कोरोना के इस संकटकाल में हम सबने देखा है कि जिस देश में लोग डॉक्टरों को भगवान मानते हैं, उसी देश में कुछ लोग डॉक्टरों पर हमला कर रहे हैं, उन पर पत्थर फेंक रहे हैं, उन्हें अपशब्द कह रहे हैं, उन पर थूकते रहे हैं. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा, कि जिन्हें हम भगवान मानते हैं, उन्हें सुरक्षा देने के लिए एक सख्त कानून बनाना पड़ा है. आज केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है, जिसमें कोरोना वायरस से युद्ध लड़ रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों को कानूनी सुरक्षा कवच दिया गया है. सरकार ने 123 वर्ष पुराने 1897 के epidemic act में संशोधन किया है और अध्यादेश के जरिये इसमें सख्त सजा का प्रावधान किया है. अब अगर किसी ने डॉक्टर, नर्स मेडिकल या पैरा-मेडिकल स्टाफ या फिर स्वास्थ्य टीम से जुड़े किसी भी कर्मचारी पर हमला किया तो फिर उस व्यक्ति की खैर नहीं.
स्वास्थ्य कर्मचारियों पर हमला करने वालों का अपराध संज्ञेय होगा और गैर ज़मानती होगा.
यानी बिना वारंट के आरोपियों की गिरफ्तारी होगी और इन्हें ज़मानत भी नहीं मिल पाएगी.
मामला दर्ज होने के 30 दिन में ही जांच पूरी करनी होगी, और एक साल में फैसला आ जाएगा.
कम गंभीर मामले में दोषी सिद्ध होने पर 3 महीने से 5 साल तक की सज़ा हो सकती है और 50 हज़ार से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना भरना होगा.
ज़्यादा गंभीर मामले में दोषी सिद्ध होने पर 6 महीने से 7 साल तक की सज़ा हो सकती है और 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भरना होगा.
एक विशेष प्रावधान ये भी किया गया है कि अगर स्वास्थ्य कर्मचारियों की गाड़ी या फिर डॉक्टर के क्लीनिक का नुकसान किया, तो फिर उस गाड़ी या क्लीनिक की मार्केट वैल्यू से दोगुनी रकम हमलावरों से वसूली जाएगी.
सरकार को ये अध्यादेश इसलिए लाना पड़ा क्योंकि देशभर में कोरोना फाइटर्स पर हो रहे हमले रुक नहीं रहे हैं. खासतौर पर स्वास्थ्य कर्मचारियों को निशाना बनाया जा रहा है. हमने इंदौर और मुरादाबाद के हमले की तस्वीरें आपको दिखाई थीं, जहां एक खास सोच वाले लोगों ने डॉक्टर, नर्स और दूसरे मेडिकल स्टाफ पर हमला किया था. ये मेडिकल टीम कोरोना के हॉटस्पॉट में जांच करने और संक्रमण के संदिग्ध व्यक्तियों को क्वारंटीन में ले जाने के लिए गई थी, लेकिन इन कोरोना फाइटर्स के लिए खुद अपनी जान को बचाना मुश्किल हो गया.
लेकिन क्या इंदौर और क्या मुरादाबाद . कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के कोने कोने से इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं. जहां पर कोरोना की जांच के लिए गई मेडिकल टीमों पर हमले किए जा चुके हैं. जिन लोगों को अस्पताल में या फिर दूसरी जगह पर क्वारंटीन में रखा गया है, वो लोग मेडिकल स्टॉफ के साथ दुर्व्यहार कर रहे हैं. इसकी शुरुआत तो दिल्ली से ही हो गई थी, जहां तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने डॉक्टर और नर्स पर थूकना शुरू कर दिया था. दो दिन पहले दिल्ली में फिर एक तबलीगी जमात के व्यक्ति ने महिला स्वास्थ्यकर्मी से बदसलूकी की थी और महिला स्वास्थ्यकर्मी की PPE किट फाड़ने की कोशिश की थी. दिल्ली में ही एक विदेशी नागरिक ने स्वास्थ्य कर्मचारी पर कैंची से हमला कर दिया था.इन घटनाओं की वजह से देशभर के डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ बहुत गुस्से में थे.
Indian Medical Association ने इसके विरोध में एक दिन की सांकेतिक हड़ताल का ऐलान भी किया था, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बातचीत के बाद सांकेतिक विरोध प्रदर्शन के फैसले को वापस ले लिया. गृह मंत्री ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए डॉक्टर्स और कई मेडिकल संगठनों से बातचीत भी है और कहा है कि Doctors की सुरक्षा और सम्मान से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. इस मीटिंग केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन भी शामिल थे . इस मीटिंग के बाद दोपहर में सरकार ने अध्यादेश लाने का ऐलान कर दिया.
हमारे देश में एक विशेष विचारधारा के लोग हमेशा सेना का विरोध करते हैं..चाहे वो सरहद पर लड़ने वाली सेना हो या फिर कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध लड़ने वाली डॉक्टरों की सेना. ये वही लोग हैं जो कश्मीर में सेना का विरोध करते हैं, सेना पर पत्थर फेंकते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक का विरोध करते हैं और आतंकवादियों और सेना के बीच दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं. अब इसी विचारधारा के लोग कोरोना वायरस से लड़ने वाली डॉक्टरों की सेना के साथ भी ऐसा ही कर रहे हैं . जिस तरह कश्मीर में सेना के खिलाफ पत्थरबाजी की जाती है, ठीक उसी तरह डॉक्टरों के खिलाफ भी ये लोग पत्थरबाजी करते हैं. यानी ये इस जहरीली विचारधारा का पत्थर वाला मॉडल है जिसे ये लोग कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लागू करना चाहते हैं .
हमारे देश में डॉक्टरों पर पत्थर फेंका जा रहा है, उनके साथ अभद्रता की जा रही है लेकिन अब ज़रा अमेरिका की ये तस्वीर देखिए. कोरोना संकट में बहादुरी दिखाने वाली एक डॉक्टर का आभार जताने के लिए सैकड़ों कारों का काफिला उनके सामने से गुज़र रहा है और आपको ये जानकर खुशी होगी कि अमेरिका की ये डॉक्टर भारतीय मूल की हैं . डॉ. उमा मधुसूदन का ताल्लुक कर्नाटक के मैसूर से है और उन्होंने मैसूर से ही मेडिकल की पढ़ाई भी की है . अमेरिका के South Windsor Hospital में उन्होंने कोरोना वायरस से संक्रमित कई मरीज़ों की जान बचाई है . इस काफिले में ऐसे कई लोग हैं, जिनका इलाज डॉ. उमा ने ही किया . आज इस वीडियो को देखकर हर उस भारतीय का माथा गौरव से ऊंचा हो जाएगा, जो डॉक्टर को भगवान मानता है और जो अपने देश को प्यार करता है .
डॉक्टर उमा मधुसूदन अपने घर के बाहर खड़ी हैं और सामने से, उन्हें शुक्रिया बोलने वालों की रैली निकल रही है. सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखते हुए हर गाड़ी कुछ सेकेंड के लिए रुकती है, या फिर बहुत धीमी हो जाती है, डॉक्टर को शुक्रिया बोलती है और आगे बढ़ जाती है . सोचिए, एक डॉक्टर के लिए ये कितना बड़ा सम्मान है. डॉ. उमा मधुसूदन जैसे डॉक्टर भारत समेत पूरी दुनिया में अपने परिवार से दूर रहकर, अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे हैं . ऐसी त्याग और सेवा का मोल हम रुपये-पैसे से नहीं, बल्कि अपने आभार और प्यार से ही चुका सकते हैं . ये तस्वीर भारत के उन लोगों के लिए सबक है, जो डॉक्टरों का एहसान मानने के बदले उनका अपमान कर रहे हैं .