देश के खिलाफ एजेंडा चलाने का हथियार बनने वाली ऐसी ही कुछ तस्वीरों पर कश्मीर के तीन फोटो जर्नलिस्ट्स को पुलित्जर पुरस्कार मिला है. पुलित्जर पुरस्कार दुनिया में पत्रकारिता का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है. लेकिन जिन तस्वीरों के लिए ये सबसे बड़ा पुरस्कार मिला है उन तस्वीरों के जरिए ये दिखाने की कोशिश की गई है कि कश्मीर में भारतीय सेना और सुरक्षाबल ज्यादती कर रहे हैं. इसमें एक तस्वीर में पत्थरबाजों को हीरो की तरह पेश किया गया है. एक तस्वीर में पाकिस्तान का झंडा लिए लोग दिख रहे हैं. एक तस्वीर में सुरक्षाबलों को तोड़फोड़ करते दिखाया गया है.
एक तस्वीर में सुरक्षा जांच करते हुए सुरक्षाकर्मियों को ऐसे दिखाया गया है जैसे जांच करके वो कोई अपराध कर रहा है. इन्हीं तस्वीरों में छह वर्ष की एक कश्मीरी बच्ची को भी दिखाया गया जिसके बारे में लिखा गया कि भारतीय सुरक्षाबलों के जवानों द्वारा इस्तेमाल किए गए पैलेट गन से इस बच्ची की दाईं आंख चोटिल हो गई.
एक तस्वीर में कश्मीर में उस प्रदर्शन को दिखाया गया जिसमें अलग कश्मीर के सपने का पोस्टर लोग लहरा रहे हैं.
जम्मू कश्मीर के फोटो जर्नलिस्ट चन्नी आनंद, मुख्तार खान और यासीन डार की इन तस्वीरों के जरिए यही कहानी बताई गई है और यही संदेश दिया गया है कि भारत के सुरक्षाबल कश्मीर में गलत कर रहे हैं. भारत विरोधी ऐसा एजेंडा दुनिया को बहुत पसंद आता है और इसलिए हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इन तस्वीरों पर पुलित्जर पुरस्कार भी मिल गया है.
आपको शायद पता नहीं होगा कि पुलित्जर पुरस्कार देने के लिए 19 सदस्यों का एक बोर्ड होता है. जिसमें बड़े-बड़े संपादक और लेखक शामिल होते हैं. आपको ये भी पता होना चाहिए कि कश्मीर पर भारत को नीचा दिखाने के लिए ऐसे बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों और बड़े-बड़े पत्रकारों का संगठित गिरोह काम करता रहा है. जिनकी पहुंच ऐसे बड़े-बड़े अवॉर्ड तक आसानी से होती है.
2019 में खींची गई इन तस्वीरों को फीचर फोटोग्राफी के लिए इस वर्ष का पुलित्जर पुरस्कार दिया गया है. अवॉर्ड देते हुए इन तस्वीरों के बारे में जो लिखा गया है वो भी हम आपको बता देते हैं. इसमें कहा गया है कि ये उस कश्मीर के विवादित इलाके के जीवन को दिखाने वाली अद्भुत तस्वीरें हैं, जिस कश्मीर में सब बंद करके भारत ने उसकी आजादी छीन ली है. यानी ये जिक्र अनुच्छेद 370 को लेकर किया गया. जिसे हटाने का ऐतिहासिक फैसला पिछले वर्ष अगस्त में भारत ने किया था.
इसी के बाद कश्मीर पर भारत के खिलाफ एजेंडा चलाने वाले बहुत सक्रिय रहे हैं. फिर चाहे वो देश के अंदर बैठे लोग हों या पाकिस्तान के हिमायती हों या फिर दुनिया भर में भारत विरोधी विचारों का प्रचार प्रसार करने वाले लोग हों. कश्मीर में भारत विरोधी तस्वीरों को पुलित्जर पुरस्कार देना इसी का एक पार्ट दिख रहा है.
आप अक्सर ये भी देखते होंगे कि जब कश्मीर में हमारे जवान शहीद होते हैं तो दिल्ली में बैठे कई पत्रकार हमारे जवानों को शहीद नहीं लिखते वो किल्ड (Killed) शब्द का प्रयोग करते हैं. ये इन पत्रकारों की मानसिकता को बताता है.
आज जिन लोगों को हंदवाड़ा में शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि देने का वक्त नहीं मिला उन लोगों ने कश्मीर के उन तीन फोटो जर्नलिस्ट्स को बधाई देने में वक्त नहीं लगाया जिनकी खींची गई तस्वीरों को अवॉर्ड मिला है. इन लोगों में एक नाम राहुल गांधी का भी है.
राहुल गांधी ने इन पत्रकारों को बधाई देने वाला ट्वीट किया था. वो भी बिना ये जाने कि ये तस्वीरें भारत विरोधी दुष्प्रचार का हथियार हैं. वैसे कांग्रेस और राहुल गांधी ऐसे सेल्फ गोल करने के लिए पहले से ही जाने जाते हैं. आपको याद होगा कि जब जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाया गया था तब कांग्रेस और राहुल गांधी देश विरोधी दुष्प्रचार का हिस्सा बन गए थे.
वो लगातार ऐसी बातें कर रहे थे जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान कर रहा था. पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कांग्रेस और राहुल गांधी की बातों का हवाला दिया था और ये कहा था कि कश्मीर में बेबस लोगों को भारत ने कैद कर दिया है.
पाकिस्तान ने जब इस मुद्दे पर UN को एक पत्र लिखा था और भारत पर कश्मीर में मानव अधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाए थे तब उस पत्र में भी पाकिस्तान ने राहुल गांधी के बयानों का हवाला देते हुए कहा था कि भारत में राहुल गांधी जैसे नेता भी मान रहे हैं कि कश्मीर में लोग मारे जा रहे हैं.
सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसी वीरता पर भी कांग्रेस के नेता सबूत मांगते रहे हैं और सेना के शौर्य पर सवाल उठाकर राजनीति करते रहे हैं. कांग्रेस और राहुल गांधी की बातों से पाकिस्तान को हमेशा मौका मिल जाता है. आपको ये भी याद होगा कि कांग्रेस पार्टी के नेता इस देश के सेना प्रमुख को गुंडा तक कह चुके हैं.
आजादी के नारे लगाने वालों और टुकड़े-टुकड़े गैंग पर भी राहुल गांधी का प्यार और दुलार दिखता रहा है. 2016 में जेएनयू में जब आतंकी अफजल गुरू की बरसी मनाने का विवाद हुआ था तब भी राहुल गांधी टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने जेएनयू पहुंच गए थे. ये बार-बार देश ने देखा है कि जब भी कोई देश विरोधी बातें करता है कांग्रेस और राहुल गांधी केंद्र सरकार के विरोध में उन देश विरोधी लोगों की वकालत करने लगते हैं.
पिछले कई दशकों में भारत में बड़े-बड़े बुद्धिजीवी और पत्रकार एक तरह के अवॉर्ड गैंग का हिस्सा बन चुके हैं. जो उनकी हां में हां मिलाता है, जो उनकी विचारधारा पर चलता है, उनके लिए अवॉर्ड रिजर्व कर दिए जाते हैं. इन लोगों ने ऐसी परंपरा बना दी है जिसमें भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों को खोज-खोज कर निकाला जाता है और उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. इसी की वजह से देश विरोधी दुष्प्रचार करने वालों को हिम्मत मिलती है और ये लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसी दुष्प्रचार में जुट जाते हैं.
पुलित्जर पुरस्कार जोसेफ पुलित्जर के नाम पर दिए जाते हैं, जो अमेरिका में बहुत प्रतिष्ठित खोजी पत्रकार और कई अखबारों के प्रकाशक थे. वर्ष 1912 में जोसेफ पुलित्जर का निधन हो गया था. इसके पांच साल बाद उनकी याद में और उनकी वसीयत के मुताबिक कोलंबिया स्कूल ऑफ जर्नलिज्म द्वारा जोसेफ पुलित्जर देना शुरू हुआ था. पहले ये अवॉर्ड पत्रकारिता के क्षेत्र में दिए जाते थे लेकिन अब इतिहास, साहित्य, नाटक और संगीत सहित 21 श्रेणियों में ये पुरस्कार दिए जाते हैं. इसमें विजेता को एक सर्टिफिकेट और 15 हजार डॉलर यानी करीब साढ़े 11 लाख रुपये नकद दिए जाते हैं.