) में जल्दबाज़ी है? क्या जल्दबाज़ी करना ठीक होगा? विशेषज्ञों ने हाल में माना कि लॉकडाउन की कीमत चुकाई गई है, अब जानिए कि विशेषज्ञ इस जल्दबाज़ी पर क्या मान रहे हैं.
हालांकि कहा गया है कि जहां अनलॉक किया जा रहा है, वहां सामाजिक दूरी बना कर रखनी होगी. कोरोना से मौतों की संख्या भारत में अभी तक तुलनात्मक रूप से कम रही है, लेकिन विशेषज्ञों ने चेताया है कि देश में महामारी का उच्चतम स्तर अभी आया नहीं है.
लॉकडाउन से फायदा हुआ तो ढील क्यों?
विशेषज्ञों के हवाले से डीडब्ल्यू की रिपोर्ट कहती है कि लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद भारत सरकार के लिए संक्रमण को फैलने से रोकना बड़ी चुनौती बन जाएगा. दूसरी तरफ, चिकित्सा विशेषज्ञों की मानें तो शुरू में ही लॉकडाउन नहीं किया गया होता तो 37 हजार से 78 हजार के बीच मौतें और कुल संक्रमण मामले 14 लाख हो सकते थे.
एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के हवाले से कहा गया कि ‘भारत में कोविड 19 की मृत्यु दर 2.8 प्रतिशत है जो वैश्विक दर 6 प्रतिशत से बहुत कम है. इसका बड़ा कारण देश में बहुत जल्दी लॉकडाउन लगाना ही रहा.’ अब लॉकडाउन में ढील दिए जाने के कदम उठाए जाने के लिए क्या यह सही वक्त है? विशेषज्ञों की राय में जानें कि कैसे लॉकडाउन के समय इसी तरह की भूलों से बड़ा नुकसान हुआ था.
भारत ने कैसे चुकाई लॉकडाउन की भारी कीमत?
चिकित्सा से जुड़े तमाम विशेषज्ञों ने बीते 25 मई को प्रधानमंत्री को कड़ी प्रतिक्रिया सौंपी थी, जिसमें साफ कहा गया कि भारत सरकार महामारी विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करने में नाकाम रही. खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार ने लॉकडाउन पॉपुलर संस्थाओं के मॉडल के हिसाब से लगाया. नतीजा यह हुआ कि संक्रमण फैलने और मानवीय संकटों के रूप में देश इस कठोर लॉकडाउन की भारी कीमत चुका रहा है.
विशेषज्ञों ने यह भी कहा था कि लॉकडाउन लगाए जाने के वक्त यानी 25 मार्च तक कुल संक्रमण केस 606 थे और 24 मई तक यानी दो महीनों में कुल केसों की संख्या 1 लाख 38 हज़ार से ज़्यादा थी. जबकि, लॉकडाउन ठीक से लगाया गया होता तो संक्रमण की रफ्तार कम होना चाहिए थी. इस तरह की कड़ी प्रतिक्रिया देने वालों में एम्स, जेएनयू, बीएचयू, स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़े जैसे 16 विशेषज्ञ शामिल थे.
सरकार हालांकि बार बार कहती रही कि भारत में कम्युनिटी संक्रमण की स्थिति नहीं बनी है लेकिन विशेषज्ञों ने माना कि यह दावा गलत था. महामारी विशेषज्ञों की एसोसिएशन समेत इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन और प्रिवेंटिव व सोशल मेडिसिन की भारतीय एसोसिएशन के विशेषज्ञों के हवाले से न्यूज़18 की खबर में बताया गया था ‘जबकि कम्युनिटी संक्रमण फैलने के फैक्ट्स हैं, ऐसे में मानना कि कोविड 19 महामारी को खत्म किया जा सकता है, यह नज़रिया अवैज्ञानिक है.’ अब जानें कि लॉकडाउन में ढील की जल्दबाज़ी के क्या नतीजे हो सकते हैं.
जर्मनी ने भुगता ढील का खामियाज़ा
जर्मनी में कुछ जगहों पर पाबंदियों में ढील का परिणाम संक्रमण के नए मामलों के रूप में सामने आ रहा है. खबरें हैं कि गोएटिंगन शहर में वीकेंड कार्यक्रमों में शामिल लोगों में से 68 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए. शहर प्रशासन अब कॉंटैक्ट ट्रैसिंग कर रहा है और ऐसे 203 लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है या उनके टेस्ट. अधिकारी और ज्यादा टेस्ट करने के कदम भी उठा रहे हैं.
भारत के सामने अनलॉक की चुनौतियां क्या हैं?
भारत के पांच राज्य महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात और मध्य प्रदेश बुरी तरह से महामारी की चपेट में हैं. मुंबई और अहमदाबाद तो सबसे ज़्यादा प्रभावित शहरों में शुमार हैं. वहीं, देश की सर्वोच्च चिकित्सा संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) कह रही है कि अब टेस्टों की संख्या बढ़ाई जाएगी. दूसरी तरफ, शहरों से लौट रहे प्रवासी मजदूरों के कारण भीतरी इलाकों में संक्रमण बढ़ रहा है. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं ठीक नहीं हैं.
भारत के सामने लॉकडाउन में ढील दिए जाने को लेकर कई सावधानियां बरतनी होंगी. साथ ही, विशेषज्ञों की राय के मुताबिक जर्मनी जैसा हाल न हो, इसके लिए भारत को अपनी चुनौतियों से पूरी रणनीति के साथ निपटना होगा.
सबसे खतरनाक रहा लॉकडाउन 4.0
हिंदुस्तान प्रकाशन ने देश भर में संक्रमण का डेटा जुटाकर जो विश्लेषण तैयार किया, उसके हिसाब से कहा कि चौथे लॉकडाउन के दौरान देश में हर घंटे में संक्रमण के 247 नए केस सामने आए. लॉकडाउन 3.0 से 4.0 के बीच के समय में करीब साढ़े 86 हज़ार लोग संक्रमित हुए.