पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश की तुलना में भारत में चीन का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नगण्य (6.2 अरब डॉलर) है. लेकिन स्टार्टअप निवेश के जरिए चीन ने देश के डिजिटल भविष्य को घेर लिया है.
दरसअल, स्टार्टअप शुरुआत में नुकसान उठाते हैं. यहां ऐसे निवेश की पूंजी नहीं है. तभी अलीबाबा, टेनसेंट, बाइटडांस ने मोर्चा मार लिया है. अधिकतर चीनी कंपनियां, फिनटेक, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया, जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं जहां उपभोक्ताओं के डेटा का अंबार है.
चीन की पूंजी निकलते ही स्टार्टअप क्रांति बैठ जाएगी. आत्मनिर्भर भविष्य के लिए स्टार्टअप पूंजी के स्रोत तैयार करने होंगे जो नुकसान के बावजूद आती रहे. ऐसी उत्पादन क्षमताएं बनानी होंगी जो चीन से सस्ता उत्पादन कर सकें.
चीन की दो दर्जन तकनीकी कंपनियां भारत के 92 बड़े स्टार्टअप में पूंजी डाल चुकी हैं. गूगल प्ले और आइओएस पर सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाले ऐप्लिकेशन में 50 फीसद चीन की कंपनियों के हैं. चीनी कंपनी शाओमी भारतीय बाजार की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी है.
बाइटडांस का टिकटॉक 20 करोड़ सब्सक्राइबर के साथ भारत में यूट्यूब को पीछे छोड़ चुका है. बाइटडांस का वीगो वीडियो और अलीबाबा का शेयरइट इसी फेहरिस्त का हिस्सा हैं.
अलीबाबा का यूसी ब्राउजर भारत के मोबाइल ब्राउजर बाजार में करीब 20 फीसद हिस्सा रखता है. टेनसेंट ने वीडियो नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म मैक्स प्लेयर में पैसा लगाया है.
चीन की कंपनियों का अगला लक्ष्य (अब तक 57.5 करोड़ डॉलर का निवेश) इलेक्ट्रिक वाहन हैं. चीन की बीवाइडी इलेक्ट्रिक बस लाने जा रही है. वोल्वो और एमजी हेक्टर के जरिए चीन भारत के ऑटोमोबाइल बाजार में दखल बढ़ाएगा. ऐसे में डिजिटल इंडिया पर चीन का नियंत्रण भारत को पेचीदा मुकाम पर ले आया है. (यह कंटेंट इंडिया टुडे के संपादक अंशुमान तिवारी की एक रिपोर्ट से ली है)